कोरोना के चलते वैसे भी पटाखों का बाज़ार ठंडा है, लेकिन फिर भी कहीं न कहीं लोग निर्देशों को अनदेखा…
अभी कुछ दशकों पहले तक हाल यह था कि त्योहारों की आहट सुनाई देते ही घर-परिवार, समाज- हर जगह रौनक़…
हुए रौशन ये चराग़, देखो बेहिसाब...शब की रौऩकें बढ़ाने को हैं ये बेक़रार...कभी चाहत का नूर बनकर, तो कभी मुहब्बत…