यदि आपका बेटा/बेटी भी कुछ इसी तरह का बर्ताव करता है, तो इस सिलसिले को ज़्यादा दिन न चलने दें. यदि आप उसकी मनगढ़ंत बातों को नज़रअंदाज़ करती रहेंगी, तो उसे झूठ बोलने और बातें बनाने की आदत पड़ते देर नहीं लगेगी. पढ़ाई, खाने-पीने से लेकर खेल-कूद तक, हर चीज़ में वो झूठ बोलने लगेगा, इसलिए पछताने से अच्छा है कि उसकी बातों और हरक़तों पर नज़र रखें. यदि आपको लगे कि वो अक्सर झूठ बोलने लगा है, तो उसकी ये आदत छुड़ाने में जुट जाएं. छोटी-छोटी बातों में झूठ बोलने की आदत बाद में डिसऑर्डर में बदल सकती है, जैसे- बच्चे का आक्रामक होना, लड़ाई-झगड़ा करना, गाली-गलौज करना आदि.
जब बच्चा बातों को समझने लगे, तो उसे सही-ग़लत और अच्छे-बुरे का फर्क़ बताएं. शरारतों में उसका साथ ज़रूर दें, मगर उसकी शैतानियों पर हिदायत देना न भूलें. सच बोलने के लिए बच्चे को मारे-पीटे नहीं, बल्कि प्यार से कुछ इस तरह समझाएं कि वह सच बोलने के लिए प्रेरित हो. साथ ही अपनी ग़लती मानने में भी हिचकिचाए नहीं. पेशे से बैंकिंग प्रोफेशनल माधुरी बताती हैं, “एक दिन मैं ऑफिस से घर लौटी तो देखा कि डस्टबिन में पेपर के कुछ जले हुए टुकड़ों में सौंफ के दानों को लपेटकर फेंका गया है. इसे देखकर मैं समझ गई कि मेरे बेटों ने घर पर सिगरेट बनाने की कोशिश की है. इस बारे में जब मैंने बड़े बेटे से पूछा, तो कहने लगा ‘मम्मी, मुझे नहीं पता, आप किस बारे में बात कर रही हैं?’ उस व़क्त तो मैं शांत रही, मगर बाद में बेटे को प्यार से समझाया कि इस तरह झूठ बोलने की आदत सही नहीं है. यदि आपसे कोई ग़लती हो गई है, तो उसे स्वीकार कर लो, मम्मा कुछ नहीं बोलेगी.”
इस बारे में एक्सपर्ट्स कहते हैं कि जैसे ही पैरेंट्स को अंदेशा हो कि उनका बच्चा आए दिन झूठ बोल रहा है, तो उन्हें तुरंत अलर्ट हो जाना चाहिए, लेकिन पैरेंट्स को इस बात का भी ध्यान रखना चाहिए कि वो सफेद झूठ और गंभीर झूठ के फर्क़ को पहले खुद समझें, फिर बच्चे को समझाएं. निरंतर झूठ बोलने के बुरे परिणाम हो सकते हैं, ऐसे में जल्द से जल्द प्रोफेशनल काउंसलर की मदद लें.
♦ बच्चे के झूठ में छिपे मैसेज को समझने की कोशिश करें.
♦ बोला गया झूठ मामूली है या गंभीर ये जानने का प्रयास करें.
♦ बच्चे के हाव-भाव, उठने-बैठने के ढंग पर बारीक़ी से नज़र रखें.
♦ उसे ज़्यादा नसीहत देने की कोशिश न करें.
♦ जिस पल आप बच्चे को लेक्चर देना शुरू करेंगी वो आपकी बातों को अनसुना करने लगेगा.
♦ किसी भी बात पर ओवररिएक्ट न करें. निष्पक्ष रहते हुए बच्चे को चेतावनी दें और उसे अपनी ग़लती मानने के लिए प्रेरित करें.
♦ बच्चे पर ‘आप तो झूठे हो’ का लेबल न लगाएं.
♦ आपका सख़्त व्यवहार न स़िर्फ बच्चे के आत्मसम्मान को कमज़ोर करेगा, बल्कि वो और झूठ बोलने लगेगा.
♦ सोते व़क्त बच्चे को सच की सीख देने वाली कहानियां सुनाएं.
