ख़ुशी की तरंग मेरे मन को, समूचे जिस्म को रोमांचित कर रही थी. मेरे जीवन की फिल्म का परिदृश्य यकायक…
काश, मैं व़क्त के इस अंतराल को मिटाकर अपनी भूल को सुधार पाती, किंतु गुज़रा व़क्त क्या कभी लौट पाया…
काश क़ानून की किताब में कोई ऐसा प्रावधान होता, जो मन पर रोक लगाने में भी सक्षम होता. मन तो…