वेद की परिणीता बनने के लिए मुझे मंगलसूत्र और सिंदूर की कोई आवश्यकता नहीं थी. कितना अपार था उसका प्रेम.…
विगत के दर्द के फिर से उभरने के डर से वह भारत जाना नहीं चाहती थी. प्रीत के हज़ारों रंग…
श्लोक से जुड़ने से पहले जीवन के सूने जलते रेगिस्तान में नंगे पैर अकेली ही तो वह दौड़ रही थी.…