Health & Fitness

बीमार न होने दें मन को (Take Care Of Your Emotional Health)

सारी हसरतें पूरी नहीं होतीं, कुछ ख़्वाब अधूरे भी रह जाते हैं, ज़िंदगी में सब कुछ मनचाहा ही हो यह ज़रूरी तो नहीं, ज़िंदगी को भी तो कभी मनमानी करने दें… ख़्वाहिशों पर बंदिशें तो नहीं लग सकतीं, लेकिन उनकी पूरी होने की शर्त क्यों? अगर शर्त रखेंगे, तो जी ही नहीं पाएंगे, भावनाओं में बहते जाएंगे और मन से बीमार हो जाएंगे. मन भी तो बहुत कुछ सहेजकर, संजोकर रखता है… जब सब कुछ मनचाहा नहीं होता, तो उसका सीधा असर मन पर ही तो होता है. ऐसे में ज़रूरी है अपने मन की सेहत का ख़्याल रखें और अपने मन को बीमार न पड़ने दें.

हम अपने शरीर से बेहद प्यार करते हैं. यही वजह है कि उसे सजाते हैं, संवारते हैं, उसका हर तरह से ख़्याल रखते हैं. जब कभी शरीर में तकलीफ़ हो जाए, तो डॉक्टर के पास भी जाते हैं, एक्स्ट्रा केयर करते हैं. इसी तरह से जब हमारा मन बीमार पड़ता है, तो हम क्या करते हैं? हम में से अधिकांश लोगों का जवाब होगा कि कुछ नहीं, क्योंकि मन भी कभी बीमार पड़ता है?

लेकिन सच तो यही है, जिस तरह तन बीमार पड़ता है, उसी तरह मन भी बीमार पड़ता है. उसे भी उस व़क्त एक्स्ट्रा केयर की ज़रूरत पड़ती है. लेकिन हम शायद समझ ही नहीं पाते कि हमारा मन बीमार हो गया है, इसलिए बेहतर होगा कि अपने मन का भी ख़्याल रखें, उसे बीमार न होने दें और अगर बीमार हो भी जाए, तो मन के डॉक्टर के पास जाकर उसका भी इलाज करवाएं.

क्या हैं मन की बीमारी के लक्षण?

डर और घबराहट: यह एक बड़ा लक्षण है आपके मन की बीमारी का. आपके मन में बेवजह असुरक्षा की भावना आने लगती है. अंजाना डर और घबराहट-सी बनी रहती है. लोगों पर भरोसा कम करने लगते हैं. एक अविश्‍वास की भावना पनपने लगती है.

नाराज़गी, ग़ुस्सा व दोषारोपण: अगर आप अपनी ज़िंदगी की तकलीफ़ों के लिए बार-बार दूसरों पर दोषारोपण करते हैं, नाराज़गी व ग़ुस्सा दिखाते हैं, तो समझ लीजिए कहीं न कहीं कुछ तो गड़बड़ है. आपको अपनी परिस्थितियों की ज़िम्मेदारी ख़ुद लेनी होगी. माना, आपके साथ बुरा हुआ होगा, लेकिन दोषारोपण समाधान नहीं है. हम नकारात्मक परिस्थितियों में भी किस तरह से प्रतिक्रिया देते हैं, यह हम पर निर्भर करता है. ज़िम्मेदारियों से भागना कोई हल नहीं.

अपराधबोध, शर्मिंदगी, पश्‍चाताप: आपने कुछ ग़लतियां की होंगी. ज़ाहिर-सी बात है, ज़िंदगी परफेक्ट नहीं होती, हम सभी ग़लतियों से ही सीखते हैं, लेकिन उसके लिए कब तक अपराधबोध, शर्मिंदगी व पश्‍चाताप की भावना मन में बनाए रखेंगे? आपको ख़ुद को भी माफ़ करना सीखना होगा. आप भगवान नहीं हैं और हो सकता है आपकी वजह से दूसरों को या आपको भी तकलीफ़ों से गुज़रना पड़ा हो, पर कब तक ख़ुद को दोषी मानते रहेंगे? माफ़ी मांग लें और ख़ुद को भी माफ़ कर दें.

