अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शुरू हो गई थी, लेकिन केदारनाथ और…
अक्षय तृतीया के दिन गंगोत्री और यमुनोत्री मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही उत्तराखंड की चारधाम यात्रा शुरू हो गई थी, लेकिन केदारनाथ और बदरीनाथ धाम के कपाट 29 अप्रैल रविवार और 30 अप्रैल सोमवार को खुले. चारों मंदिरों के कपाट खुलने के साथ ही आधिकारिक रूप से चार धाम की यात्रा शुरू हो गई है. इन चारों तीर्थ स्थलों पर आप कैसे पहुंच सकते हैं और यात्रा के दौरान आपको कौन-कौन सी सावधानियां बरतनी चाहिए. आइए जानते हैं.
यमुनोत्री है पहला पड़ाव
यमुनोत्री को चारधाम यात्रा का पहला पड़ाव कहा जाता है. यहां यमुना का पहाड़ी शैली में बना खूबसूरत मंदिर है और मंदिर के पास ही खौलते पानी का स्रोत है जो तीर्थ यात्रियों के आकर्षण का केंद्र है. यमुनोत्री पहुंचने के लिए आप दिल्ली से देहरादून या ऋषिकेश तक हवाई यात्रा या रेल यात्रा से पहुंच सकते हैं.यहां से आगे सड़क मार्ग और आखिरी कुछ किलोमीटर पैदल चलकर यमुनोत्री पहुंच सकते हैं.
गंगोत्री है दूसरा पड़ाव
चारधाम यात्रा का दूसरा पड़ाव गंगोत्री है. यमुनोत्री के दर्शन कर तीर्थ यात्री गंगोत्री में गंगा माता की पूजा के लिए पहुंचते हैं. गंगा का प्राकृतिक स्रोत गोमुख ग्लेश्यिर गंगोत्री से 18 किलोमीटर दूर है. यमुनोत्री से गंगोत्री की सड़क मार्ग से दूरी 219 किलोमीटर है जबकि ऋषिकेश से गंगोत्री की दूरी 265 किलोमीटर है और वहां से वाहन से सीधे पहुंचा जा सकता है.
कैसे पहुंचे केदारनाथ?
चारधाम यात्रा का तीसरा पड़ाव केदारनाथ धाम है जो उत्तराखंड के रूद्रप्रयाग जिले में आता है. ऋषिकेश से गौरीकुण्ड की दूरी 76 किलोमीटर है और यहां से 18 किलोमीटर की दूरी तय करके केदारनाथ पहुंच सकते हैं. केदारनाथ और लिंचैली के बीच 4 मीटर चौड़ी सीमेंटेड सड़क बना दी गई है जिससे श्रद्धालु आसानी से केदारनाथ पहुंच सकते हैं.
कैसे पहुंचे बद्रीनाथ?
बद्रीनाथधाम तक गाड़ियां जाती हैं, इसलिए यहां मौसम अनुकूल होने पर पैदल नहीं जाना पड़ता. बद्रीनाथ को बैकुण्ठ धाम भी कहा जाता है. यहां पहुंचने के लिए ऋषिकेश से देवप्रयाग, श्रीनगर, रूद्रप्रयाग, कर्णप्रयाग, चमोली और गोविन्दघाट होते हुए पहुंचा जा सकता है.
कब जाएं ?
वैसे तो चारधाम यात्रा हर साल अप्रैल महीने में शुरू होती है और अक्टूबर-नवंबर में खत्म हो जाती है, लेकिन सितंबर का महीना इस यात्रा का पीक सीजन होता है क्योंकि जून से अगस्त के बीच इस इलाके में भारी बारिश होती है, जिसकी वजह से तीर्थ यात्रियों को भारी परेशानियों का सामना करना पड़ता है. सितंबर चारधाम यात्रा पर जाने का सबसे बेस्ट समय है क्योंकि बारिश के बाद पूरी घाटी धुली हुई और फ्रेश हो जाती है, चारों तरफ हरियाली नजर आने लगती है और यहां की प्राकृतिक खूबसूरती देखते ही बनती है.
इन बातों का रखें खास ख्याल
चारधाम यात्रा ही नहीं बल्कि किसी भी यात्रा के दौरान आपको अपनी जरूरी दवाइयां हमेशा साथ रखनी चाहिए.
इसके अलावा छोटी-मोटी सामान्य परेशानियों जैसे- पेट दर्द, उल्टी, सिरदर्द, बुखार की दवा के अलावा क्रीम और पेनरिलीफ स्प्रे भी साथ रखना चाहिए.
