कभी तन्हा से ये मोड़ कुछ सिमट जाते हैं, कभी सूने ये रास्ते गुलज़ार हो जाते हैं... जब तेरी ज़ुल़्फें…
ख़्वाब हो मेरा या आसमान का चांद हो, जो भी हो तुम... बस मेरा अरमान हो... कभी रह-रहकर क़रीब आती…