चिड़चिड़ापन और नकारात्मकता: नकारात्मक भावनाएं कई कारणों से हो सकती हैं, लेकिन वह आपका स्वभाव ही बन जाए, तो ये मन के बीमार होने का संकेत है. नकारात्मकता ही चिड़चिड़ेपन को बढ़ाती है. पैसा, जॉब, रिश्ते व सामाजिक दबाव कई कारण हैं, जो नकारात्मक भावनाएं पैदा करते हैं, पर आपको ख़ुद यह निर्णय लेना होगा कि किस तरह से नकारात्मकता के कारणों से आप दूर रह सकते हैं.

एडिक्शन: जब मन और भावनाएं कमज़ोर हो जाती हैं, तो हम कई तरह की लतों के शिकार हो जाते हैं. एडिक्शन हमें कुछ पलों की राहत देते हैं और हमें लगता है हमारे सारे दर्द दूर हो गए, लेकिन एडिक्शन्स जब हमें पूरी तरह से अपनी गिरफ़्त में ले लेते हैं, तो मन और तन दोनों पर भारी पड़ जाते हैं. बेहतर होगा अपने ग़मों का इलाज लतों में न ढूंढ़ें.

उदासीनता व थकान: हमेशा थकान व उदासी महसूस करना शरीर के नहीं, मन के बीमार होने का संकेत है. ऊर्जा महसूस न होना, निराशावादी रवैया अपना लेना… इस तरह की भावनाएं यही इशारा करती हैं कि आपको अब मन के डॉक्टर की ज़रूरत है.

डिप्रेशन और आत्महत्या के ख़्याल: किसी भी गतिविधि में मन न लगना, किसी से बात न करना, सामाजिक क्रियाकलापों से दूर होते जाना, खाना कम कर देना, थका-थका महसूस करना जैसे लक्षण गहरे अवसाद की ओर इशारा करते हैं. यही अवसाद आगे चलकर आत्महत्या के ख़्यालों को जन्म देने लगता है. आपको लगने लगता है कि आपकी किसी को ज़रूरत नहीं, आपसे कोई प्यार नहीं करता… और यदि इस दौरान सही इलाज न करवाया जाए, तो आप ख़ुद अपनी जान के दुश्मन तक बन सकते हैं.

भावनात्मक कमज़ोरी: बात-बात पर रो देना, ख़ुद को असहाय व बेचारा महसूस करना मन की बीमारी का गहरा संकेत है. आपको लगता है कि कोई भी आपको प्यार नहीं कर सकता व अपना नहीं सकता. धीरे-धीरे आप लोगों से दूरी बनाने लगते हैं और अपनी ही परिधि में ़कैद हो जाते हैं. अपने मन की बात किसी से शेयर नहीं करते, ख़ुद मन ही मन घुटते रहते हैं.

सामाजिक गतिविधियों से दूर होना: आप पार्टीज़ में जाना बंद कर देते हैं, दोस्तों से मिलना-जुलना, रिश्तेदारों की ब्याह-शादी में न जाना… इस तरह से ख़ुद को आप समाज से काटने लगते हैं, क्योंकि आपको लगता है सभी आपके दुश्मन हैं और आपको कोई अपनाने को तैयार नहीं. ऑफिस पिकनिक हो या सोसायटी का गेट-टुगेदर, आपका मन कहीं नहीं लगता. हो सकता है आपकी सामाजिक व आर्थिक स्थिति उतनी अच्छी न हो, पर यह कोई समाधान नहीं.