♦ यदि बच्चे की हर बात में झूठ शामिल होने लगे, तो तुरंत वेलनेस कंसल्टेंट से संपर्क करके उसकी इस बुरी आदत की वजह जानने की कोशिश करें.
एक पांच साल के बच्चे और एक टीनएजर के झूठ बोलने का तरीक़ा अलग-अलग हो सकता है, लेकिन इसकी वजह अमूमन भय, असुरक्षित माहौल (जहां बच्चा पैरेंट्स से खुलकर बात नहीं कर सकता) आदि ही होता है. विशेषज्ञों के अनुसार, छोटे बच्चे बहुत साधारण झूठ बोलते हैं, क्योंकि वो अपनी हर चीज़ के लिए बड़ों पर निर्भर रहते हैं. प्री-स्कूल में जाने वाले बच्चे अपनी ओवरएक्टिव इमैजिनेशन की वजह से झूठ बोलते हैं. इस उम्र में कल्पनाएं काफ़ी ऊंची होती हैं, जैसे रेनबो से बातें करना, सुपर हीरोज़ से दोस्ती आदि. मसलन, अगर आप एक तीन साल के बच्चे से पूछें कि प्लेट किसने तोड़ी या बुक किसने फाड़ी, तो वो अपने सॉफ्ट टॉय की ओर इशारा करेगा. इस स्थिति में डांटने-फटकारने, ग़ुस्सा करने की बजाय पैरेंट्स को शांति से बच्चे को समझाना चाहिए कि झूठ बोलना अच्छी बात नहीं है. स्कूल में पढ़ने वाले बच्चों की झूठ बोलने की आदत बहुत नुक़सानदेह साबित हो सकती है. वो अक्सर होमवर्क न करने, अपनी ग़लती/कमी आदि छुपाने के लिए झूठ बोलते हैं.
35 वर्षीया अनिता जैन बताती हैं, “स्कूल शुरू होने के क़रीब एक महीने बाद मेरी बेटी की टीचर ने नोट भेजा कि वो मैथ का होमवर्क नहीं करती है. मेरे पूछने पर उसने कहा कि कोई होमवर्क नहीं मिला था. मैंने शांति से उसकी बात सुनी और ग़ुस्सा होने की बजाय मैंने उसमें मैथ्स के लिए इंटरेस्ट पैदा करने की कोशिश की. आईपैड पर मैथ्स से रिलेटेड कई ऐप्स डाउनलोड किए. उसे ऐप्स पर मैथ्स सॉल्व करना सिखाया. अब वो काफ़ी अच्छा कर रही है.”
टीनएज का समय बच्चों और पैरेंट्स दोनों के लिए चुनौतीपूर्ण होता है. अतः इस समय पैरेंट्स को बच्चों पर बहुत ध्यान देने की ज़रूरत होती है. दरअसल, इस उम्र में बहुत ज़्यादा बंदिशों की वजह से भी बच्चे झूठ बोलने लगते हैं. 16 साल की अनन्या त्यागी कहती हैं, “मेरे पैरेंट्स की सोच बहुत पुरानी है, वो मुझे दोस्तों के साथ घूमने-फिरने, शॉर्ट कपड़े पहने की इजाज़त नहीं देते हैं, यहां तक कि मैं अपनी फीमेल फ्रेंड्स के साथ भी घूम-फिर नहीं सकती. जब मैं उनसे इन बंदिशों के बारे में पूछती हूं, तो बहस और झगड़ा हो जाता है, इसलिए मुझे कई बार झूठ बोलना पड़ा है कि मैं अपनी फलां दोस्त के घर पढ़ने जा रही हूं. एक बार घर से निकलने पर मैं वही करती हूं जो मुझे करना होता है. मैं ख़ुद को संभाल सकती हूं.” एक्सपर्ट्स कहते हैं कि उम्र के इस नाज़ुक दौर में बच्चों को संभालने के लिए पैरेंट्स को हर क़दम पर उनका साथ देना होगा, उन्हें विश्वास में लेकर रिश्ता मज़बूत बनाना होगा, तभी वो अपनी सारी बातें आपसे शेयर करेंगे. उन्हें हर चीज़ आज़माने का मौक़ा ज़रूर दें, लेकिन उसके फ़ायदे-नुक़सान भी बता दें ताकि भविष्य में कोई भी काम करने से पहले ख़ुद अपने विवेक का इस्तेमाल कर सकें.
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