Close

पैरेंटिंग- स्त्री-पुरुष समानता के नज़रिए से… (How can Parents Promote Gender Equality)

कल ही मैं अपनी एक बीमार सहेली के घर उसकी मिजाज़पुर्सी के लिए गई. मैं जाकर उसके और उसकी सासू मां के पास बैठी ही थी कि तभी उसके बेटा-बेटी साथ-साथ स्कूल से वापस घर लौटे. मैंने बड़े आश्चर्य से देखा कि उसकी सासू मां ने अपनी 12 वर्षीय पोती रुनझुन को निर्देश दिए, “चल, भाई और हम सब के लिए शिकंजी बना. फिर जाकर सब्जी माइक्रोवेव में गर्म कर और अपनी व भाई की प्लेट लगा. मैं आकर गर्म फुल्के सेकती हूं.”
मैंने देखा, उनके साथ-साथ उनका 14-15 वर्ष का पोता भी इठलाते हुए अपनी बहन को बोला, “हां रुनझुन, जल्दी से शिकंजी बना कर ला. प्यास से गला सूखा जा रहा है. बड़ी धूप है बाहर. मैं तो झुलस कर रह गया.”
दादी और भाई की शिकंजी के लिए रट सुनकर रुनझुन झल्लाते हुए दादी से बोली, “अम्मा, मैं भी तो पूरे दिन स्कूल में थककर आई हूं. आप भैया से तो कुछ नहीं बोलतीं, हर वक़्त मुझे ही काम के लिए बोलती हो. मोम के गुड्डे हैं भाई, जो धूप में पिघल गए. मुझे तो गर्मी जैसे लगती ही नहीं.”
इस पर आंटीजी तनिक ग़ुस्सा होते हुए उससे बोलीं, “अरे बेटा, तेरा उसका क्या मुक़ाबला? तुझे तो शादी करके पराए घर जाना है. घर-गृहस्थी संभालनी है. भाई को तेरी तरह चौका-चूल्हा थोड़े ही न संभालना है?”
“बस मैं मम्मी की तरह घर-गृहस्थी में फंस कर नहीं रहनेवाली अम्मा. मैं डॉक्टर बनूंगी. मेरे हर एग्ज़ाम में भैया से ज़्यादा नंबर आते है.”
“चल… ज़्यादा शेख़ी न बघार. जा कर शिकंजी बना और प्लेट लगा. डॉक्टर बन जाए चाहे कलेक्टर, बिटिया रसोई-चूल्हा तो तुझे ही संभालना पड़ेगा. अभी से काम की आदत नहीं पड़ेगी, तो ससुराल में हमारा नाम डुबोएगी.”

यह भी पढ़ें: क्या आपके बच्चे का विकास सही तरह से और सही दिशा में हो रहा है? जानें सभी पैरेंट्स… (How Parents Can Ensure Their Child Grows Right?)

पोती की बातें सुन दादी का मूड बिगड़ गया और वह अपनी बहू से बोलने लगीं, “तूने इसे बहुत छूट दे दी है बहू. गज़ भर की ज़ुबान हो गई है इसकी. अरे, इसे तो पराए घर जाना है. यूं अपने बड़ों से ज़ुबान लड़ाएगी, तो कैसे पार पड़ेगी. जरा काम की कहो, तो उबल पड़ती है. छुईमुई बनकर हर समय आराम करने की सोचेगी, तो कल को ससुराल में कैसे निभा पाएगी."
कुछ ही देर में मैं अपने घर वापस आ गई, लेकिन रुनझुन की दादी का पोती के प्रति भेदभाव भरा व्यवहार मन को कहीं गहराई तक कचोटता रहा.
रात का डिनर कर एक पत्रिका के पन्ने पलट रही थी कि तभी एक समाचार पर नज़र पड़ी कि वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की स्त्री-पुरुष समानता की रैंकिंग के मुताबिक़ विश्व के 146 देशों के मध्य हमारा देश 135वें पायदान पर है. आज वैश्विक अर्थव्यवस्था में पांचवा होने की कीर्ति का परचम फहरानेवाला हमारा देश स्त्री-पुरुष समानता में तालिबान शासित अफ़गानिस्तान से महज़ 11 पायदान पहले है, जहां महिलाओं को शिक्षा ग्रहण करने के मौलिक अधिकार तक से वंचित रखा गया है.
मन को झटका-सा लगा और मैं सोचने पर विवश हो गई कि आख़िर इस स्थिति का तोड़ क्या है? क्यों आज भी देश की आधी आबादी को दोयम श्रेणी का माना जाता है? न जाने कितनी महिलाएं घरेलू हिंसा और प्रताड़ना का शिकार होती हैं. जन्म लेने से पहले कोख में ही मार दी जाती हैं? कितनी ही लड़कियां बेरहमी से क़त्ल कर दी जाती हैं?
इस भयावह स्थिति के मूल में है सदियों से चली आ रही मानसिकता कि महिलाएं पुरुषों के मुक़ाबले हर हाल में कमतर हैं. जब तक यह मानसिकता नहीं बदलेगी, इस स्थिति में सुधार होना मुश्किल है.
महिलाओं को इस दुर्दशा से निजात दिलाने के लिए हमें महिलाओं और पुरुषों के बीच की भेदभाव की खाई को पाटना होगा.
हमने इस मुद्दे पर दिल्ली की डॉक्टर शालिनी बंसल से बातचीत की.
उन्होंने कहा कि समाज में जेंडर समानता लाने के लिए जन-जन की मानसिकता को बदलना होगा और इस परिवर्तन की शुरुआत हमें अपने घर से ही करनी होगी.
बेटे और बेटी के पालन-पोषण में समान नज़रिया अपनाना होगा.
डॉक्टर शालिनी कहती है कि मेरे घर का नियम है कि हम पति-पत्नी और हमारे बेटा-बेटी घर के कामों में बराबर की भागीदारी निभाएंगे. वह कहती हैं कि बच्चे अच्छी बात समझाने की बजाय अपने माता-पिता को उसे करता देख बेहतर ढंग से समझते हैं.
वे कहती हैं कि अपने बेटे-बेटी में कभी किसी तरह का भेदभाव ना करें. उन्हें समझाएं कि कभी भी दो इंसान एक जैसे नहीं होते. उसी तरह शारीरिक तौर पर लड़के और लड़कियों में अंतर होता है, लेकिन इसकी वजह से उनमें भेदभाव करना सही नही.
साथ ही मैं हमेशा अपने बेटे-बेटी से इस मुद्दे पर चर्चा करती रहती हूं. उनसे कहती हूं कि तुम्हारी बहन तुमसे किसी भी माने में कमतर नहीं. घर में जो ज़िम्मेदारी और अधिकार उसके हैं, बिल्कुल वही तुम्हारी बहन के भी हैं.


