कहानी- प्रिया का घर 3 (Story Series- Priya Ka Ghar 3)

मुझे देखते ही उसकी सूनी-सूनी आंखों में आंसू झिलमिला उठे, “क्या हुआ बेटा?” मैंने हड़बड़ाकर उसको अपने पास खींच लिया था. मेरी आंखें भी तर हो चुकी थीं. इस वक़्त वो मुझे बचपन‌वाली प्रिया लग रही थी, जो घर से डांट खाकर मेरे पास रोने आती थी, “बताओ बेटा, आंटी को नहीं बताओगी क्या बात है?” मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए पूछा, तो वो फूट-फूटकर रो पड़ी. ऐसा लग रहा था जैसे बहुत कुछ उसके अंदर भरा था.

विक्की ट्रेनिंग के लिए मुंबई चला गया था. मैंने मौक़ा देखकर, अपनी दुविधा का हल‌ निकालते हुए प्रिया की मम्मी को बुलाकर एक लड़के की फोटो दिखा दी.
“कैसा रहेगा अपनी प्रिया के लिए. ये देखो, मकान देखो तिमंजिला है. अच्छा-खासा बिज़नेस है. एक नए पैसे की डिमांड नहीं है. राज करेगी बिटिया.”
अपनी सहेली के बेटे और उसके परिवार के बारे में बढ़ा-चढ़ाकर बताकर, रिश्ते को घी-मेवे से सजाकर मैंने उनके सामने रख दिया था. प्रिया ना-नुकुर करती रही. आगे और पढ़ना है, कॉम्पटीशन की तैयारी करनी है… जैसी बातें कहकर टालती रही, लेकिन मैं तो जैसे हर बात की काट लिए बैठी थी. चटपट सगाई और पहले मुहूर्त में शादी करवाकर ही मुझे चैन मिला था.
इसके बाद जब भी प्रिया आई, दो‌-तीन दिनों से ज़्यादा रुकी नहीं. मैं इस तरफ़ से भी निश्चिंत हो गई थी. विक्की और प्रिया का आमना-सामना ना के बराबर होता था. लेकिन इस बार वो इतने समय के लिए रुकी और अब जब जाने की बात उड़ रही है, तो कह रही नहीं जाएगी. क्या मतलब था इन‌ सब बातों का? इससे पहले कि मैं और कयास लगाती, एक दिन प्रिया की मम्मी ने ख़ुद ही आकर अपना मन खोलकर रख दिया. ऊपर अपने घर बुलाया चेहरे पर उदासी फैली हुई थी, “आप ही बताना भाभीजी, बिल्कुल सही-सही… शादी के बाद थोड़ा-बहुत तो निभाकर चलना पड़ता है कि नहीं? हमने आपने-अपने घरों में नहीं निभाया?”
“हां, वो तो है.” मैंने हामी भरी.
वो आश्वस्त होकर आगे बोलीं, “अब आजकल की लड़कियों को क्या बोलें? कुछ हुआ होगा वहां, इसी बात पर अड़ी है कि कभी नहीं जाएगी. यहीं रहेगी. बताओ आप, है फ़ालतू की बात कि नहीं? इतनी मुश्किल से शादी-ब्याह किया. सब खेल थोड़ी है.” बोलते हुए उनकी आंखों से आंसू बहने लगे थे. मेरा हाथ पकड़कर बोलीं, “आप समझाकर देखना भाभीजी एक बार… आपकी बात नहीं टालेगी.”
मैंने अगले दिन आने को कहकर उनको भरोसा दिलाया. वो रात मेरी कैसे कटी मैं ही जानती थी.
“प्रिया कह रही है कभी नहीं जाएगी…” मेरा मन इस ख़्याल को सोचने को भी तैयार नहीं था. सब कुछ उलट-पुलट हो रहा था…
अगली सुबह मैं उनके घर प्रिया के सामने मौजूद थी.
वह मुझे देख ज़बर्दस्ती मुस्कुराई. उसका चेहरा देखकर मुझे अजीब-सा लगा. ख़ूब रोई हुई लाल सूजी आंखें, उतरा हुआ चेहरा, बिखरे हुए बाल… ये इस तरह तो कभी नहीं रहती थी. मुझे देखते ही उसकी सूनी-सूनी आंखों में आंसू झिलमिला उठे, “क्या हुआ बेटा?” मैंने हड़बड़ाकर उसको अपने पास खींच लिया था. मेरी आंखें भी तर हो चुकी थीं. इस वक़्त वो मुझे बचपन‌वाली प्रिया लग रही थी, जो घर से डांट खाकर मेरे पास रोने आती थी, “बताओ बेटा, आंटी को नहीं बताओगी क्या बात है?” मैंने उसकी पीठ सहलाते हुए पूछा, तो वो फूट-फूटकर रो पड़ी. ऐसा लग रहा था जैसे बहुत कुछ उसके अंदर भरा था. आंखें सूखना ही नहीं चाहती थीं. थोड़ी देर बाद उसने वैसे ही मेरी गोद में सिर छुपाए बोलना शुरू किया, “मैं वहां वापस नहीं जाऊंगी आंटी. वो लोग बहुत ख़राब हैं. मैं वहां नहीं रह सकती. मम्मी इस बात को समझ ही नहीं रहे हैं.”

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“देखो बेटा… शुरू-शुरू में दिक़्क़त होती है. हर घर का माहौल अलग होता है. एक-दूसरे को समझने में टाइम लगता है.”
मैंने उसको समझाने की कोशिश की, तो वो पीछे छिटक गई, “एक दूसरे को समझना? ऐसे समझा जाता है कि चाय में शक्कर ज़्यादा हो, तो गर्म चाय हाथ पर फेंक दी जाए?”
प्रिया ने रोते हुए अपना चोटवाला हाथ आगे कर दिया. मैं नम आंखें लिए सन्न बैठी रह गई थी. मुझे ऐसा क्यों लगने लगा था जैसे उस गर्म चाय की कुछ बूंदें मेरी तरफ़ से भी गई थीं!..

अगला भाग कल इसी समय यानी ३ बजे पढ़ें…

लकी राजीव

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Usha Gupta

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