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कहानी- रूहानी रिश्ता 3 (Story Series- Ruhani Rishta 3)

“मैंने कृष्णा को लेकर कुछ कविताएं लिखी हैं, सुनोगी?” मेरी स्वीकृति पर वे उठे, भीतर गए. एक डायरी हाथ में लिए लौटे. दीदी के वियोग में लिखी विरह कविता में उन्होंने दीदी के लिए नूरी, फूल, चांदनी जैसी कई उपमाएं दी हुई थीं. दीदी की, उनके प्यार-समर्पण की ख़ूब प्रशंसा की थी. उत्सुकता से मैंने पूछ लिया, “आप पहले भी कविता लिखते थे या…” वे बीच में ही बोल पड़े, “शादी के बाद कृष्णा ने इतना प्यार दिया कि मैं तुकबंदी करने लगा. उसे लिखे हर पत्र में मैं कुछ पंक्तियां ज़रूर लिखता था. कविता बने या शेर- इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं होता था. मुख्य बात होती थी अपनी भावनाओं को उस तक पहुंचाना.”
आख़िर जीजाजी ने ही बताया कि उनके बेटे ने अपनी सहकर्मी से शादी कर ली है और वे विदेश चले गए हैं. इस तनाव को लेकर दीदी अंदर ही अंदर घुल रही थीं.
मैं उन्हें समझाती रही कि बदलते व़क़्त के साथ अब इन बातों को गंभीरता से नहीं लेना चाहिए. अब बच्चे अपनी मर्ज़ी से जीवन जीना चाहते हैं. हमें ही समझौतावादी रुख अपनाना चाहिए, लेकिन दीदी सहज नहीं हो पा रही थीं. तीन-चार दिन रहकर मैं लौट आई.
अगले वर्ष हमारे बड़े बेटे को विदेश में एक अंतरराष्ट्रीय कंपनी में अच्छी नौकरी मिल गई. कुछ समय बाद उसने हमें वहां बुलाया. लगभग दो माह घूम-फिरकर हम वापस लौटे तो मौसी की बहू से ख़बर मिली कि कृष्णा दीदी नहीं रहीं. पिछले माह उन्हें ज़बर्दस्त दिल का दौरा पड़ा था. अस्पताल में चार-पांच दिन मौत से लड़ने के बाद वे हारकर चल बसी थीं. सुनकर गहरा सदमा पहुंचा था. जीजाजी की क्या मनोदशा होगी, यह सोचकर ही मन भारी होने लगा. जब हम उन्हें मिलने गए तो वे उदास व थके से लग रहे थे. मेरी रुलाई फूट पड़ी. “बेटे के विवाह को लेकर दीदी ने इतना तनाव पाल लिया कि ख़ुद ही बीमारी हो गईं.” जीजाजी ने धीरे से कहा, “कृष्णा को ब्रेन कैंसर हो गया था. इस बात का पता काफ़ी देर से चला, तब तक वह लाइलाज हो चुका था. उसे जब इस बात का पता चला तो वह काफ़ी घबरा गई थी. अपनी बीमारी की चिंता की बजाय उसे यह चिंता थी कि उसके जाने के बाद मेरा क्या होगा? कैसे अकेला रह पाऊंगा? अंतिम दिनों में तो वह मुझे समझाती रहती थी, मैं स्वयं को किस प्रकार व्यस्त रख सकता हूं. मुझे अपने स्वास्थ्य का किस प्रकार ख़याल रखना है. मेरी दवाइयां कहां रखी हैं? जरूरी काग़ज़ात, जेवर व अन्य क़ीमती सामान कहां रखे हैं? इसकी जानकारी देती रहती थी. इसी चिंता में उसे ज़बर्दस्त दिल का दौरा पड़ा और वो मुझे छोड़कर चली गई. सचमुच मैं बहुत अकेला हो गया हूं…”
सहज होने पर जीजाजी बोले, “मैंने कृष्णा को लेकर कुछ कविताएं लिखी हैं, सुनोगी?” मेरी स्वीकृति पर वे उठे, भीतर गए. एक डायरी हाथ में लिए लौटे. दीदी के वियोग में लिखी विरह कविता में उन्होंने दीदी के लिए नूरी, फूल, चांदनी जैसी कई उपमाएं दी हुई थीं. दीदी की, उनके प्यार-समर्पण की ख़ूब प्रशंसा की थी. उत्सुकता से मैंने पूछ लिया, “आप पहले भी कविता लिखते थे या…” वे बीच में ही बोल पड़े, “शादी के बाद कृष्णा ने इतना प्यार दिया कि मैं तुकबंदी करने लगा. उसे लिखे हर पत्र में मैं कुछ पंक्तियां ज़रूर लिखता था. कविता बने या शेर- इससे मुझे कुछ लेना-देना नहीं होता था. मुख्य बात होती थी अपनी भावनाओं को उस तक पहुंचाना.”
