मॉनसून थीम थी किट्टी में. सत्रंगी परिधान पहनना था. मैं भी अपनी आलमारी से सत्रंगी लहरिया पहन कर गई थी. सामने सोफे पर बैठी वंशिका से सभी लोग उसकी नई कहानी की तारीफ़ कर रहे थे. दो वर्ष पहले उसके पति की कोरोना में मृत्यु हो गई थी.
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उनके जाने के बाद उसने दुकान को पूर्ववत ही संभाल रखा था.. साथ ही लेखिका के रूप में भी उसने नई पहचान बनाई थी. पिछली किटी में देखा घर भी बहुत करीने से सजा रखा है. उसको देखकर ख़्याल आया.. टूटकर जुड़ना मुश्किल होता है, नामुमकिन नहीं..
स्याह रात्रि के अंधियारे भी उषा से ओझल हो जाते है. मैं अपनी छोटी-छोटी घरेलू समस्याओं से अवसादग्रस्त होने पर शर्मिंदगी महसूस करने लगी.
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सोच रही थी.. सत्रंगी थीम का ख़िताब बेशक मैं जीत सकती हूं, लेकिन जीवन के मॉनसून की बारिश की असली विजेता तो वंशिका ही है.
– रश्मि वैभव गर्ग
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