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दूसरों को नसीहत देते हैं, ख़ुद कितना पालन करते हैं (Advice You Give Others But Don’t Take Yourself)

सुबह जल्दी उठना सेहत के लिए अच्छा होता है. ज़्यादा तला हुआ मत खाया करो… ऐसा किया करो, ऐसा मत किया करो… इस तरह की नसीहत लोग देते ही रहते हैं. क्या पहनना चाहिए से लेकर, बच्चे की परवरिश कैसे की जाए… तक नसीहत देने के लिए ऐसे सलाहकार हमेशा तैयार रहते हैं, पर क्या ये मुफ़्त के सलाहकार अपनी ही सलाह या सुझाव को कभी स्वयं भी मानते हैं?

 

सलाह देना दुनिया का सबसे आसान काम है और इन्हीं सुझाव और सलाह पर ख़ुद अमल करना बहुत ही कठिन. किसी दूसरे को मीठा ना खाने की सलाह देनेवाले ख़ुद जमकर मिठाइयां खाते हैं,  तो क्या हमेशा दूसरों को सलाह देते रहना कोई मानसिक विकार है? क्या हमेशा सलाह देते रहना रिश्तों की सेहत को ख़राब कर सकता है? आख़िर क्यों कोई व्यक्ति हमेशा सलाह देता रहता है, जिस पर वो ख़ुद भी अमल नहीं कर सकता. आइए जानते हैं, हमेशा सलाह देते रहने और ख़ुद उस पर अमल ना कर सकनेवालों का मनोविज्ञान-

आख़िर क्यों देते हैं लोग बिन मांगी सलाह?

मनोवैज्ञानिक मुग्धा निर्मल बताती हैं, अगर हम अपने समाज और उसमें रहनेवाले परिवारों की बात करें, तो सलाह-मशवरा देना और ख़ासकर बिना मांगे सलाह देना हमारी परंपरा है, जो पीढ़ियों से चली आ रही है.

कभी-कभी यह सलाह काम की भी होती है. सलाह देने का दूसरा कारण है कि कहीं-ना-कहीं ऐसे लोगों को परिवार और मित्रों में मान-सम्मान या आदर कम मिलता है, इसलिए वे सलाह देकर किसी तरह स्वयं को सिद्ध करना चाहते हैं. तीसरा कारण  है, अपने अहम् की संतुष्टि. सलाह के माध्यम से वह आपको यह दिखाना चाहता है कि आपकी समस्या का समाधान आपसे बेहतर वह कर सकता है. इस तरह स्वयं को प्रमाणित करना चाहता है. इन सबके अलावा हमेशा सलाह देते रहना किसी-किसी की आदत भी हो सकती है.

क्या हमेशा सलाह देते रहना कोई मानसिक रोग है?

मुग्धा कहती हैं कि यह मानसिक रोग तो नहीं, पर बिहेवियरल डिसऑर्डर ज़रूर है. अगर कोई व्यक्ति 24 घंटे सबको सलाह देता रहता है, तो उसके आसपास के लोग और प्रियजन धीरे-धीरे उससे किनारा कर लेंगे. इस तरह का बिहेवियर मानसिक रोग निश्‍चित नहीं है, पर हो सकता है कि इसका कारण कोई मानसिक रोग हो या इसकी वजह से कोई मानसिक रोग हो जाए.

सोलोमन पैराडॉक्स

अगर कोई व्यक्ति सलाह तो सबको देता है, पर ख़ुद कभी उस पर अमल नहीं करता, तो ऐसी परिस्थिति को ‘सोलोमन पैराडॉक्स’ कहते हैं. दरअसल, ऐसा एक राजा सोलोमन के नाम पर कहा जाता है. वह राजा असीम बुद्धिमत्ता का मालिक था. वह अक्सर लोगों को सलाह देकर उनकी मदद करता था, पर जब वह स्वयं मुश्किल में पड़ा, तो ख़ुद की मदद ना कर सका और अपना राज गवां बैठा, इसलिए जो व्यक्ति स़िर्फ दूसरों को सुझाव देते हैं और ख़ुद उन्हें नहीं मानते, उन्हें सोलोमन पैराडॉक्स का शिकार माना जाता है.

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आख़िर लोग क्यों नहीं चल पाते ख़ुद अपनी सलाह पर?

