हमारे शारीरिक व मानसिक विकास के लिए पोषण बहुत ज़रूरी है, पर क्या हमें हमारे रोज़ के आहार से ज़रूरी पोषण मिल रहा है या कहीं कोई कमी है, जो हमें इतनी बीमारियां दे रही है. लोगों की रोगप्रतिरोधक क्षमता कम हो रही है और वे आसानी से बीमारियों की चपेट में आ रहे हैं. आख़िर इसका कारण क्या है?
– आजकल फल व सब्ज़ियों को पकने या तैयार होने से पहले ही तोड़ लिया जाता है, जिससे उनके पोषक तत्व 80% ही रह जाते हैं. मार्केट से घर तक
पहुंचते-पहुंचते उनके पोेषक तत्वों की संख्या और भी कम हो जाती है.
-सब्ज़ियों की गुणवत्ता घटकर 50% से भी कम रह गई है. न अब सब्ज़ियां उतनी ताज़ी मिलती हैं और न ही उनमें वो क्वालिटी रह गई है. रही-सही कसर कीटनाशकों ने पूरी कर दी है.
– बढ़ते प्रदूषण और तनाव से शरीर में टॉक्सिन का लेवल भी बढ़ रहा है, जिससे बचने के लिए शरीर के लिए
एंटीऑक्सीडेंट्स जैसे पोषक तत्वों की ज़रूरत भी बढ़ गई है, जबकि भोजन में इसकी मात्रा घटकर आधी रह गई है.
– पहले जहां ब्लड प्रेशर, डायबिटीज़ और हार्ट प्रॉब्लम्स बड़ी उम्र की बीमारियां मानी जाती थीं, वहीं आज ये कम उम्र के लोगों को अपने चपेट में ले रही हैं.
– संतुलित आहार लेना उतना आसान नहीं, जितना हमें लगता है. डॉक्टर्स के मुताबिक़ सेहतमंद रहने के लिए हर किसी को रोज़ाना फल व सब्ज़ियों की 9 सर्विंग्स लेनी चाहिए, जो हमारे लिए मुश्किल है. ऐसे में इस कमी को पूरा करने के लिए हमें खाने के अलावा सप्लीमेंट्स की ज़रूरत पड़ रही है.
– उदाहरण के लिए विटामिन सी की रोज़ाना की ज़रूरत को पूरा करने के लिए हमें 20 संतरे खाने चाहिए, जो किसी के लिए भी मुमकिन नहीं. ऐसे में विटामिन सी
की कमी से उससे जुड़ी बीमारियां होने लगती हैं.
आजकल मार्केट में हेल्थ सप्लीमेंट्स और डायटरी सप्लीमेंट्स की बाढ़ आई हुई है, पर किसी पर भी आंख मूंदकर विश्वास करना हमारे लिए ही घातक साबित हो सकता है, क्योंकि यहां भी मिलावट का बहुत बड़ा बाज़ार है.
– सप्लीमेंट्स के लिए ज़्यादातर कॉन्संट्रेटेड प्रोडक्ट्स का इस्तेमाल किया जाता है. ज़्यादातर मैन्यूफैक्चरर्स सस्ते व
लोअर ग्रेड के कॉन्संट्रेटेड प्रोडक्ट्स इस्तेमाल कर ज़्यादा पैसे बचाने की कोशिश करते हैं.
– आमतौर पर सभी विटामिन्स सिंथेटिक होते हैं और पेट्रोलियम बेस्ड केमिकल्स से बने होते हैं. सिंथेटिक विटामिन्स में प्राकृतिक तत्वों की कमी होती है, जिससे वे अच्छी तरह शरीर में नहीं घुलते.
– कॉर्न, दूध, गेहूं, सोया जैसे स्रोतों से बनाए गए सप्लीमेंट्स से एलर्जी की संभावना ज़्यादा होती है, क्योंकि इन तत्वों में एलर्जेंस के अंश पाए जाते हैं. नतीजतन
बहुत-से लोगों को इनके उपयोग से एलर्जिक रिएक्शन्स हो जाते हैं.