मैंने उससे एक बार कहा था कि मैं जो भी पत्र लिखता हूं, उन्हें सहेजकर रखना. मुझे बड़ी ख़ुशी होगी, क्योंकि उनमें मैं अपने भीतर का पूरा प्यार, स्नेह, आदर, समर्पण सभी कुछ डाल देता हूं. तुम्हें हैरानी होगी, हृदयाघात होने से एक दिन पहले उसने एक रेशमी बैग में मेरी लिखी सारी चिट्ठयां मुझे सौंपते हुए कहा था, “यह आपकी अमानत आपको सौंप रही हूं, पता नहीं कब सांसों की डोर टूट जाए. इसे संभाल लेना, आपसे किया वादा पूरा कर दिया है.” जीजाजी ने वे पत्र भी हमें दिखाए, जो पैंतीस वर्ष पहले उन्होंने दीदी को लिखे थे.
कमरे में दीदी की मुस्कुराती बड़ी-सी फ़ोटो लगी हुई थी. जीजाजी उसे बड़े प्यार से निहारते हुए बोले, “अस्पताल जाने से दो-चार दिन पहले यह फ़ोटो मैंने ही खींची थी. उस दिन कृष्णा मुझे बेपनाह ख़ूबसूरत लग रही थी. मैंने जब फ़ोटो खींचने की बात की तो फ़ौरन तैयार हो गई. फिर बोली, “इस फ़ोटो पर हार मत चढ़ाना, क्योंकि हार तो उसे चढ़ाया जाता है, जो यह संसार छोड़कर चला जाता है. मैं तो हमेशा आपके संग ही रहूंगी आपकी यादों में, सपनों में, बातों में… आपने इतना प्रेम जो दिया है, क्या मैं आपको अकेला छोड़ सकती हूं…?”
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जीजाजी के चेहरे पर कुछ देर पहले जो उदासी, सूनापन था उसके स्थान पर अब वे सहज, स्थिर और शांत नज़र आने लगे. कुछ देर की चुप्पी के उपरांत वे बोले, “पहले मुझे लगता था कि कृष्णा के बिना मैं जी नहीं पाऊंगा, लेकिन अब महसूस होता है कि वह तो मेरे साथ ही है. उसकी मधुर स्मृतियां मेरे हर क्रियाकलाप में, मेरे आसपास हमेशा रहती हैं. वह केवल शरीर छोड़कर गई है, रूहानी रूप से वह सदा मेरे साथ रहती है. यह फ़ोटो देखो, कैसे मुस्कुरा रही है. उसके आत्मिक प्रेम के सहारे अपना शेष जीवन मैं सहजता से जी लूंगा…”
मैं सोचने लगी, आज जब संसार में प्रेम जैसा पवित्र शब्द एक व्यापार बन कर रह गया है, वहां दीदी-जीजाजी का पावन आत्मिक प्रेम कितना शक्तिशाली है, जो जीवन के बाद भी उतना ही महत्त्व व प्रभाव रखता है. दिल को छूता है उनका यह रूहानी रिश्ता. उनके निश्छल, निर्मल व पावन प्रेम के प्रति मन श्रद्धा से भर उठा.
नरेंद्र कौर छाबड़ा
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