जब ख़रीदना हो घर ( When Buying house)

Buying house

बढ़ती महंगाई के साथ प्रॉपर्टी के रेट्स भी तेज़ी से बढ़ रहे हैं. ऐसे में घर ख़रीदते समय जल्दबाज़ी में लिया गया कोई भी ़फैसला आपको भारी पड़ सकता है. घर ख़रीदते समय किन बातों का रखें ख़ास ख़्याल? आइए, जानते हैं.

पहला घर देखकर उसके दीवाने न हो जाएं
ङ्गफर्स्ट इंप्रेशन इज़ द लास्ट इंप्रेशनफ अगर आप मन में ऐसी सोच रखकर घर ख़रीदने जा रहे हैं, तो आप ग़लत साबित हो सकते हैं. ये ज़रूरी नहीं कि पहली नज़र में जो मकान आपके मन को भा जाए, वो आपके लिए वाक़ई ड्रीम होम साबित हो. हो सकता है, रात के समय रोशनी से जगमगाते ख़ूबसूरत मकान में सुबह सूरज की एक किरण भी न पहुंचती हो. ये भी हो सकता है कि जो घर अंदर से बिल्कुल चकाचक, साफ़-सुथरा नज़र आ रहा है, वो बाहर से पपड़ीनुमा दीवारों से घिरा हो या घर में लीकेज आदि की समस्या हो. अतः एक बार देखकर उसी घर को ख़रीदने की न ठान लें. घर को दो-चार बार और देखें, फिर निर्णय लें.

समझें प्रॉपर्टी की भाषा
फलां व्यक्ति ने कह दिया कि वो मकान 1000 स्क्वायर फीट है या बिल्डर द्वार मिली बुकलेट पर साफ़ लिखा है कि प्रत्येक मकान 1200 स्क्वायर फीट है, तो इसका मतलब ये नहीं है कि आप उन पर विश्‍वास कर लें, बल्कि ख़ुद प्रॉपर्टी एरिया के बारे में जानने की कोशिश करें. प्रॉपर्टी एडवोकेट योगेश शर्मा के अनुसार, ङ्गङ्घअधिकांशतः प्रॉपर्टी एरिया को तीन नामों से जाना जाता है सुपर बिल्ट अप, जम्बो बिल्ट अप व कारपेट एरिया. ऐसे मकान जिसमें लिफ्ट, पैसेज आदि का समावेश किया जाता है उसे सुपर बिल्ट अप एरिया कहते हैं और जिसमें स्विमिंग पुल से लेकर क्लब, जिम व गार्डन तक की जगह शामिल की जाती है, उसे जम्बो बिल्ट अप एरिया कहा जाता है और कारपेट एरिया चहारदीवारी के बीच की जगह को कहते हैं. अतः सही प्रॉपर्टी का चुनाव करने के लिए तीनों के फ़र्क़ को जानें, क्योंकि बिल्डर्स सामान्यतः सुपर या जम्बो बिल्ट अप एरिया का ज़िक्र करते हैं, जिसे अक्सर लोग कारपेट एरिया समझकर ख़रीद लेते हैं.

बजट तय कर लें
आप पहले घर देखेंगे, उसे पसंद करेंगे और उसके बाद पैसों का इंतज़ाम करेंगे, इस सोच के साथ घर ख़रीदना आपको भारी पड़ सकता है. मकान देखने या ख़रदीने से पहले अपना बजट तय कर लें. इसके लिए सबसे पहले ब्रोकर से नहीं, बैंक मैनेजर से मिलें और इस बात की जानकारी लें कि आपकी सैलरी पर कितना होम लोन मिल सकता है और कितनी राशि आप अपनी जमापूंजी से लगा सकते हैं. होम लोन के साथ-साथ स्टैंप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन एवं ब्रोकेज की रक़म भी बजट में ज़रूर जोड़ें. और हां, इंटीरियर डिज़ाइनिंग की राशि भी, क्योंकि नए घर में लोगों की तारी़फें बटोरने के लिए इंटीरियर डेकोरेशन तो करना ही होगा. अतः बजट निश्‍चित होने के पश्‍चात ही घर ख़रीदने जाएं.

प्रॉपर्टी के काग़ज़ात दोस्तों के भरोसे न छोड़ें
ब्रोकर आपका बहुत अच्छा दोस्त है या आपका जिगरी दोस्त लीगल-इल्लीगल प्रॉपर्टी की अच्छी समझ रखता है, इसलिए उनके भरोसे प्रॉपर्टी से जुड़े सारे पेपर वर्क छोड़ने की ग़लती न करें. काग़ज़ात की सही जांच-परख के लिए प्रोफेशनल लीगल एडवाइज़र की सहायता लें, जो प्रॉपर्टी के साथ ही प्रॉपर्टी लॉ की भी समझ रखता हो और जिसकी मदद से आप लीगली स्ट्रॉन्ग एग्रीमेंट साइन कर सकें. प्रॉपर्टी एडवोकेट योगेश शर्मा कहते हैं, ङ्गङ्घयदि आप रिसेल प्रॉपर्टी ख़रीद रहे हैं तो शेयर सर्टिफिकेट, होम लोन ड्यूज़ सर्टिफिकेट, नो ऑब्जेक्शन सर्टिफिकेट (एनओसी), चैन एग्रीमेंट रजिस्ट्रेशन, ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (ओसी), सोसायटी एसेसमेंट टैक्स रिसिप्ट आदि काग़ज़ात मौजूदा मालिक के पास हैं या नहीं, यह ज़रूर चेक करें.

