Women Entrepreneurs

इंटरव्यू: ‘रिस्क न लेने के तो बहाने कई हैं, पर सपने पूरे करने के लिए बस एक जज़्बा काफ़ी है…’ वुमन आंट्रप्रनर दीपाली चतुर्वेदी (Interview: ‘You Have To Take Risks To Follow Your Dreams…’ Woman Entrepreneur Deepali Chaturvedi)

एक ख़्वाब देखा था मासूम निगाहों से, कुछ अरमानों के रंग भरे थे उसमें… फिर बंद लिफ़ाफ़े में रख छोड़ा-था उसको वक़्तके दराज में… समय गुज़रा, यादें धुंधली पड़ती गईं… वो सपना वहीं पड़ा रह गया… फिर एक रोज़ यादें ताज़ा हुईं और खुददिल ने ही दिल से कहा, अपने जज़्बे को जगा ले, सूरज को अपनी मुट्ठी में क़ैद मत कर भला, पर आसमान में एक छोटा-सा सुराख़ तो बना ले… खोल उस बंद लिफ़ाफ़े को और उस ख़्वाब को अपनी आंखों में बसा ले… सजाकर पलकों परउसको तलाश ले फिर से वजूद अपना और अपने उस सपने को अपनी हक़ीक़त बना ले…  दीपाली चतुर्वेदी… ये वो नाम है जिन्होंने वक़्त के दराज़ में बंद लिफ़ाफ़े को खोल अपने ख़्वाब को जीने का मन बनाया औरफिर उसे आकार दे खुले आसमान में उड़ना सिखाया… आज उनका सपना साकार रूप ले रहा है और पंख फैलाकर उड़ान भी भर रहा है. दीपाली हैं बेस्टसोर्स नूट्रिशन की मार्केटिंग डायरेक्टर. क्या था उनका सपना और कैसे उन्होंने अपने जज़्बे सेउसे साकार किया, इसी विषय पर हमने उनसे बात की…  आपके मन में कब और कहां से ख़्याल आया कि देश में देसी हर्बल प्रोडक्ट्स को लोगों के बेहतर स्वास्थ्य के लिए लॉन्चकरना है?  साफ़तौर पर कहूं तो हमारे देश में एक परिवार और एक लड़की के क्या सपने होते हैं? पढ़ाई-लिखाई, घर के काम मेंनिपुण, मन किया तो नौकरी और शादी के बाद बच्चा… बस लाइफ़ सेट… है न! लेकिन मैंने जब शुरुआत की तो वो समाजकी सोच में बदलाव आने का दौर था. मैंने फूड टेक्नोलॉजी में बी टेक किया था और मेरी मॉम भी चाहती थीं कि मैं पढ़ाईकरके अच्छा सा जॉब कर लूं, करियर बना लूं. बी टेक के बाद मैं फार्मास्युटिकल मार्केटिंग में एमबीए किया. मुझे अच्छाजॉब भी मिल गया था. करियर आगे बढ़ रहा था, पर कहते हैं कि एक लड़की की ज़िंदगी में तब बदलाव आता है जब शादीतो नहीं कहूंगी मैं, पर जब वो मां बनती है. ये बदलाव मेरी ज़िंदगी में भी आया और उसके बाद मेरी सारी दुनिया मेरे बच्चे मेंही सिमट गई. जॉब छोड़ दिया और मैं दोबारा जॉब जॉइन नहीं कर पाई, क्योंकि मैं अपने बच्चे को अपना 100% देनाचाहती थी. लेकिन कुछ समय बाद कहीं न कहीं एक मां और एक करियर ओरीएंटेड स्त्री के बीच की ऊहापोह में मैं फ़ंसनेलगी.  मुझे पहले नींद नहीं आती थी क्योंकि बच्चा सोने नहीं देता था, लेकिन अब नींद आनी बंद हो गई थी कि मैं कर क्या रही हूं… मेरी काबिलीयत, करियर, सपने सब धरे के धरे रह जाएंगे.  उस वक़्त मैं अपने भाई के पास अमेरिका गई थी तो मैंने देखा वहां दवाइयां काफ़ी महंगी होती थीं और लोग अब नेचुरल फूड और डायट्री सप्लीमेंट्स के ज़रिए ये कोशिश करते थे कि वो हेल्दी और फिट रहें. शरीर को संपूर्ण पोषण मिलेगा तो बीमारी नहीं होगी. उस वक़्त न सिर्फ़ मुझे, बल्कि मेरे पूरे परिवार को लगा कि ये ट्रेंड हमारे देश में भी आज नहीं तो कलआएगा ही, क्योंकि यहां भी लाइफ़ स्टाइल संबंधी बीमारियां, जैसे- हार्ट की बीमारी, मोटापा, डायबिटीज़ आदि बढ़ रहीथीं. उस वक़्त ये ख़याल आया कि क्यों न ऐसे प्रोडक्ट्स बनाएं जाएं जो नेचर के क्लोज़ हों और जिनके बारे में लोगअनजान हैं और जिस पोषण की पूर्ति खाने के ज़रिए नहीं हो पा रही हो, तो वो पोषण इन प्रोडक्ट्स से उनको मिल सकेगा. दवा के तौर पर नहीं लेकिन सप्लीमेंट के तौर पर इनके इस्तेमाल से लोग अपनी डायट को कम्प्लीट बना सकते हैं.  