आजकल बच्चों के लिए बुक्स स़िर्फ स्कूल और कोर्स की पढ़ाई तक ही सीमित रह गई हैं. ऐसी स्थिति में बच्चों में पढ़ने की आदत विकसित करना अपने आप में एक बड़ा काम है. अचानक कुछ दिनों में ही बच्चों के अंदर क़िताबों के लिए लगाव पैदा नहीं किया जा सकता. यह एक लंबी प्रक्रिया है. विशेषज्ञों के अनुसार, अगर आप चाहते हैं कि आपका बच्चा क़िताबें पढ़ना सीखे या क़िताबों से प्रेम करे, तो इसकी शुरुआत तब लेनी चाहिए जब वह चार से छह महीने का हो.अगर हम बच्चे को इसी उम्र से ही कहानियां, पिक्चर बुक्स इत्यादि पढ़कर सुनाएंगे, तो धीरे-धीरे बच्चे के मन में क़िताबों के प्रति अपने आप लगाव उत्पन्न होने लगेगा.
बच्चों में क़िताबों के प्रति रुचि पैदा करने में कुछ बाधाएं आती हैं. क्या हैं ये बाधाएं और इनसे कैसे निपटा जा सकता है?
इन सभी बातों की जानकारी के लिए हमने बात की साइकोलॉजिस्ट डॉ. राजाराम लोंढे से.
रुकावट-1
टीवी, वीडियो गेम्स व कंप्यूटर्स
डॉ. राजाराम कहते हैं, “ टीवी, वीडियो गेम्स, कंप्यूटर्स जैसी चीज़ें आज के बच्चों की सबसे बड़ी दुश्मन हैं.” इन सभी हाईटेक इंटरटेंटमेंट की ओर बच्चे ज़्यादा आकर्षित होते हैं, क्योंकि इनमें मूविंग पिक्चर्स, कलर्स सब कुछ हैं और इन्हें जानने-समझने के लिए किसी प्रकार की दिमाग़ी कसरत भी नहीं करनी पड़ती.
कुछ समय पहले तक कहानी व कविताओं का लुत्फ़ उठाने के लिए क़िताबें पढ़ना ज़रूरी था, पर आजकल यह सब सीडी और डीवीडीज़ में उपलब्ध है. इस माध्यम की ओर स़िर्फ बच्चे ही नहीं, पैरेंट्स भी आकर्षित हो रहे हैं, क्योंकि उन्हें भी कहानी या अन्य चीज़ें पढ़कर सुनाने के लिए अलग से समय भी नहीं निकालना पड़ता.
रुकावट-3
समय की कमी
इन दिनों वर्किंग पैरेंट्स का ट्रेंड बढ़ता जा रहा है. काम की अधिकता और समय की कमी के कारण अक्सर माता-पिता बच्चों को टीवी के सामने बैठा देते हैं. यह क़दम आगे चलकर बहुत घातक सिद्ध होता है और बच्चे क़िताबी दुनिया से दूर होते चले जाते हैं.
बच्चों में डालें पढ़ने की आदत
पढ़ने की आदत डालने के लिए ज़रूरी है उनमें पढ़ने की रुचि निर्माण करना. इसके लिए माता-पिता को निम्न बातों का ध्यान रखना चाहिए.
छोटे बच्चों में पढ़ने की आदत डेवलप करने का सबसे बढ़िया माध्यम है स्टोरी बुक्स. यदि बच्चा 1-2 साल का है तो उसे रोज़ाना कम-से-कम आधे घंटे कहानी पढ़कर अवश्य सुनाएं.
छोटे बच्चे बहुत चंचल होते हैं. उनका ध्यान बहुत जल्दी भंग हो जाता है. अत: उन्हें एकांत जगह में ही कहानियां सुनाएं. अगर घर में ज़्यादा सदस्य हैं तो कहानियां सुनाते व़क़्त कमरा बंद कर दें.
बच्चे को तरह-तरह की क़िताबें पढ़ने के लिए दें. इससे क़िताबों के प्रति उसकी रुचि बनी रहेगी.
बच्चे को अपने साथ लायब्रेरी लेकर जाएं. एक साथ इतने लोगों को पढ़ता देख उसकी भी इच्छा बढ़ेगी.
बच्चे के लिए क़िताबें ख़रीदते समय उसे भी इनवॉल्व करें.
उससे पूछें कि वह क्या पढ़ना चाहता है?
धैर्य से काम लें. अगर बच्चा एक ही क़िताब बार-बार पढ़ना चाहता है, तो उसे वैसा करने दें. छोटे बच्चे चीज़ें दोहराकर जल्दी सीखते हैं.
जहां जाएं वहां से बच्चे के लिए एक क़िताब ज़रूर लाएं.
बच्चे के लिए क़िताबें चुनते समय उसकी उम्र ध्यान में रखना बहुत ज़रूरी है.
0 से 3 साल तक के बच्चे
इस उम्र के बच्चों के लिए बड़ी-बड़ी चित्रोंवाली पुस्तकें ख़रीदें. इस उम्र के बच्चे सब्ज़ियां, फल, जानवर, खाने की चीज़ें इत्यादि चित्रों वाली क़िताबें पसंद करते हैं. इस उम्र में बच्चों को स़िर्फ विज़ुअल इ़फेक्ट्स ही समझ में आते हैं.
4 से 8 साल तक के बच्चे
इस उम्र के बच्चों को स़िर्फ चित्र नहीं, कहानियां भी पसंद आती हैं. अत: इनके लिए सरल भाषा की स्टोरी बुक्स ही चुनें.
9 से 12 साल तक के बच्चे
इस उम्र के बच्चों को क़िताब पढ़ने की आदत हो चुकी होती है और इन्हें पता होता है कि वे क्या पढ़ना चाहते हैं.
क्या ध्यान रखें?
डॉ. लोंढे के अनुसार, “ जिस तरह अभिभावक बच्चों के टीवी प्रोग्राम पर नज़र रखते हैं, उसी तरह उन्हें इस बात पर भी नज़र रखनी चाहिए कि वे क्या पढ़ रहे हैं, ख़ासकर आठ से पंद्रह साल के बच्चों पर. कभी-कभी बच्चे कुछ ऐसा साहित्य पढ़ते हैं, जिसे हैंडल करना उनके बस में नहीं होता.
कभी-कभी बच्चे पढ़ते-पढ़ते कहानी में पूरी तरह घुस जाते हैं और वैसा ही व्यवहार करते हैं.
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