modern relationship challenges

सर्द पड़ते रिश्ते गर्म होते मिज़ाज… (Modern Relationship Challenges: Why Do Relationships Fail Nowadays)

माना तो यही जाता है कि रिश्तों की गर्मी बनी रहनी चाहिए तभी वो ऊर्जावान रहते हैं, लेकिन अक्सर होता ये है कि वक़्तऔर बदलते हालात रिश्तों को ठंडा कर देते हैं और हमारे मिज़ाज को गर्म… यही गर्म मिज़ाज रिश्तों को और ठंडा करतेजाते हैं… पर ऐसा होता क्यों है और कैसे अपने ठंडे  पड़ते रिश्तों को अपने गर्म मिज़ाज को ठंडा रखकर बचाया जासकता, इस पर काम करना ज़रूरी है…  सबसे पहले तो ये समझना होगा और उन संकेतों को पहचानना होगा जिनसे पता चले कि आपके रिश्ते सर्द पड़ रहे हैं?  क्या अब आप लोगों में कम्यूनिकेशन कम होता है? आपका शायद ध्यान ही न गया हो इस तरफ़ लेकिन एक दिनबैठकर फुर्सत से सोचें और लिस्ट बनाएं कि पहले के मुक़ाबले अब क्या-क्या बदला है…एक-दूसरे की परवाह तो है पर फिर भी एक-दूजे के प्रति बेपरवाह से हो गए हैं.न पहले की तरह तारीफ़ें होती हैं और न प्यारभरी बातें…सेक्स लाइफ़ में भी अब पहले जैसा आकर्षण और रोमांस नहीं रहा…  ये तो थी पति-पत्नी के बीच की बातें लेकिन ये ठंडापन इन दिनों हर रिश्ते में पनप रहा है…  भाई-बहन में अब पहले जैसा अपनापन नहीं रहा.माता-पिता के साथ कोई रहना नहीं चाहता क्योंकि अब वो बूढ़े हो चले हैं.किसी के पास फुर्सत नहीं कि घर के बुज़ुर्गों के पास आकर दो पल बैठे और उनका हाल-चाल पूछे. दूर के रिश्तेदार हों या करीबी भी फ़ोन पर भी बात करने का समय नहीं निकाल पाते लोग. न पोते-पोतियों को अपनेदादा-दादी से बात करने में दिलचस्पी है, न भतीजा-भतीजी को अपने बुआ का हाल चाल पूछने की ज़रूरत महसूसहोती.इस तरह के तमाम उदाहरण हमें रोज़ देखने-सुनने को मिल जाते हैं.  अब सवाल ये है कि आख़िर रिश्ते सर्द क्यों पड़ रहे हैं…? स्वार्थ अपनेपन पर हावी हो गया है.प्यार की जगह पैसों ने ले ली है.सबके साथ बैठकर फुर्सत के पल गुज़ारने से कहीं ज़्यादा ज़रूरी ऑफ़िस की डेडलाइंस हो गई हैं.सेक्स महज़ मशीनी प्रक्रिया और जिस्म की ज़रूरत बनकर रह गया. पार्टनर की भावनाओं को समझने से ज़्यादा ज़रूरी अब कामयाबी हो गई है… बूढ़ी दादी की बात सुनना तो वेस्ट ऑफ़ टाइम है, समय से दोस्तों की पार्टी में पहुंचना ज़्यादा ज़रूरी है.पिता को दवा तो मां भी दिलाकर ला सकती है, बहूरानी के लिए मॉल की वीकेंड सेल ज़्यादा मायने रखती है.लेकिन क्यों हमारा नज़रिया रिश्तों के प्रति बदल गया या यूं कहें कि इतना कठोर हो गया?  इसकी एक बड़ी वजह हैहमारा मिज़ाज… जो अब बदल गया है… गर्म हो गया है… क्यों गर्म हो रहे हैं हमारे मिज़ाज? हम अब एडजेस्टमेंट नहीं करना चाहते अब, क्योंकि हम आज़ादपसंद हो गए हैं.