शादी से पहले होनेवाले कपल को तरह-तरह की हिदायतें दी जाती हैं. ट्रेनिंग दी जाती है. नए माहौल में एडजेस्ट होने से लेकर खाना पकाने तक और ससुराल में सबका मन जीत लेने से लेकर पार्टनर को काबू में करने तक के गुरुमंत्र दिए जाते हैं. जिसकी समझ में जो आता है, वो वही स्पेशल टिप देकर चला जाता है. लेकिन इन सबके बीच एक बात जो अक्सर नज़रअंदाज़ कर दी जाती है, वो है फैमिली प्लानिंग की बात.
– दरअसल हमारे समाज में शादी का दूसरा मतलब ही होता है बच्चे. जी हां, शादी होते ही हर कोई गुड न्यूज़ सुनना चाहता है, ऐसे में फैमिली प्लानिंग के बारे में भला कौन सोचे?
– शादी के बाद यदि एक साल के अंदर गुड न्यूज़ नहीं मिलती, तो लोग बातें बनाने लगते हैं, क्योंकि हम मदरहुड को बहुत ही ग्लोरिफाई करते हैं.
– मां बनना ही जैसे एक स्त्री की ज़िंदगी का सबसे बड़ा उद्देश्य है, उसके बिना उसके अस्तित्व का कोई महत्व ही नहीं.
– अक्सर पैरेंट्स अपने बच्चों के मन यह बात डाल देते हैं कि बेहतर होगा कंट्रासेप्शन यूज़ न किया जाए और पहला बच्चा जितना जल्दी हो जाए, उतना अच्छा होगा.
– अक्सर बच्चे को लोग शादी व रिश्ते की सिक्योरिटी मान लेते हैं, यह भी वजह है कि शादी के बाद गुड न्यूज़ का ही इंतज़ार करते हैं.
– आजकल बिज़ी शेड्यूल के चलते बहुत-सी प्राथमिकताएं बदल रही हैं. इनका असर शादी व फैमिली प्लानिंग पर भी पड़ा है. ऐसे में अनचाहा गर्भ यानी एक्सिडेंटल प्रेग्नेंसी बहुत से ़फैसले बदलने को मजबूर कर सकती है.
– इन फैसलों में करियर से लेकर फाइनेंशियल प्लानिंग तक शामिल है.
– पहला बच्चा कब चाहते हैं, दूसरा बच्चा यदि चाहते हैं, तो कितने अंतराल के बाद… बच्चा होने पर किस तरह से ज़िंदगी बदलेगी, ज़िम्मेदारियां बढ़ेंगी, ख़र्चे बढ़ेंगे, काम बढ़ेगा… इन सब पर चर्चा ज़रूरी है.
– बच्चे की ज़िम्मेदारी व उससे जुड़े काम कपल किस तरह से आपस में बांटेंगे, करियर को किस तरह से मैनेज करेंगे… इन तमाम बातों पर चर्चा बेहद ज़रूरी है.
अब सवाल यह है कि इन बातों पर चर्चा कब करनी चाहिए?
– ज़ाहिर-सी बात है, ये तमाम बातें कपल को शादी से पहले ही कर लेनी चाहिए.
– दोनों के क्या विचार हैं, किसकी कितनी सहमति है, यह जानना बेहद ज़रूरी है, ताकि बाद में विवाद न हो.
– इसी प्लानिंग का एक बड़ा हिस्सा है- कंट्रासेप्शन. किस तरह का कंट्रासेप्शन यूज़ करना है, किसे यूज़ करना है, कब तक यूज़ करना है आदि बातें कपल्स पहले ही डिसाइड कर लें, वरना एक्सिडेंटल प्रेग्नेंसी बहुत से प्लान्स चेंज करवा सकती है.
– कंट्रासेप्शन यदि फेल हुआ, तो एक्सिडेंटल प्रेग्नेंसी के लिए मानसिक रूप से तैयार रहना होगा. आपका करियर व फाइनांस बहुत हद तक इससे प्रभावित होगा, तो उस पर भी चर्चा ज़रूरी है.
– आप चाहें तो काउंसलर के पास जाकर भी सलाह ले सकते हैं.
– लेकिन ज़रूरी है कि शादी से पहले ही इन सब बातों को लेकर आप क्लीयर हो जाएं, ताकि बाद में एक-दूसरे पर टीका-टिप्पणी या आरोप न लगें.
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– अक्सर कपल शादी से पहले इन बातों को जान-बूझकर भी अवॉइड करते हैं, क्योंकि उन्हें झिझक होती है.
– उन्हें यह भी लगता है कि कहीं इतनी-सी बात को लेकर बनता रिश्ता टूट न जाए.
– लड़कियों में भी हिचक होती है, क्योंकि उन्हें लगता है कि पार्टनर यह न समझे कि वो मर्यादा के बाहर जाकर बात कर रही है.
– लेकिन बेहतर यही होगा कि आप हिचकिचाहट छोड़कर अपनी सारी शंकाएं दूर कर लें, ताकि बाद में यह महसूस न हो कि काश! पहले ही बात कर ली होती.
– इससे आपको अपने होनेवाले पार्टनर की परिपक्वता, सोच-समझ व मानसिकता का भी अंदाज़ा हो जाएगा.