इस आइडिया को इम्प्लीमेंट करने में किन चुनौतियों का सामना करना पड़ा? एक महिला होने के नाते सबसे पहली चुनौती थी कि मैं अपने काम और परिवार के बीच कैसे संतुलन बनाए रखूं. हममहिलाएं खुद से ही इतनी उम्मीदें लगाए रहती हैं कि अपने स्टैंडर्ड्स बहुत हाई करके रखती हैं, तो मुझे लगा कि अपने बच्चेपर भी उतना ही ध्यान दूं, जितना फुल टाइम मदर को देना चाहिए और अपने काम से भी मुझे समझौता नहीं करना था. परमेरे परिवार ने मुझे काफ़ी सपोर्ट किया और काम आसान हो गया. दूसरी चुनौती बिज़नेस फ़्रंट पर थी और वो ये कि हमने 2015 में ये प्रोजेक्ट लॉन्च किया था और इसका आइडिया हमको 2013-14 में आया था, पर एक-डेढ़ साल तो ग्राउंडवर्क में ही लग गया था पर क्योंकि हमने शुरुआत ही की थी ई कॉमर्ससे और उस समय ये कॉन्सेप्ट नया था, तो लोग डिजिटल पेमेंट को लेकर बिल्कुल भी सहज नहीं थे. इसके अलावा जो एकऔर बहुत बड़ी चुनौती थी वो ये कि भले ही आयुर्वेद भारत की कोख में जन्मा है, गांव-गांव में लोग इससे अनजान नहीं, परबावजूद इसके लोगों को उस समय हर्बल प्रोडक्ट्स पर इतना भरोसा नहीं था. उस पर हम भारतीय खाने के लिए जीते हैं, हमारे लिए सेहत बाद में और स्वाद पहले. वहीं अगर हम बात हम महिलाओं की करें तो हमारे लिए घर, परिवार, जिम्मेदारियां हमारी प्राथमिकताएं हैं पर हमारी सेहत कहीं से हमारी प्राथमिकताओं में नहीं होती.  एक अन्य समस्या ये भी थी कि ये फ़ैमिली बिज़नेस था, तो हमारे पास रिसोर्सेस बहुत सीमित थी और भारत जैसे विशालदेश में हर जगह पहुंच पाना संभव नहीं और ऊपर से लोग भी इतने फिटनेस फ़्रीक नहीं थे.  फ़्यूचर प्लांस क्या हैं और कैसे तमाम चुनौतियों को पीछे छोड़ते हुए आगे बढ़ने का सोचा है? हमारे कई प्रोडक्ट्स हैं जो पहली बार हमने ही देश में इंट्रड्यूस किए, जैसे किडनी हेल्थ, मेंटल हेल्थ प्रमोट करने के लिएभी एक्स्क्लूसिव प्रोडक्ट्स हैं, लेकिन लोगों को जानकारी ही नहीं है. साथ ही ऐसे प्रोडक्ट्स में लोगों का भरोसा जीतनाबेहद ज़रूरी है, इसलिए हम क्वालिटी टेस्ट रिपोर्ट्स के साथ कस्टमर के पास जाते हैं. सोशल मीडिया के ज़रिए, फ्रीशिपिंग के साथ हम लोगों से जुड़ते हैं. COVID से पहले तो हम सेमिनार्स भी करते थे. हम डायटीशियन, न्यूट्रिशनिस्ट औरडॉक्टर्स को भी बताते हैं कि ऐसे प्रोडक्ट्स मौजूद हैं देश, तो वो अपनी प्रैक्टिस में इनका किस-किस तरह से उपयोग करसकते हैं और लोगों को भी रिकमेंड कर सकते हैं. FSSAI के भी नियम अब बदल रहे हैं तो अगर हम सर्टिफ़ायड प्रोडक्ट्सलोगों को देते हैं तो उनको ये भरोसा होता है कि ये उत्पाद वाक़ई सही और सेफ हैं. हमें आयुष कमल भूषण अवॉर्ड भीमिला है, तो इससे भी लोगों का ट्रस्ट एक कदम और बढ़ जाता है हम पर. वैसे भी अब लोग हेल्थ को लेकर ज़्यादा सतर्कहो गए हैं और डिजिटल पेमेंट ज़्यादा करने लगे हैं, तो राह थोड़ी आसान हो रही है.  फ़िलहाल हम भारत पर ही फ़ोकस कर रहे हैं पर भविष्य में ज़रूर एक्स्पोर्ट की तरफ़ जाएंगे. …

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