हमारी लाइफ़स्टाइल बदल चुकी है, जीने के तौर-तरीक़े बदल गए हैं.ऐसे में ज़रा सी टोका-टोकी या किसी ने ये भी पूछ लिया कि कहां जा रहे हो… या आज आने में देर कैसे हो गई… हमें बर्दाश्त नहीं होतीं… हमें फ़ौरन ग़ुस्सा आ जाता है.हमारा गर्म मिज़ाज हमको ये सोचने का तर्क ही नहीं दे पाता कि हमारे अपनों को हमारी फ़िक्र है, परवाह है, इसलिएवो फ़िक्रमंद रहते हैं और सवाल करते हैं.काम का स्ट्रेस, आगे बढ़ने की होड़ और इस फ़ास्ट लाइफ़स्टाइल ने हमारे मिज़ाज को और भी गर्म बना दिया औरहमारे रिश्तों को सर्द.काम का प्रेशर, शौहरत और पैसा कमाने का प्रेशर, यंग और फिट दिखने का प्रेशर, लक्ज़री लाइफ़ जीने का प्रेशर, महंगी गाड़ी से लेकर ब्रांडेड कपड़े पहनने का प्रेशर… ये तमाम ख्वाहिशें अब हमारी ज़रूरतें बन चुकी हैं और इनकोपूरा करने में जब हम पूरी तरह कामयाब नहीं हो पाते तब भी मिज़ाज गर्म रहने लगता है. और अगर ये सब मिल भी जाए तब भी इतना कुछ करते-करते हम अपनी कोमलता खो चुके होते हैं, अपनों से औरअपने रिश्तों से दूर हो चुके होते हैं. इसके अलावा व्यसन, लत, नशा… चाहे पैसों का हो, कामयाबी का हो, शराब या सिगरेट का हो… ये हमारे मिज़ाजको ठंडा होने देता… लेकिन ये नशा रिश्तों को लेकर हम पैदा क्यों नहीं करते…? हमारा खान-पान भी ऐसा हो गया है कि हमें हाइपर एक्टिव बना रहा है. अनहेल्दी लाइफ़स्टाइल से लेकर अनहेल्दीखानपान हमारे मिज़ाज को बिगाड़ रहा है. कैसे बढ़ाएं अपने रिश्तों में गर्मी और कैसे रखें अपना मिज़ाज ठंडा? संतुष्ट और सुकून को पैसे और शौहरत से ज़्यादा महत्व देने का प्रयास करें, कोशिश करेंगे तो कामयाबी ज़रूरमिलेगी.रिश्तों को प्राथमिकता बनाएं.अपनों को वक़्त दें. पैसों के पीछे भागना बंद कर दें. हॉबी डेवलप करें.डायट बदलें.योगा और मेडिटेशन ज़रूर करें, साथ ही लाइट एक्सरसाइज़ या वॉक करें. इससे ब्रेन में हैप्पी होर्मोंस रिलीज़ होंगेऔर आप पॉज़िटिव बनेंगे.ज़िंदगी के प्रति अपना नज़रिया बदलें.पॉज़िटिव सोच के साथ हर काम करें और कोशिश करें कि वर्क लाइफ़ और पर्सनल लाइफ़ में संतुलन बना सकें. पार्टनर की अच्छाइयों और कोशिशों को सराहें. अपनों से कनेक्टेड रहें, चाहे फ़ोन या मैसेज के ज़रिए, इससे मन को सुकून और ज़िंदगी में तसल्ली रहती है.दूसरों की मदद करें, अपनों का दर्द बांटें, क्योंकि एक वक़्त के बाद अपने और ये रिश्ते ही काम आते हैं, वर्ना ऐसा नहो कि ये गर्म मिज़ाजी आपको अपनों से इतना दूर और आपको इतना तनहा कर दे कि कहने को तो आपके पासनाम, पैसा, शौहरत तो हो लेकिन सिर रखने को कोई कंधा न हो, थामने को कोई हाथ न हो और साथ मिलकरहंसने-रोने वाला कोई हमदर्द न हो! बिट्टू शर्मा 

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