आंख मूंदकर भरोसा न करें
चाहे ब्रोकर आपका दोस्त हो या बिल्डर आपका रिश्तेदार, घर ख़रीदते वक़्त किसी पर भी आंख मूंदकर विश्‍वास करने की ग़लती न करें. प्रॉपर्टी एरिया, डॉक्यूमेंट्स आदि से जुड़ी सभी छोटी-बड़ी जानकारी अपने पास रखें. कपड़ों-गहनों की तरह आप महज कुछ वर्षों के लिए मकान नहीं ख़रीद रहे, बल्कि ताउम्र रहने के लिए मकान की ख़रीददारी कर रहे हैं. अतः दूसरों पर भरोसा न करें और अच्छी तरह सोचने-समझने के बाद ही घर ख़रीदें.

पूछें प्रॉपर्टी से जुड़े सवाल
घर ख़रीदते समय न स़िर्फ मकान के बारे में पूरी जानकारी रखें, बल्कि बिल्डर्स से जुड़े सवाल भी ज़रूर पूछें. फिर चाहे बिल्डर कितना भी मशहूर क्यों न हो. प्रॉपर्टी एडवोकेट योगेश शर्मा के अनुसार, ङ्गङ्घयदि आप सीधे बिल्डर से प्रॉपर्टी ख़रीद रहे हैं, तो पता कर लें कि बिल्डर के पास टाइटल सर्टिफिकेट है या नहीं, राइट टु डेवलेपमेंट के तहत वो बिल्डिंग बना सकता है या नहीं, उसके पास ऑक्यूपेशन सर्टिफिकेट (ओसी) है या नहीं आदि. यदि प्रॉपर्टी अंडरकंस्ट्रक्शन है तो तय समय पर पजेशन न मिलने पर बिल्डर द्वारा कम्पन्सेशन कॉस्ट कितना होगा आदि.फफ

लोकैलिटी चेक लें
फ्लैट ख़रीदते समय लोकैलिटी यानी मुहल्ले/इलाके (जहां फ्लैट मौजूद है) का भी ख़ास ध्यान रखें. ख़ासकर तब जब आपके साथ बच्चे भी हों, क्योंकि बच्चों की परवरिश पर लोकैलिटी का बहुत प्रभाव पड़ता है. साथ ही ये भी ध्यान में रखें कि फ्लैट से स्टेशन, बस स्टॉप आदि कितनी दूरी पर है? बस, ऑटो, टैक्सी आदि की सुविधा है या नहीं? देर-सबेर आसपास की सड़कें आवाजाही के लिए सुरक्षित हैं या नहीं, दुकान आदि कितनी दूरी पर है?

सोसायटी मेंटेनेंस के बारे में पता करें
मकान ख़रीदते समय प्रॉपर्टी एरिया, स्टैंप ड्यूटी, रजिस्ट्रेशन एवं ब्रोकेज की रक़म तक ही सीमित न रहें, बल्कि मकान ख़रीदने के बाद पैसों से जुड़ा कौन-कौन-सा मसला सिर उठा सकता है, इसकी भी पूरी जानकारी रखें यानी मेंटेनेंस, एनओसी आदि. एडवोकेट योगेश शर्मा के अनुसार, ङ्गङ्घयदि आप रिसेल फ्लैट ख़रीदने जा रहे हैं, तो ड्यूज़ (बकाया राशि) से संबंधित पूरी जानकारी अवश्य रखें, जैसे- पूर्व मालिक ने मेंटेनेंस भरा है या नहीं, प्रॉपर्टी टैक्स चुकता किया है या नहीं या फिर पानी बिल, लाइट बिल बकाया तो नहीं है आदि.फफ यदि आप ड्यूज़ की जानकारी को नज़रअंदाज़ करेंगे, तो हो सकता है, सारे ड्यूज़ आपको ही भरने पड़ें.

पार्किंग स्पेस न भूलें
मेट्रो सीटीज़ में पार्किंग को लेकर काफ़ी मुसीबतें झेलनी पड़ती हैं. कुछ जगहों पर पार्किंग के लिए मंथली पे करना पड़ता है, तो कुछ बिल्डर्स फ्लैट ख़रीदते वक़्त ही पार्किंग के पैसे भी ले लेते हैं. अतः अपनी गाड़ी की सुरक्षा के लिए पार्किंग से जुड़े मसले भी ज़रूर जानें, जैसे- वहां पार्किंग की सुविधा है या नहीं? पार्किंग चार्जेस क्या हैं?

घर वो जगह है, जहां हम दुनिया-जहान से दूर बेहद निजी और सुकून के पल बिताते हैं. अतः अपने सपनों का आशियाना सजाते समय हर तरह से तसल्ली कर लें, ताकि उस घर में आप अपनी पूरी ज़िंदगी सुकून से गुज़ार सकें.

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Meri Saheli Team

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