– वो कितना सुलझा हुआ है, उसका थॉट प्रोसेस कितना क्लीयर है, यह आपको पता चल जाएगा.
– आप दोनों को इस बात पर भी चर्चा करनी होगी कि आप दोनों की ही ज़िंदगी बच्चा होने के बाद बहुत ज़्यादा बदल जाएगी.
– एक तरफ़ ख़ुशख़बरी होगी, पर दूसरी तरफ़ ज़िम्मेदारियां भी.
– उसी के अनुसार ख़र्च बढ़ेंगे, तो किस तरह से पहले से ही कितना अमाउंट इंवेस्ट करना है, ताकि बच्चा होने पर आपकी फाइनेंशियल हालत स्थिर रहे, उसकी प्लानिंग भी ज़रूरी है.
– बच्चे के लिए कौन-कौन से प्लान्स लेने हैं, इसकी जानकारी ज़रूरी है.
– स़िर्फ आर्थिक तौर पर ही नहीं, मानसिक व शारीरिक तौर पर भी बदलाव होंगे.
– हल्का डिप्रेशन, शरीर में बदलाव, लाइफस्टाइल में बदलाव- इन सब पर भी चर्चा ज़रूरी है.
– आपकी सेक्स लाइफ भी बदलेगी, जिसे लेकर हो सकता है आपसी तनाव हो जाए, तो यहां यदि आप पहले ही चर्चा करके एक-दूसरे के मन को जान लेंगे, परिपक्वता को परख लेंगे, तो भविष्य की चुनौतियों का सामना बेहतर तरी़के से कर पाएंगे.
– बच्चा होने पर देर रात तक जागना, उसकी पूरी देखभाल करना शरीर व मन को थका सकता है और यह तनाव भी दे सकता है, जिससे आपस में विवाद भी हो सकते हैं.
– करियर में बदलाव भी होगा. हो सकता है किसी एक को नौकरी छोड़नी भी पड़े या पार्ट टाइम काम करना पड़े, तो वो किस तरह से मैनेज होगा.
– बच्चा होने के कितने समय बाद फिर से करियर को महत्व देना है, किस तरह से बच्चे की परवरिश करनी है, ये तमाम बातें छोटी लगती हैं, लेकिन आपके रिश्ते के लिए बहुत महत्वपूर्ण हैं.
यह सच है कि स्त्री को ही प्रकृति ने गर्भधारण का दायित्व दिया है. ऐसे में कंसीव करने के बाद यह सोचना कि यह कोई बड़ी मुसीबत है या यह बच्चा आपकी ही ज़िम्मेदारी नहीं है आदि ग़लत है. यह सच है कि बच्चा दोनों की ज़िम्मेदारी है, लेकिन स्त्री की शारीरिक संरचना व प्रकृति द्वारा प्रदत्त दायित्व के चलते उसकी ज़िम्मेदारी थोड़ी अलग व अधिक हो ही जाती है. निशांक व रिया ने फैमिली प्लानिंग नहीं की थी और न ही उस पर चर्चा की थी. नतीजा- शादी के एक साल के अंदर ही उनको बच्चा हो गया, लेकिन यह बच्चा रिया को बोझ लगने लगा, क्योंकि वो बात-बात पर निशांक से शिकायत करती कि बच्चा दोनों का है, तो तुम तो मज़े से ऑफिस चले जाते हो और मुझे इतना कुछ सहना पड़ता है. जबकि रिया वर्किंग नहीं थी, बावजूद इसके उसे यह अपेक्षा रहती थी कि यदि वो रात में जागकर बच्चे की नैप्पी बदल रही है, तो निशांक को भी यह करना होगा. प्रेग्नेंसी के बाद रिया में शारीरिक बदलाव भी आ गए थे, जिसको लेकर वो डिप्रेशन में रहने लगी थी. निशांक के अलावा रिया के जाननेवाले व सहेलियां भी उसे समझाती थीं कि यह नेचुरल है और समय के साथ सब नॉर्मल हो जाएगा, इसलिए रिया को बदले हालातों को स्वीकारना होगा, वो भी ख़ुशी-ख़ुशी. लेकिन रिया कुछ समझने को तैयार ही नहीं थी. उसे लगता था उसकी आज़ादी छिन गई, उसकी आउटिंग व पार्टीज़ बंद हो गईं, वो मोटी हो गई… जिसका असर दोनों के रिश्ते के साथ-साथ घर में आए नए मेहमान पर भी पड़ रहा था. एक्सिडेंटल प्रेग्नेंसी पर यदि रिया व निशांक ने पहले चर्चा की होती या फिर पहले से ही उन्होंने फैमिली प्लानिंग की चर्चा की होती, तो परिस्थितियां बेहतर होतीं.
इसके अलावा बेहतर होगा कि आज की जेनरेशन भी यह सच्चाई स्वीकारे कि प्रकृति ने स्त्री-पुरुष को अलग-अलग बनाया है और उसे कोई भी बदल नहीं सकता. बेहतर होगा कि अपने बच्चे का ख़ुशी-ख़ुशी स्वागत करें, ताकि वो सकारात्मक माहौल में पल-बढ़ सके.
ज़रूरत महसूस हो, तो काउंसलर की मदद भी ले सकते हैं या घर के बड़े-बज़ुर्गों का मार्गदर्शन लें.
– ब्रह्मानंद शर्मा
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