हताश, निराश व नाउम्मीद हो जाना: आपका मस्तिष्क पूरी तरह से बंद होने लगता है और हर तरह के निगेटिव ख़्याल ही आपको घेरे रहते हैं. अगर उम्मीद व आशा की किरण हो भी, तब भी आप प्रयास करने बंद कर देते हैं, क्योंकि आप पूरी तरह हताश, निराश व नाउम्मीद हो जाते हैं. आप पहले ही सोच लेते हैं कि प्रयास करने से भी कुछ नहीं होगा और आप कोशिश ही नहीं करते.

शारीरिक तकली़फें: जब आपका मन बीमार होगा, तो ज़ाहिर है शरीर पर भी उसका असर नज़र आने लगेगा. सिरदर्द, पेट की तकली़फें, मांसपेशियों में दर्द व तनाव इसके प्रमुख लक्षण हैं. लेकिन अक्सर लोग शारीरिक लक्षणों के इलाज पर ध्यान देने लगते हैं, जबकि इनकी जो मुख्य वजह है, मन की बीमारी, उसको नज़रअंदाज़ कर देते हैं. जिससे परेशानी और बढ़ जाती है.

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कारण

मन की बीमारी के कई कारण हो सकते हैं, जिसमें सामाजिक, पारिवारिक, आर्थिक व ख़ुद का व्यक्तित्व भी ज़िम्मेदार हो सकता है.

–     हो सकता है आपकी नौकरी में समस्या हो या आपकी नौकरी चली गई हो और नई नौकरी अनेक प्रयासों के बाद भी न मिल रही हो, तो कई तरह के डर मन में हावी होने लगते हैं. भविष्य की चिंता, आर्थिक तंगी, समाज में तिरस्कार का डर आदि बातें आपको धीरे-धीरे नकारात्मक बनाने लगती हैं.

–     शादी या प्यार जैसा रिश्ता टूटने पर भी बहुत तकलीफ़ होती है. ऐसे में सामान्य बने रहना बेहद मुश्किल भी है, इसीलिए आप समाज से कटने लगते हैं. ख़ुद को एक दायरे में ़कैद कर लेते हैं. एडिक्शन का शिकार हो जाते हैं.

–     कुछ लोगों का व्यक्तित्व ही ऐसा होता है कि वो अन्य लोगों के मुक़ाबले भावनात्मक व मानसिक रूप से कमज़ोर होते हैं. वो किसी भी नकारात्मक अनुभव का शिकार होते हैं, तो जल्द ही मानसिक रूप से बीमार हो जाते हैं.

–     बहुत अधिक ईर्ष्या या द्वेष भी आपके मन को बीमार करता है. किसी की कामयाबी से जलना, किसी की लाइफस्टाइल से ईर्ष्या करना सही नहीं. ख़ुद को पॉज़िटिव बनाएं, न कि एक निगेटिव व्यक्ति.

उपाय

–     अगर आप डर व घबराहट का शिकार हो रहे हैं, तो अपने डर के अनहेल्दी कारणों को पहचानें.

–     अनहेल्दी कारणों को हेल्दी बातों से रिप्लेस करना सीखें.

–     कहीं आप यह तो नहीं सोचने लगे कि यह दुनिया विश्‍वास के लायक ही नहीं. यह सोच ही अपने आप में एक्स्ट्रीम है. अपनी सोच को बदलें.

–     लोगों पर विश्‍वास करना सीखें.

–     पॉज़िटिव लोगों के साथ रहें. उन लोगों के संपर्क में रहें, जो आपकी हमेशा मदद करते हैं. आपको यह महसूस होगा कि सभी लोग एक जैसे नहीं होते.

–     किसी बात को लेकर मन में शंका है, अपराधबोध है, तो बेहतर होगा अपनी शंकाएं बातचीत से दूर कर लें. बातों को मन में रखने से, भीतर ही भीतर कुढ़ने से नकारात्मकता ही बढ़ेगी.

–     माफ़ करना और माफ़ी मांगना सीखें.

