कहानी- सीक्रेट सेविंग 2 (Story Series- Secret Saving 2)

“नंदिनी, तू मेरी फ़िक्र मत कर, बहुत रह ली दबकर, झुककर… पर अब नहीं. वैसे भी मैं सड़क पर तो हूं नहीं, तेरे पास मेरे लाखों रुपये जमा हैं और फिर ये घर भी तो है, इसमें भी तो मेरा आधा हिस्सा बनता ही है. तू चिंता मत कर, मैं अपनी देखरेख कर लूंगी.” नूपुर ने चिंतित नंदिनी को आश्‍वस्त करना चाहा, मगर घर और पैसों की बात आते ही उसकी भाव-भंगिमाएं तेज़ी से बदलने लगीं, “वो तो है दी, मगर आप ऐसे कैसे अपना बसा-बसाया घर छोड़ सकती हैं.’’

 कभी इतना आत्मविश्‍वास नहीं बन पाया था कि सब छोड़-छाड़कर बेटे को ले भारत आ जाए और अपना जीवन नए सिरे से शुरू करे, मगर फिर भी दिल में एक संकल्प कर रखा था, जिस दिन बेटा पढ़-लिखकर आत्मनिर्भर हो गया, उस दिन इस पति नाम की बेड़ी को उतार भारत लौट जाऊंगी.

चोरी-चुपके इस योजना की तैयारी भी कर रही थी वो. हर महीने घर से कुछ-न-कुछ पैसे निकालकर नंदिनी के पास भेजा करती थी. 18 साल हो गए थे उसे ऐसा करते हुए. अब तक लाखों जमा कर चुकी थी. जब उसका 19 साल का बेटा किसी अमेरिकन लड़की के साथ लिव-इन में रहने चला गया, तो नूपुर के पास अब अमेरिका रुके रहने का कोई औचित्य न बचा था. अतः वह अपनी एकमात्र आत्मीय, अपनी बहन नंदिनी के पास आ गई.

हर बार की तरह इस बार भी, नूपुर की ख़ूब आवभगत हुई, लेकिन केवल तब तक, जब तक कि उसने नंदिनी को अपने फैसले के बारे में नहीं बताया. “क्या कह रही हो दी, हमेशा के लिए घर छोड़ आई हो, इतना बड़ा कदम क्यों उठा लिया? वो भी इस उम्र में?” नूपुर ने सारी आपबीती नंदिनी को सुना दी, मगर वह फिर भी सहमत नहीं थी. “जीजाजी के साथ जहां इतनी उम्र बीत गई, बाकी की भी बीत जाएगी. वहां रहते हुए आपका मान-सम्मान बना रहेगा दी, यहां भारत में अकेले कैसे रहोगी, क्या करोगी? जानती हो ना यहां के समाज को. आपका जीना मुश्किल हो जाएगा.” नंदिनी नूपुर को वापस भेजने की जी तोड़ कोशिश कर रही थी, मगर इस बार नूपुर हालात से समझौता करने को बिल्कुल तैयार नहीं थी.

“नंदिनी, तू मेरी फ़िक्र मत कर, बहुत रह ली दबकर, झुककर… पर अब नहीं. वैसे भी मैं सड़क पर तो हूं नहीं, तेरे पास मेरे लाखों रुपये जमा हैं और फिर ये घर भी तो है, इसमें भी तो मेरा आधा हिस्सा बनता ही है. तू चिंता मत कर, मैं अपनी देखरेख कर लूंगी.” नूपुर ने चिंतित नंदिनी को आश्‍वस्त करना चाहा, मगर घर और पैसों की बात आते ही उसकी भाव-भंगिमाएं तेज़ी से बदलने लगीं, “वो तो है दी, मगर आप ऐसे कैसे अपना बसा-बसाया घर छोड़ सकती हैं. आप भारतीय नारी हैं. यह तो सोचिए आपके इस कदम से मम्मी-पापा की आत्मा को कितना दुख पहुंचेगा. पूरी रिश्तेदारी में आपकी थू-थू होगी.” नंदिनी हितैषी बन अभी भी उसकी बुद्धि फेरने की पुरज़ोर कोशिश कर रही थी, मगर उसके चेहरे की घबराहट और स्वर की लड़खड़ाहट नूपुर को कुछ और ही संदेश दे रहे थे.

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“जो चले गए उनका सोच रही है और जो तेरे सामने ज़िंदा बैठी है, उसकी कोई फ़िक्र नहीं. तू मुझे मत समझा, मैं अब वापस नहीं जानेवाली. तू बस ये बता तेरे पास मेरा कुल कितना पैसा जमा है? मेरे ख़्याल से 20-25 लाख तो होगा ही. मैं उससे अपने गुज़ारे लायक कुछ-न-कुछ कर लूंगी.”

नंदिनी का चेहरा सूखकर स़फेद पड़ गया. वह हकलाते हुए बोली, “क्या बताऊं दी, नोटबंदी के समय इनका पूरा बिज़नेस चौपट हो गया था. लेनदारों ने जेल भेजने की नौबत ला दी थी, तब… ”

“तब क्या?” नूपुर सकते में आ गई.

“तब उन्हीं पैसों के सहारे ये बच पाए…” कहते हुए नंदिनी की चोर आंखें झुक गईं.

“क्या कह रही है नंदिनी. मुझसे तो पूछा होता. तुझे क्या पता, मैंने कैसे एक-एक पाई जोड़कर तेरे पास जमा की थी. उसी के भरोसे तो मैं यहां… तूने ये मेरे साथ अच्छा नहीं किया.”

“तो क्या करती दी. पैसा होते हुए भी उन्हें जेल जाने देती? ऐसे समय पर एक पत्नी पर क्या गुज़रती है, आप नहीं समझोगी. आप तो ख़ुद अपने अच्छे-भले पति को बेमतलब छोड़ आई हो.” नंदिनी के सुर और तेवर दोनों बदल चुके थे.

“ओह… यही बाक़ी रह गया था सुनने को. पहले पति, फिर बेटा और अब तू भी…” नूपुर को लगा जैसे उसके हिस्से के आसमान के साथ-साथ पैरों तले ज़मीन भी यकायक छीन ली गई हो. उफ़्फ़! किस पर भरोसा करे इंसान. हर जगह बस धोखा. क्या यही नियति है उसकी. वह वहां से उठ खड़ी हुई.

“मम्मी-पापा का ये पुश्तैनी घर तो है ना… इस पर मेरा भी हक़ है.” इस बार नूपुर भी मुखर हो उठी.

“घर की बात मत करो दी. हम यहां सालों से रह रहे हैं. इसका मेंटेनेंस करवा रहे हैं. आप तो सब कुछ भूलकर अमेरिका में मौज कर रही थीं. मम्मी-पापा की इस धरोहर को हम ही संभाल रहे थे.” नंदिनी की कोमल आंखें अब अंगारे बरसाने लगी थीं.

“संभाल रहे थे या कब्ज़ा कर रहे थे? एक तो चोरी, ऊपर से सीनाजोरी.”

  दीप्ति मित्तल

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