यात्रा के दौरान गर्म और ऊनी कपड़े साथ रखें क्योंकि इस क्षेत्र का मौसम हमेशा ठंडा रहता है और ऊंचाई पर तो ठंड ज्यादा बढ़ जाती है.
इसके अलावा एक अच्छा टॉर्च भी साथ जरूर रखें.
चारधाम की यात्रा अकेले करने की बजाए दोस्तों और रिश्तेदारों के साथ करें क्योंकि रूट चैलेंजिंग होने की वजह से मुश्किलों का सामना करना पड़ सकता है.
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मीति और मधुर बचपन से एक ही स्कूल में पढते थे, लेकिन मधुर के पिता का अचानक निधन हो गया और उसे मीति का स्कूल छोड़ सरकारी स्कूल में दाख़िला लेना पड़ा. लेकिन आते-जाते अक्सर दोनों के रास्ते मिल ही जाते थे और उनकी नज़रें मिल जातीं, तो दोनों केचेहरे पर अनायास मुस्कुराहट आ जाती. स्कूल ख़त्म हुआ तो दोनों ने कॉलेज में एडमिशन ले लिया था. दोनों उम्र की उस दहलीज़ पर खड़े थे जहां आंखों में हसीन सपने पलने लगते हैं. मधुर भी एक बेहद आकर्षक व्यक्तित्व में ढल चुका थाऔर उसके व्यक्तित्व के आकर्षण में मीति खोती जा रही थी. कई बार मधुर ने उसे आगाह भी किया था कि मीति तुम एक रईस पिता की बेटी हो, मैं तो बिल्कुल साधारण परिवार से हूं, जहां मुश्किल से गुज़र-बसर होती है, लेकिन मीति तो मधुर के प्यार में डूब चुकी थी. वहकब मधुर के ख्यालों में भी बस गई थी वह यह जान ही नहीं पाया. मीति कभी नोट्स, तो कभी असाइनमेंट के बहाने उसके पास आ जाती, फिर कभी कॉफी, तो कभी आइसक्रीम, ये सब तो उसका मधुरके साथ नज़दीकियां बढ़ाने का बहाना था. अब मीति और मधुर क़ा इश्क कॉलेज में भी किसी से छिपा नहीं रह गया था. करोड़पति परिवार की इकलौती लाडली मीति कोपूरा विश्वास था कि मध्यवर्गीय परिवार के मधुर के कैंपस सेलेक्शन के बाद वह पापा को अपने प्यार से मिलवायेगी. मल्टीनेशनल कंपनी के ऊंचे पैकेज का मेल मिलते ही मधुर ने मीति को अपनी आगोश में ले लिया ऒर वह भावुक हो उठा, ”मीति, तुम तो मेरे जीवन मेंकी चांदनी हो, जो शीतलता भी देती है और चारों ओर रोशनी की जगमगाहट भी फैला देती है. जब हंसती हो तो मेरे दिल में न जानेकितनी कलियां खिल उठती हैं. बस अब मेरी जिंदगी में आकर मेरे सपनों में रंग भर दो.” मीति मधुर के प्यार भरे शब्दों में खो गई और लजाते हुए उसने अपनी पलकें झुका लीं और मधुर ने झट से उसकी पलकों को चूम लिया था. इस मीठी-सी छुअन से उसका पोर-पोर खिल उठा. वह छुई मुई सी अपने में सिमट गई. लेकिन इसी बीच मीति के पापा ने उसकी ख्वाहिश को एक पल में नकार दिया और मधुर को इससे दूर रहने का फरमान सुना दिया. मधुर उदास पराजित-सा होकर दूर चला गया. दोनों के सतरंगी सपनों का रंग बदरंग कर दिया गया था. मधुर ने अपना फ़ोन नंबर भी बदल दिया था और अपनी परिस्थिति को समझतेहुए मीति से सारे संबंध तोड़ लिये थे. मीति के करोड़पति पापा ने धूमधाम और बाजे-गाजे के साथ उसे मिसेज़ मेहुल पोद्दार बना दिया. उसका अप्रतिम सौंदर्य पति मेहुल केलिए गर्व का विषय था. समय के साथ वह जुड़वां बच्चों की स्मार्ट मां बन गई थी. पोद्दार परिवार की बहू बड़ी-बड़ी गाड़ियों में घूमतीऔर अपने चेहरे पर खिलखिलाहट व मुस्कान का मुखौटा लगाए हुए अपने होने के एहसास और वजूद को हर क्षण तलाशती-सी रहती. उसे किसी भी रिश्ते में उस मीठी-सी छुअन का एहसास न हो पाता और वह तड़प उठती. सब कुछ होने के बाद भी वह खोई-खोई-सी…