हममें से ज़्यादातर लोग वित्तीय योजना और बजट बनाने से घबराते हैं, जिसके कारण उन्हें बहुत-सी ग़लतफ़हमी हो जाती है. इन ग़लतफ़हमियों को दूर करने के लिए हमारे वित्तीय सलाहकार कुछ ज़रूरी जानकारी दे रहे हैं, जो इस प्रकार से हैं-
मिथक 1: लॉन्ग टर्म लोन को सबसे पहले चुका देना चाहिए?
अधिकतर लोग यही सलाह देते हैं कि यदि आप ब्याज़ बचाना चाहते हैं, तो सबसे लॉन्ग टर्म लोन का भुगतान करें. लेकिन अनुभवी वित्तीय सलाहकारों का मानना है कि लंबी अवधि वाले लोन को चुकाने की बजाय ऐसे लोन का भुगतान पहले करें, जो जिनमें टैक्स का लाभ नहीं मिलता है या कम लाग मिलता है. अधिकतर लोग शार्ट टर्मवाले लोन का भुगतान पहले कर देते हैं, चाहें उसमें टैक्स बेनिफिट क्यों न मिलें. यही बात लोगों को समझ नहीं आती है और वे लॉन्ग टर्मवाले लोन का भुगतान करते रहते हैं. उस लॉन्ग टर्म वाले लोन में उन्हें कोई टैक्स बेनिफिट भी नहीं मिलता है.
मिथक 2: मीडिल क्लास को निवेश में रिस्क नहीं उठाना चाहिए.
यह मिथ सरासर ग़लत है. मीडिल क्लास को इंवेस्टमेंट करते हुए थोड़ा-बहुत रिस्क को उठाना ही पड़ेगा. मीडिल क्लासवाले के पास आय के साधन सीमित होते हैं, इसलिए भी वे निवेश में रिस्क उठाने से डरते हैं. मीडिल क्लास को अपनी बचत का एक छोटा भाग ईक्विटी में लगाना चाहिए. जब भी मार्केट में ईक्विटी की ग्रोथ बढ़ेगी तो रिटर्न भी अच्छा मिलेगा. अच्छा रिटर्न मिलने पर मिडिल क्लास आसानी से अपने सपनों को पूरा कर सकता है.
मिथक 3: रिटायरमेंट प्लानिंग केवल रुपयों से जुड़ी हुई होती है.
आज के समय में ज़्यादातर लोगों को रिटायरमेंट प्लानिंग की बातें बेकार की लगती है. इसलिए अधिकतर लोग रिटायरमेंट प्लानिंग के झंझट में पड़ना नहीं चाहते हैं, उन्हें इस बात का एहसास नहीं होता है कि रिटायरमेंट के बाद हेल्थ, अच्छी लाइफस्टाइल के लिए रुपयों की ज़रूरत होती है. वित्तीय सलाहकारों के अनुसार, रिटायरमेंट के बाद बचा हुआ समय सबसे ज़्यादा महत्वपूर्ण होता है. यह एसेट या लायबिलिटी की तरह होता है. रिटायरमेंट के बाद आदमी 20-40 साल तक जीवित रह सकता है. इस समय में होनेवाली गतिविधियों और हेल्थ संबंधी परेशानी को पूरा करने के लिए धन की ज़रूरत पड़ेगी. इसके अलावा यदि बच्चे आपको अपने साथ नहीं रखना चाहते है या आप उनके साथ नहीं रहना चाहते हैं, तो भी आपको एक फंड की ज़रूरत पड़ेगी. इन सभी अनिश्चितताओं को ध्यान में रखकर ज़रूरी है कि नौकरी रहते ही रिटायरमेंट फंड की व्यवस्था करें.
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मिथक 4: परिवार का बजट अधिक होना चाहिए.
अधिकतर दंपतियों को बजट बनाना जटिल काम लगता है. इसलिए वे बजट बनाने से कतराते हैं. वितीय सलाहकारों के अनुसार, बजट बनाना बहुत आसान है, लेकिन लोग न जाने क्यूं इससे घबराते हैं. बजट का मतलब यह नहीं आप हर छोटे-से-छोटे ख़र्च को नोट करें. बजट यानी- ख़र्चों का ब्यौरा, बचत और कर्ज़ का भुगतान. ख़र्चों (बिजली-पानी-ग्रासरी-शापिंग) का भुगतान ऑनलाइन किया जाता है, इसलिए इन्हें ट्रैक करना बहुत आसान है. यदि आपने लोन नहीं लिया है, तो इस कॉलम को बनाने की आवश्यकता नहीं है.
मिथक 5: बजट बनाने से फाइनेंशियल तौर पर मूड ख़राब होता है.
यदि आपको ऐसा महसूस होता है कि बजट बनाने से भी फ़िज़ुलख़र्ची बढ़ रह है और बचत नहीं हो रही है, तो बजट बनाना बेकार है. आपकी यह सोच सरासर ग़लत है. अमूनन सभी लोगों के साथ ऐसा ही होता है. ऐसी स्थिति में आवश्यकता है कि आप अपने ख़र्चों को मैनेज करना सीखें. जैसे- छुट्टियों में घुमने की प्लानिंग कर रहे हैं और महंगा स्मार्ट फोन भी ख़रीदना चाहते हैं, तो दोनों में से किसी एक को प्राथमिकता दें. ऐसे ख़र्चों का पूरा करने के लिए इमर्जेंसी फंड में जमा राशि निकालना मूर्खता होगी.
मिथक 6: वित्तीय सलाहकार सब मैनेज करवा देेंगे.
निवेशकों का यह लगता है कि चाहे जितना भी ख़र्च या बचत करो, वित्तीय सलाहकार सब संभाल लेंगे. लेकिन निवेशकों को इस बात का ध्यान रखना चाहिए कि सारे ़फैसले उन्हें स्वयं लेने हैं, वित्तीय सलाहकार उन्हें केवल सलाह देते हैं, मानना या न मानना उन पर निर्भर करता है. फाइनेंशियल एक्सपर्ट्स मानते हैं कि निवेशक का काम निर्णय लेने का होता है और वित्तीय सलाहकार का काम उस निर्णय को अंजाम तक पहुंचाने का. वित्तीय सलाहकार के हर ़फैसले पर उसे ध्यान देना चाहिए.
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– देवांश शर्मा
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