नाकाम शादी क्यों निभाती हैं महिलाएं? (Why Women Stay In Bad Marriages?)

हमारे देश में शादी को एक सामाजिक (Why Women Stay In Bad Marriages) पर्व के रूप में देखा जाता है. ऐसे में भारत में शादी के महत्व को स्वत: ही समझा जा सकता है. अगर आप भारत में हैं और 30 वर्ष की उम्र तक शादी के बंधन में नहीं बंधते, तो लोग आपसे सवाल करना और आपको शादी करने की सलाह देना अपना हक़ समझते हैं.

शादी की कामयाबी और असफलता कई बातों पर निर्भर करती है. लेकिन सच्चाई यही है कि आज भी अधिकांश महिलाएं अपनी नाकाम, असफल शादियों को ताउम्र झेलती रहती हैं. पर सबसे बड़ा सवाल यही है कि आख़िर क्यों वे इस तरह की शादियों में बनी रहती हैं? क्यों कोई ठोस निर्णय लेकर अलग होने की हिम्मत नहीं कर पातीं? क्यों सारी उम्र ज़िल्लत सहना अपना नसीब मान लेती हैं?
ऐसे ही तमाम सवालों के जवाब के लिए हमने बात की दिल्ली में प्रैक्टिस कर रहे सायकियाट्रिस्ट डॉ. विकास सैनी से-

पालन-पोषण: भले ही हम कितनी ही विकास की बातें कर लें, लेकिन आज भी अधिकतर घरों में लड़कियों का पालन-पोषण यही सोचकर किया जाता है कि उसे पराये घर जाना है यानी उसे हर बात को सहन करना, शांत रहना, ग़ुस्सा न करना आदि गुणों से लैस करवाने की प्रैक्टिस बचपन से ही करवाई जाती है. ऐसे में वो आत्मनिर्भर नहीं हो पातीं. शादी के बाद उन्हें लगता है कि जिस तरह अब तक वो अपने पैरेंट्स पर निर्भर थीं, अब पति पर ही उनकी सारी ज़िम्मेदारी है.

माइंडसेट: हमारे समाज की सोच यानी माइंडसेट ही ऐसा है कि शादी यदि हो गई, तो अब उससे निकलना संभव नहीं है, फिर भले ही उस रिश्ते में आप घुट रहे हों, लेकिन लड़कियों को यही सिखाया जाता है कि शादी का मतलब होता है ज़िंदगीभर का साथ. तलाक़ का ऑप्शन या अलग होने के रास्तों को एक तरह से परिवार व लड़की की इज़्ज़त से जोड़ दिया जाता है. ऐसे में ख़ुद महिलाएं भी अलग होने का रास्ता चुन नहीं पातीं.

सोशल स्टिग्मा: घर की बात घर में ही रहनी चाहिए… अगर तुम अलग हुई, तो तुम्हारे भाई-बहनों से कौन शादी करेगा… उनके भविष्य के लिए तुम्हें सहना ही पड़ेगा… समाज में बदनामी होगी… हम लोगों को क्या मुंह दिखाएंगे… आदि… इत्यादि बातें जन्मघुट्टी की तरह लड़कियों को पिला दी जाती हैं. ऐसे में पति भले ही कितना ही बुरा बर्ताव करे, शादी का बंधन भले ही कितना ही दर्द दे रहा हो, लड़कियां सबसे पहले अपने परिवार और फिर समाज के बारे में ही सोचती हैं.

आर्थिक मजबूरी: आज की तारीख़ में महिलाएं आत्मनिर्भर हो तो रही हैं, लेकिन अब भी बहुत-सी महिलाएं अपनी आर्थिक ज़रूरतों के लिए पहले पैरेंट्स पर और बाद में पति पर निर्भर होती हैं. यह भी एक बड़ी वजह है कि वो अक्सर चाहकर भी नाकाम शादियों से बाहर नहीं निकल सकतीं. कहां जाएंगी? क्या करेंगी? क्या माता-पिता पर फिर से बोझ बनेंगी? इस तरह के सवाल उनके पैरों में बेड़ियां डाल देते हैं. पति का घर छोड़ने के बाद भी उन्हें मायके से यही सीख दी जाती है कि अब वही तेरा घर है. दूसरी ओर उसे मायके में और समाज में भी सम्मान की दृष्टि से नहीं देखा जाता. ऐसे में बेहद कठिन हो जाता है कि वो अपनी शादी को तोड़कर आगे क़दम बढ़ाए.

