शास्त्रों में कहा गया है कि शिव कृपा पाने के लिए पूरे नियम से शिवलिंग पर जल अर्पित करना चाहिए,…
शिव और रुद्र परस्पर एक-दूसरे के पर्यायवाची हैं. शिव को ही रुद्र कहा जाता है, क्योंकि-रुतम्-दु:खम्, द्रावयति-नाशयतीतिरुद्र:यानी भोले सभी दुखों…
ऐसे क़िस्से आम तो नहीं हैं कि एक भिखारी के पास एक करोड़ या इतने लाख रुपए मिले, कभी-कभार ऐसी…
श्रावण मास यानी भगवान शिव की पूजा-आराधना का उत्तम माह. श्रावण हिन्दू धर्म का पंचम माह है. श्रावण मास शिवजी…
भोजपुरी के सुपरस्टार और भाजपा सांसद रवि किशन (Ravi Kishan) का सीना गर्व से चौड़ा हो गया है. उनकी खुशियां…
‘अरे बहनजी एक बात बतानी थी. आज सुबह मैं मिसेज़ गुप्ता के घर गई थी और मैंने देखा कि उनका बेटा झाड़ू-पोछा कर रहा था. मैं तोहैरान हो गई, भला ये भी कोई लड़कों का काम है?’ मिसेज़ मिश्रा ने ये बात मिसेज़ जोशी को बताई तो मिसेज़ जोशी की बेटी ने कहा- ‘आंटी इसमें क्या ग़लत है. गुप्ता आंटी को दो दिन से बुख़ार है और उनकी काम वाली भी छुट्टी पर है, तो बेटा ही करेगा न और अपने ही तो घर का काम किया है.’ ‘देखो बेटा मुझे पता है तुम ज़्यादा ही मॉडर्न हो लेकिन कुछ काम सिर्फ़ लड़कियों के ही होते हैं, लड़कों को शोभा नहीं देता कि वो घर काझाड़ू-पोछा भी करें.’ मिसेज़ मिश्रा ने तुनककर कहा. दरअसल हमारा सामाजिक ढांचा कुछ ऐसा बना हुआ है कि हम कभी भी महिला और पुरुष को समान नज़रों से नहीं देखते. अगर किसीघर में कोई लड़का झाड़ू लगाता या किचन में ख़ाना पकाता दिख जाए तो वो इसी तरह गॉसिप का विषय बन जाता है. हमारे परिवारों में आज भी अधिकांश लोग लिंग के आधार पर ही काम को तय करते हैं. लड़कियों को शुरू से ही एक कुशल गृहणी बनने की ट्रेनिंग दी जाती है. वो पढ़ाई में कितनी भी अच्छी हो लेकिन जब तक वो गोल रोटियां बनाने में निपुण नहीं हो जाती उसे गुणी नहीं माना जाता. घर के काम लड़कियां करती हैं और बाहर के काम पुरुष- यही सीख बचपन से दी जाती है और यही धारणा सबके मन में बैठजाती है. यही वजह है कि आज भी फ़ायनेंस और प्रॉपर्टी से जुड़े काम महिलाएं करने से हिचकती हैं. शादी से पहले बैंक, प्रॉपर्टी, बिल पेमेंट्स यानी फ़ायनेंस से जुड़े तमाम काम उनके पिता या भाई करते थे और शादी के बाद उनकेपति. पुरुषों को तो जाने ही दो ख़ुद महिलाएं भी यही सोच रखती हैं कि बैंक, लेन-देन या कोई भी इस तरह के काम तो मर्दों के ही होतेहैं. यहां तक की पढ़ी-लिखी और कामकाजी महिलाएं भी यही सोच रखती हैं, क्योंकि उनके भीतर वो आत्मविश्वास पैदा ही नहींहोता कि ये काम हम भी कर सकती हैं. मिस्टर शर्मा के घर गांव से उनकी भांजी कुछ दिन मुंबई घूमने के लिए आई थी. जब वो वापस गई तो मिस्टर शर्मा को गांव से उनके कईरिश्तेदारों के फ़ोन आए और सबने यही कहा कि ये हम क्या सुन रहे हैं, घर की साफ़-सफ़ाई तुम करते हो और यहां तक कि किचन मेंकाम भी करवाते हो. घर की औरतों को शर्म आनी चाहिए और तुमको भी. मिस्टर शर्मा ने उनसे बहस करना ठीक नहीं समझा लेकिन सच यह था कि वो अर्ली रिटायरमेंट ले चुके थे. उनको घर में बैठने की आदतनहीं थी और वो सुबह जल्दी उठ जाते थे. उनकी बहू कामकाजी थी, उसकी शिफ़्ट ही कुछ ऐसी थी कि लेट नाइट तक काम करना पड़ताथा. ऐसे में मिस्टर शर्मा अपनी वाइफ़ और बहू की मदद के लिए सुबह जल्दी उठने पर उस वक्त का सदुपयोग कर लेते थे. उनके घर पर सभी मिल-जुलकर काम एडजस्ट करते थे, जिसमें उनको तो कोई दिक़्क़त नहीं थी लेकिन बाक़ी लोगों को काफ़ी परेशानीथी. कामवाली इसलिए नहीं लगाई थी कि उनका भरोसा नहीं कि कभी आए, कभी न आए, समय का भी ठिकाना नहीं उनका तो इससे बेहतरहै अपना काम ख़ुद कर लें. हम ऊपरी तौर पर तो मॉडर्न बनते हैं और लिंग भेद को नकारने की बातें करते हैं, लेकिन हमारे व्यवहार में, घरों में और रिश्तों में वोयह भेदभाव साफ़ नज़र आता है. घरेलू काम की ज़िम्मेदारियां स़िर्फ बेटियों पर ही डाली जाती हैं. बचपन से पराए घर जाना हैकी सोच के दायरे में ही बेटियों की परवरिश की जाती है.…
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हम एक शब्द हैं वह पूरी भाषा हैबस यही मां की परिभाषा है… जब भी कोई रिश्ता उधड़े करती है…
आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस द्वारा बनाई गई कई तस्वीरें इन दिनों सोशल मीडिया पर छाई हुई हैं. हमने भी आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस का…