कभी भी अपने बेटे को रोते देख उससे न कहें कि लड़कियों की तरह क्यों रो रहे हो? बल्कि उससे कहें कि रोना एक सहज मानवीय प्रवृति है और उनका आंसू बहाना अस्वाभाविक नहीं.
अपने बेटे को कभी भी बेटी से ज़्यादा अहमियत ना दें. ना ही उसे एहसास दिलाएं कि वह बेटा होने की वजह से उससे किसी भी मायने में श्रेष्ठ है. दोनों के प्रति समान नज़रिया रखें.
जो लड़के मात्र अपनी मां को घरेलू कार्य करता देखते हैं, उनकी मानसिकता यह बन जाती है कि घरेलू कार्यों की ज़िम्मेदारी मात्र महिलाओं की होती है.
जो बेटे मां को पिता के हाथों बात-बात पर अपमानित और प्रताड़ित होता देखते हैं, ऐसे बच्चे वयस्क होने पर अपनी पत्नी के साथ भी यही दोहराते हैं.
महिलाओं के साथ ज़्यादती, छेड़खानी, हिंसा, प्रताड़ना, बलात्कार इसी मानसिकता का परिणाम है.
अपने बेटे या बेटी के सामने पत्नी के साथ अपमानजनक भाषा, गाली-गलौज का इस्तेमाल कतई ना करें
अपनी बेटी से कभी यह न कहें कि वह बेटे के बराबर है अथवा बेटे से बेहतर है. ऐसा करना उसे अप्रत्यक्ष रूप से यह संदेश देगा कि वह बेटे से कमतर है.

यह भी पढ़ें: बच्चों का आत्मविश्वास बढ़ाने के लिए पैरेंट्स अपनाएं ये टिप्स (Tips For Boosting Confidence In Children)

बच्चों को मात्र जेंडर परिभाषित कार्य करने के लिए बाध्य न करें. यदि आपकी बेटी क्रिकेटर या पायलट बनना चाहती है और बेटा शेफ या डांसर बनना चाहता है, तो उन्हें इसके लिए रोक-टोक ना करें.
बेटे-बेटी के लिए शाम को बाहर से घर लौटने का समान समय नियत करें.
कभी भी बेटी से यह न कहें कि वह पराई अमानत है अथवा माता-पिता की संपत्ति में उसका कोई अधिकार नहीं. उसे एहसास दिलाएं कि आपकी संपत्ति में उसके अधिकार भाई के बराबर ही हैं.
बेटे-बेटी दोनों को समान रूप से पोषण युक्त भोजन दें। उसमें किसी तरह का कोई भी भेदभाव ना करें.
बेटे-बेटी को शुरुआत से एक से खिलौने और पोशाकें लाकर दें. बेटे को डॉक्टर सेट, बिल्डिंग ब्लॉक, बंदूक जैसे खिलौनों के साथ गुड़िया और किचन सेट भी ला कर दें. बेटियों को भी बंदूक, बिल्डिंग ब्लॉक दिलाएं.
आज के समय की मांग है कि हर परिवार में माता-पिता स्त्री-पुरुष समानता की अवधारणा को ध्यान में रखते हुए अपने बच्चों का पालन-पोषण करें, जिससे एक ऐसे समाज का निर्माण हो जहां स्त्रियों की मुट्ठी में आधा आसमान भी हो और आधी धरती भी.

- रेणु गुप्ता

अभी सबस्क्राइब करें मेरी सहेली का एक साल का डिजिटल एडिशन सिर्फ़ ₹599 और पाएं ₹1000 का कलरएसेंस कॉस्मेटिक्स का गिफ्ट वाउचर.

Photo Courtesy: Freepik

Share this article