बच्चे: किसी भी नाकाम शादी में बने रहने की सबसे बड़ी वजह बच्चे ही होते हैं. बच्चों को दोनों की ज़रूरत होती है, ऐसे में पति से अलग होकर उनका क्या भविष्य होगा, यही सोचकर अधिकांश महिलाएं इस तरह की शादियों में बनी रहती हैं.

समाज: आज भी हमारा समाज तलाक़शुदा महिलाओं को सम्मान की नज़र से नहीं देखता. चाहे नाते-रिश्तेदार हों या फिर आस-पड़ोस के लोग, वो यही सोच रखते हैं कि ज़रूर लड़की में ही कमी होगी, इसीलिए शादी टूट गई. एक तलाक़शुदा महिला को बहुत-सी ऐसी बातें सुननी व सहनी पड़ती हैं, जो उसके दर्द को और बढ़ा देती हैं. यह भी वजह है कि शादी को बनाए रखने के लिए कोई भी महिला अंत तक अपना सब कुछ देने को तैयार रहती है.

पैरेंट्स: ढलती उम्र में अपने माता-पिता को यह दिन दिखाएं, इतनी हिम्मत हमारे समाज की बेटियां नहीं कर पातीं. फिर भले ही वो ख़ुद अपनी ज़िंदगी का सबसे क़ीमती समय एक ख़राब और नाकाम शादी को दे दें.
ये तमाम पहलू हैं, जो किसी भी महिला को एक नाकाम शादी से निकलकर बेहतर जीवन की ओर बढ़ने से रोकते हैं, क्योंकि हम यही मानते हैं कि बिना शादी के जीवन बेहतर हो ही नहीं सकता. हमारे समाज में शादी को ‘सेटल’ होना कहा जाता है… और तलाक़ को जीवन का सबसे बड़ा अभिशाप समझा जाता है. जब तक हम इन सामान्य क्रियाओं को सामान्य नज़र से नहीं देखने लगेंगे, तब तक स्थिति में अधिक बदलाव नहीं आएगा.

यह भी पढें: पति की इन 7 आदतों से जानें कितना प्यार करते हैं वो आपको

कुछ बदलाव तो आए हैं
डॉ. विकास सैनी के अनुसार समाज में काफ़ी बदलाव आ रहा है, लेकिन इन बदलावों से होते हुए हमें संतुलन की ओर बढ़ना होगा, जहां तक पहुंचने में व़क्त लगेगा.

-पीढ़ी अधिक बोल्ड है. वो निर्णय लेने से डरती नहीं. यही कारण है कि  जैसे-जैसे लड़कियां आत्मनिर्भर हो रही हैं, वो ज़्यादती बर्दाश्त नहीं कर रही हैं.

-यह ज़रूरी भी है कि पुरुष प्रधान समाज का ईगो इसी तरह से तोड़ा जाए, ताकि पुरुष ख़ुद को लड़कियों की जगह रखकर सोचें.

हालांकि इसका दूसरा पहलू यह भी है कि अब लड़के-लड़कियां थोड़ा-सा भी एडजेस्ट करने को तैयार नहीं होते, जिससे रिश्ते को जितना व़क्त व धैर्य की ज़रूरत होती है, वो नहीं देते. यही आज बढ़ते तलाक़ के मामलों की बड़ी वजह बन रहे हैं.

कुल मिलाकर यह कहा जा सकता है कि हम दोनों ही मामलों में एक्स्ट्रीम लेवल पर हैं. एक तरफ़ मिडल एज जेनरेशन है, जहां महिलाएं निर्णय ले ही नहीं पातीं और यदि कोई निर्णय लेती भी हैं, तो तब जब रिश्तों में सब कुछ आउट ऑफ कंट्रोल हो जाता है और इस पर भी तलाक़ जैसा क़दम वही उठा पाती हैं, जिन्हें पैरेंट्स का सपोर्ट होता है.

दूसरी ओर आज की युवापीढ़ी है, जो निर्णय लेने में बहुत जल्दबाज़ी करती है. मामूली से झगड़े, वाद-विवाद को भी रिश्ते तोड़ने की वजह मान लेती है. जबकि ज़रूरत है बीच के रास्ते की, लेकिन वहां तक पहुंचने में अब भी काफ़ी समय लगेगा.