–     अपने मन को पहचानें. अपने मन की बीमारी से भागें नहीं, उसका सामना करें और इलाज करवाएं.

–     जब कभी परिस्थितियों से भागने का मन हो, तो अपनी हॉबीज़ में मन लगाएं.

–     स्विमिंग, डान्सिंग, म्यूज़िक, ट्रेकिंग- ये तमाम चीज़ें एक तरह का मेडिटेशन हैं, जो आपको नकारात्मक भावनाओं से बाहर निकालकर पॉज़िटिव बनाने में मदद करती हैं.

–  नए दोस्त बनाएं, उनसे मिलेंगे तो ध्यान निगेटिव बातों से हटेगा.

–     कभी किसी शांत जगह जाकर छुट्टियां बिताएं.

–     मेडिटेशन और योग की शरण लें.

–     रोज़ाना लाइट एक्सरसाइज़ करें.

–     नकारात्मक लोगों से दूरी बनाए रखें.

–     अपने खानपान और इम्यूनिटी पर ख़ासतौर से ध्यान दें.

–     हेल्दी फूड खाएं, ताकि हार्मोंस असंतुलित न हों. हैप्पी हार्मोंस को रिलीज़ करनेवाले फूड खाएं.

–     रिसर्च बताते हैं कि घर में पालतू बिल्ली या कुत्ता रखने से फील गुड हार्मोंस रिलीज़ होते हैं और स्ट्रेस हार्मोंस कार्टिसोल कम होते हैं. ये तरीक़ा भी आज़माया जा सकता है.

–     बेहतर होगा कि अपने मन की बात अपनों से शेयर करें. अगर ऐसा संभव न हो, तो बिना देर किए एक्सपर्ट के पास जाएं. फूड, जो बना देते हैं आपका मूड

–     डार्क चॉकलेट मूड ठीक करके डिप्रेशन दूर करता है. यह एंडॉर्फिन हार्मोंस के स्तर को बढ़ाता है और इसमें मौजूद कई अन्य तत्व भी फील गुड के एहसास को बढ़ानेवाले हार्मोंस को बढ़ाकर डिप्रेशन दूर करते हैं.

–     कार्बोहाइड्रेट्स सेरोटोनिन हार्मोंस के स्तर को बढ़ाते हैं और आपके मूड को बेहतर बनाकर हैप्पी हार्मोंस को रिलीज़ करते हैं.

–     विटामिन बी बेहद ज़रूरी है हैप्पी हार्मोंस के रिलीज़ के लिए. शोध बताते हैं कि विटामिन बी6 की कमी से चिड़चिड़ापन, भूलने की समस्या, हाइपरएक्टिव हो जाना जैसी समस्याएं होती हैं. विटामिन बी12 भी ब्रेन बूस्टिंग तत्व है. आप विटामिन बी के लिए अपने डायट में हरी पत्तेदार सब्ज़ियां शामिल करें.

–     गाजर, दही, फिश, ड्रायफ्रूट्स, दालचीनी, अदरक, लहसुन, कालीमिर्च, जीरा, करीपत्ता आदि में भी हार्मोंस को संतुलित रखने के गुण होते हैं. इन सभी को अपने डेली डायट में शामिल करें.

– ब्रह्मानंद शर्मा

यह भी पढ़ें: कोलेस्ट्रॉल लेवल तेज़ी से घटाने के 10+ असरदार व आसान उपाय (10+ Natural Ways To Lower Your Cholesterol Levels)
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बीमार न होने दें मन को (Take Care Of Your Emotional Health)
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सारी हसरतें पूरी नहीं होतीं, कुछ ख़्वाब अधूरे भी रह जाते हैं, ज़िंदगी में सब कुछ मनचाहा ही हो यह ज़रूरी तो नहीं, ज़िंदगी को भी तो कभी मनमानी करने दें... ख़्वाहिशों पर बंदिशें तो नहीं लग सकतीं, लेकिन उनकी पूरी होने की शर्त क्यों?
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