सलाह देना आसान है, पर क्रियान्वित करना मुश्किल: लोग दूसरों को क्या अच्छा है, क्या खाना है, कैसे रहना है… ऐसी कई सलाह देते हैं, पर यह भूल जाते हैं कि उस सलाह को क्रियान्वित करने के लिए मेहनत करनी होगी. हो सकता है, इसके लिए उन्हें अपनी इच्छाओं और भावनाओं को नियंत्रण में रखना पड़े या अपनी जीवनशैली और स्वभाव में कुछ बड़े बदलाव लाने पड़ें. सलाह देनेवाला व्यक्ति यह सब नहीं सोचता.

आत्म आंकलन की कमी: लोग अक्सर जो सलाह दूसरों को देते हैं, उसकी ज़रूरत उन्हें अपने लिए नहीं लगती. मतलब अगर कोई किसी को वज़न कम करने की सलाह देता है, तो वह उस समय अपना वज़न नहीं देखता. आत्म आंकलन करने के बाद सलाह दी जाए, तो शायद सलाहकार ख़ुद भी अपनी सलाह का पालन करेगा.

ख़ुद की परिस्थितियों या समस्याओं को समझने में असमर्थ: कई बार ऐसा भी होता है कि किसी दूसरे की समस्या में आपकी सलाह काम आती है, पर वही परिस्थितियां जब ख़ुद के जीवन में आती हैं, तो हम अपनी सलाह भूल जाते हैं. इसका कारण यह है कि हम जब किसी समस्या से घिरे होते हैं, तो उसका समाधान सामने होते हुए भी दिखाई नहीं देता.

अपने आप को श्रेष्ठ साबित करने की होड़: इस तरह के लोगों की पूरी एक कौम होती है, जो स़िर्फ अपनी साख बचाने के लिए लोगों को सलाह-मशवरा देते हैं. ऐसा करते समय वे बिल्कुल भूल जाते हैं कि उन्हें उस विशेष परिस्थिति या विषय के बारे में कोई जानकारी है या नहीं. इन्हें इस बात से भी कोई मतलब नहीं होता कि आख़िर उनकी दी हुई सलाह कारगर है भी या नहीं. वह कभी अपनी दी हुई सलाह पर ख़ुद चलने की कोशिश करना तो छोड़िए, उस पर सोच-विचार भी नहीं करते. उन्हें स़िर्फ उस समय अपना वर्चस्व दिखाना होता है.

अव्यावहारिक सलाह: कुछ लोग इसलिए भी अपनी सलाह पर ख़ुद कायम नहीं रह पाते, क्योंकि उनकी सलाह अव्यावहारिक या इंप्रैक्टिकल होती है.

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इससे बचें

इस तरह की सलाह देने से बचें:

किसी भी तरह की मेडिकल सलाह देने से हमेशा बचना चाहिए. जैसे बुखार है, तो ये वाली दवा खा लो या सिरदर्द में फलां दवा कारगर है… इसके अलावा किसी भी प्रकार की मानसिक व शारीरिक बीमारी में अपनी सलाह देना किसी बड़ी विपदा को निमंत्रण दे सकता है. इसी तरह पति-पत्नी की पूरी समस्या जाने बिना सलाह देना भी ख़तरनाक हो सकता है. ऐसे किसी भी मामले में, चाहे सलाह आपकी जांची-परखी ही क्यों ना हो, फिर भी नहीं देनी चाहिए.

बिना मांगे सलाह कभी ना दें: इस बात का ध्यान हमेशा रखें कि जब तक सामने से व्यक्ति आपसे सलाह मांगने ना आए, कभी भी सलाह ना दें. सलाह तभी दें, जब आप स्वयं उसका पालन करते हों. अगर आप इन दोनों बातों का ध्यान नहीं रखते हैं, तो आपके आसपास के लोगों में आपका आदर कम हो जाएगा और लोग आपके पास रहने या बात करने से कतराने लगेंगे. सलाह देते व़क्त हमेशा याद रखें कि आप कोई प्रोफेशनल नहीं हैं. मनोवैज्ञानिक मुग्धा कहती हैं, लोग हमेशा आपसे सलाह लेने के लिए बात करने नहीं आते. कभी-कभी वह चाहते हैं कि आप उनकी समस्या या परेशानी स़िर्फ सुनें, जिससे उनके मन का बोझ हल्का हो जाए.

– माधवी कठाले निबंधे

Usha Gupta

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