 रियल लाइफ स्टोरीज़

“मैं अपने पति से बेइंतहा प्यार करती हूं और उनके बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकती.” जी हां, यह कहना है मुंबई की एक महिला का, जो न बच्चों के कारण और न ही आर्थिक मजबूरी के चलते अपनी ख़राब शादी में रह रही है. पति के एक्स्ट्रा मेरिटल अफेयर को जानते हुए भी वो अपनी शादी नहीं तोड़ना चाहती. यह शायद बेहद भावनात्मक निर्णय है, लेकिन इस तरह की सोच भी होती है कुछ महिलाओं की.

“मैंने अपने पति को सबक सिखाया.” मुंबई की ही एक 38 वर्षीया महिला ने अपनी नाकाम शादी को किस तरह से कामयाब बना दिया, इस विषय में बताया… “मेरे पति न कमाते थे, न ही किसी तरह से भावनात्मक सहारा था उनका. दिन-रात नशे में धुत्त रहते. एक दिन उनके लिए घर का दरवाज़ा नहीं खोला, तो वो छत से कूदकर जान देने की बात कहने लगे. मैंने पुलिस को बुलाकर उन्हें अरेस्ट करवा दिया. कुछ समय बाद ज़मानत पर रिहा होकर जब वे दोबारा मुझे परेशान करने लगे, तो दोबारा पुलिस को बुलाया और तलाक़ की बात कही मैंने. इसके बाद कुछ समय तक वो ग़ायब रहे, फिर एक दिन अचानक आकर बोले कि घर से अपना सामान लेकर दूर जाना चाहते हैं, लेकिन घर में आने के बाद उन्होंने अपने किए की माफ़ी मांगी और अपनी ग़लतियों को सुधारने का एक मौक़ा भी, जो मैंने दिया. आज वो सचमुच आदर्श पति की तरह अपने कर्तव्य पूरे कर रहे हैं. मैं स़िर्फ यह कहना चाहती हूं कि शादी जैसे रिश्ते में आपको अपनी लड़ाई ख़ुद लड़नी है. आप किस तरह की परेशानियों का सामना कर रही हैं, यह आप ही बेहतर समझ सकती हैं, फिर क्यों किसी मदद के लिए समाज या माता-पिता, भाई-बहन के मुंह की ओर ताकें? हिम्मत जुटाओ, परिस्थितियां ख़ुद ब ख़ुद बदल जाएंगी.”

– गीता शर्मा 

यह भी पढ़ें: ज़िद्दी पार्टनर को कैसे हैंडल करेंः जानें ईज़ी टिप्स

 

Meri Saheli Team

Share
Published by
Meri Saheli Team

Recent Posts

लहान मुलांना धाडस आणि जिद्दीचं बाळकडू देणाऱ्या ॲनिमेटेड ‘बुनी बियर्स’ चित्रपटाचे पोस्टर लॉंच! (The Poster Launch Of The Animated Movie ‘Bunny Bears’, Which Gives Courage And Stubbornness To Children!)

कोवळ्या वयात असणाऱ्या मुलांच्या अंगी चांगल्या संस्कारांची जर पेरणी झाली, तर मुलं मोठी होऊन नक्कीच…

April 16, 2024

‘कौन बनेगा करोडपती’च्या १६ व्या सीझनची घोषणा, अमिताभ बच्चनचा प्रोमो व्हायरल ( Kaun Banega Crorepati 16 Promo Registration Begins Amitabh Bachchan Announces It)

'कौन बनेगा करोडपती'च्या चाहत्यांसाठी एक आनंदाची बातमी आहे. अमिताभ बच्चन लवकरच त्यांच्या शोच्या 16व्या सीझनसह…

April 16, 2024

लग्नाच्या वाढदिवसाचं सेलिब्रेशन आलिया रणबीर केलं खास, दोन दिवसांनी फोटो व्हायरल (Inside Pics of Alia Bhatt and Ranbir Kapoor’s 2nd wedding anniversary celebrations)

14 एप्रिल रोजी रणबीर कपूर आणि आलिया भट्ट यांच्या लग्नाला दोन वर्षे पूर्ण झाली. दोघांनी…

April 16, 2024
© Merisaheli