– आमतौर पर लगभग सभी विटामिन पिल्स में ल्युब्रिकेंट, फिलर्स, आर्टीफिशियल कलर्स और फ्लेवर्स मिलाए जाते हैं. कॉर्न स्टार्च जैसे फिलर्स मिलाकर पिल्स को बड़ा व अट्रैक्टिव दिखाने की कोशिश की जाती है.
– सप्लीमेंट्स में 50% से ज़्यादा इस्तेमाल किए गए केमिकल्स के नाम लेबल पर दिए ही नहीं जाते.
– ज़्यादातर सप्लीमेंट्स में इस्तेमाल किए गए न्यूट्रिएंट्स की मात्रा असंतुलित होती है, जो सही नहीं है. हमारे शरीर में पहले से ही तत्वों का असंतुलन होता है, ऐसे में असंतुलित मात्रा वाले सप्लीमेंट्स स्थिति को और भी बिगाड़ देते हैं.
– ग्राहकों को लुभाने के लिए बहुत-से सप्लीमेंट्स के लेबल पर 15-20 तत्वों के नाम लिखे होते हैं, पर इनकी डोज़ पर्याप्त मात्रा में नहीं रहती, जिससे ये कुछ ख़ास फ़ायदेमंद साबित नहीं होते.
– क्वालिटी हेल्थ सप्लीमेंट्स प्राकृतिक स्रोतों से बनाए जाते हैं, इसलिए सबसे पहले ध्यान दें कि वो ऑर्गेनिक हों, न कि सिंथेटिक.
– सप्लीमेंट्स के लेबल में यह ज़रूर देखें कि ये पिल्स किन प्राकृतिक तत्वों से बनाए गए हैं और उनकी मात्रा क्या है.
– सिंथेटिक पिल्स पर ऐसी कोई जानकारी नहीं होती, जिससे साफ़ पता चल जाता है कि वे आपकी सेहत के लिए सही नहीं हैं.
– महज़ किसी विज्ञापन में देखकर कभी किसी हेल्थ सप्लीमेंट का चुनाव न करें. अगर आपको कोई समस्या है, तो अपने डॉक्टर को बताएं, वो आपको सही सलाह देंगे कि आपको सप्लीमेंट की ज़रूरत है या नहीं?
– मार्केट में रोज़-रोज़ नए सप्लीमेंट ब्रांड्स आ रहे हैं, ऐसे में सालों से जांचे-परखे मैन्यूफैक्चरर्स पर ही विश्वास करें.
– सस्ते के चक्कर में कोई भी सप्लीमेंट ट्राई न करें, वरना ये आपको महंगा पड़ सकता है.
– ख़ासतौर पर बुज़ुर्गों, बीमार व्यक्तियों और गर्भवती महिलाओं को हेल्थ सप्लीमेंट्स की ज़रूरत होती है, जो उनके डॉक्टर ज़रूरत के मुताबिक़ लेने की सलाह
देते हैं.
इन विटामिन्स और मिनरल्स की ज़रूरत हमें रोज़ाना पड़ती है, इसीलिए इनके सप्लीमेंट्स मार्केट में सबसे ज़्यादा बिकते हैं. यहां हम जानने की कोशिश करेंगे कि शरीर में इनकी कमी के क्या परिणाम हो सकते हैं और इनके प्राकृतिक स्रोतों के भंडार कौन-से हैं?
यह एक शक्तिशाली एंटीऑक्सीडेंट, एंटीइंफ्लेमेटरी, एंटीवायरल, एंटीबायोटिक और एंटीकैंसर कम्पाउंड है. शरीर के विकास के लिए यह बहुत ज़रूरी है. हड्डियों व दांतों की बनावट, त्वचा के पोषण, घाव भरने और शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता को बढ़ाने में मददगार साबित होता है.
