सोचिए ताजमहल पर कब्ज़ा करने के लिए एक महाराष्ट्रियन कपल टैक्टर पर बैठ कर महाराष्ट्र से आगरा पहुंचता है. ये सुनने में जितना अजीब है, उतने ही अजीब तरीक़े से फिल्माया भी गया है. इस फिल्म की कहानी इंट्रेस्टिंग होने की बजाय बोरिंग हो गई है. फिल्म की कहानी में कुछ नयापन नहीं है. एक बिज़नेसमैन के किसानों से ज़मीन छीनने पर जब किसानों का नेता इसका विरोध करता है, तो उसकी हत्या करवा दी जाती है. उस किसान के भाई विवेक (श्रेयस तलपड़े) जो कि विदेश में पढ़ाई कर रहा है, जब उसे ये बात पता चलती है तो वह अपनी गर्लफ्रेंड रिया (मंजरी फणनिस) के साथ गांव आ जाता है और ज़मीन पाने के लिए एक खेल खेलता है. दोनों ताजमहल के कागज़ात जमा करते हैं और तुकाराम व सुनंदा बनकर ताजमहल पर दावा ठोक देते हैं. फिर कहानी कई मोड़ लेती है.
पूरी की पूरी फिल्म ही कमज़ोर है. श्रेयस और मंजरी की एक्टिंग ठीक ठाक है, लेकिन दूसरे कलाकारों की ओवरएक्टिंग आपको बोर करेगी. फिल्म में कोर्ट रूम का एक सीन दिखाया गया है, जिसमें जज और वकील के बीच हुई बहस आपको ज़रूर हंसाने में कामयाब होगी.
ये आप पर निर्भर करता है कि आपको क्या करना है. अगर दूसरी फिल्मों की टिकट्स नहीं मिल रही हैं और आपके पास वीकेंड पर करने को कुछ नहीं है, तो आप इस फिल्म को देखने जा सकते हैं. लेकिन अगर आपको अपने पैसे प्यारे हैं, तो इस फिल्म पर उसे बिल्कुल न खर्च करें.
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