मैं ख़ामोश बैठी रही. कहती भी क्या? न स्वागत में कुछ कहने को मन किया, न ही कुशलक्षेम पूछने की…
समय यदि भाग नहीं रहा था, तो भी आगे तो खिसक ही रहा था और एक दिन पारुल ने अपनी…
कितना अस्थिर हो सकता है मानव मन! एक दिन यही देवव्रत मेरे प्यार में इतने बावले थे कि मुझे अपनी…