कमी के लक्षण
थकान, चिड़चिड़ापन, वज़न कम होना, जोड़ों व मांसपेशियों में दर्द, दांतों व मसूड़ों की समस्याएं, बार-बार इंफेक्शन, रूखी त्वचा व रूखे बाल आदि.
प्राकृतिक स्रोत
संतरा, पेर, अनन्नास, प्लम, जामुन, चेरी, तरबूज़, स्ट्रॉबेरी, अमरूद, कीवी, एप्रिकॉट, ब्रोकोली, मोसंबी, नींबू, इमली, मूली, पालक, टमाटर, आलू, प्याज़, पत्तागोभी आदि विटामिन सी के गुणों से भरपूर फल व सब्जियां हैं.
एंटीऑक्सीडेंट युक्त यह विटामिन शरीर की रोगप्रतिरोधक क्षमता को मज़बूत बनाने, त्वचा व बालों को पोषण देने के साथ-साथ कोलेस्ट्रॉल को कम करके हार्ट प्रॉब्लम्स व कैंसर से बचाता है.
कमी के लक्षण
एनीमिया, मांसपेशियों में कमज़ोरी, कम या धुंधला दिखाई देना आदि.
प्राकृतिक स्रोत
बादाम, सूरजमुखी के बीज, एवोकैडो, पालक, आम, टमाटर, पपीता, ऑलिव, एप्रिकॉट, कीवी, शकरकंद, ब्रोकोली, कद्दू, अंकुरित गेहूं, दूध, अंडे आदि.
यह प्रोटीन्स, फैट और कार्बोहाइड्रेट्स को इस्तेमाल करने में मदद करता है. रेड ब्लड सेल्स और नर्व टिश्यूज़ के फॉर्मेशन में मदद करता है. बच्चों के विकास में ख़ास भूमिका निभाता है.
कमी के लक्षण
एनीमिया, थकान, जीभ में जलन, चलने में तकलीफ़, याद्दाश्त कमज़ोर होना, चिड़चिड़ापन, मांसपेशियों में कमज़ोरी आदि.
प्राकृतिक स्रोत
दूध व दूध से बनी चीज़ें, मीट, अंडे, शेलफिश आदि.
हमें सेहतमंद रखने में विटामिन डी अहम् भूमिका निभाता है. यह हमें ऑस्टियोपोरोसिस, कैंसर, इंफेक्शन्स, अल्ज़ाइमर, ऑटोइम्यून डिसीज़ से बचाने के साथ-साथ ब्लड शुगर व ब्लड प्रेशर को रेग्युलेट करने में मदद करता है.
कमी के लक्षण
हड्डियों व जोड़ों में दर्द होना, ऑस्टियोपोरोसिस, आंतों की समस्याएं आदि.
प्राकृतिक स्रोत
सूरज की रोशनी सबसे बढ़िया स्रोत है. इसके अलावा दूध, अंडे, मछली, लिवर, मशरूम आदि में भी पाया जाता है.
यह एक ज़रूरी मिनरल है, जो पूरे शरीर में ऑक्सीजन को पहुंचाने का काम करता है. इसकी कमी का सबसे बड़ा लक्षण है- थकान. यह ब्रेन और मसल फंक्शन को बेहतर बनाने में मदद करता है.
कमी के लक्षण
थकान, याद्दाश्त कमज़ोर होना, शरीर की रोग प्रतिरोधक क्षमता कमज़ोर होना, हैवी पीरियड्स आदि.
प्राकृतिक स्रोत
चिकन, मछली, हरी सब्ज़ियां, बीन्स, ड्रायफ्रूट्स आदि.
यह हार्ट, मसल्स, नर्वस सिस्टम आदि को बेहतर करने में सहयोग देता है.
कमी के लक्षण
हाई ब्लड प्रेशर, कोलोन कैंसर, प्रीमेंस्ट्रुअल सिंड्रोम, पॉयज़निंग का बढ़ना आदि.
प्राकृतिक स्रोत
दूध, दही, चीज़, हरी सब्ज़ियां, सोया, सी फूड आदि.
– अनीता सिंह
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