Categories: FILMEntertainment

गुमनामी की ज़िंदगी जी रहे हैं अपने जमाने के ये फेमस स्टार्स (Forgotten Bollywood Stars and how they look now)

बॉलीवुड की दुनिया हमारे से जितनी ग्लैमरस दिखती है, अंदर से उतनी ही खोखली है. यहां उगते सूरज को सलाम किया जाता है. जो स्टार…

बॉलीवुड की दुनिया हमारे से जितनी ग्लैमरस दिखती है, अंदर से उतनी ही खोखली है. यहां उगते सूरज को सलाम किया जाता है. जो स्टार हिट फिल्में देता है, उसकी हर ओर पूछ होती है और जैसे ही वो पर्दे से दूर होता है, उसे लोग भूल जाते हैं. हम आपको  कुछ ऐसे ही स्टार्स के बारे में बता रहे हैं, जो फिलहाल ग्लैमर की दुनिया से काफी दूर हैं.

कुमार गौरव

लव स्टोरी, तीसरी कसम और कांटे जैसी कई फिल्मों में काम कर चुके कुमार गौरव की शादी संजय दत्त की बहन नम्रता दत्त से हुई है. वे काफी समय से ग्लैमर की दुनिया से दूर हैं.

चंद्रचूड़ सिंह

बॉलीवुड के जाने-माने अभिनेता चंद्रचूड़ सिंह जिन्होंने फिल्म माचिस के लिए बेस्ट मेल डेब्यू का फिल्मफेयर अवार्ड भी मिल चुका है उन्होंने  बॉलीवुड में कुछ खास कामयाबी हासिल नहीं हुई और वे फिलहाल लाइमलाइट से दूर हैं.

उदय चोपड़ा

फिल्मी दुनिया से गायब अभिनेता उदय चोपड़ा को तो अब पहचान पाना भी मुश्किल है. उदय 46 साल के हैं और अभी तक शादी नहीं की है. साल 2000 में रिलीज शाहरुख खान और अमिताभ बच्चन की फिल्म मोहब्बतें से यश चोपड़ा के बेटे उदय चोपड़ा ने डेब्यू किया था. फिल्म तो सुपरहिट रही लेकिन उदय चोपड़ा का करियर छलांगें नहीं मार पाया.

अविनाश वाधवन

अविनाश वाधवन बॉलीवुड और टीवी के जाने-माने अभिनेता है, वह गीत , आई मिलन की रात, मीरा का मोहन जुनून, दिल की बाजी आदि कई फिल्मों में नजर आए, लेकिन वह उस मुकाम तक नहीं पहुंच पाए जहां पहुंचना चाहते थे उसके बाद वो सुपरहिट सीरियल बालिका वधू में भी नजर आए थे.

अनु अग्रवाल 

1990 में आई सुपरहिट फिल्म आशिकी ने राहुल रॉय और अनु अग्रवाल को घर-घर में पहचान दिलाई. हालांकि इस फिल्म में बाद वो कुछ और फिल्मों में भी दिखीं, लेकिन जो कामयाबी उन्हें आशिकी ने दी, वो किसी और फिल्म ने नहीं दी. मासूम सी सूरत और ‘गर्ल नेक्स्ट डोर’ इमेज वाली अनु का फिल्मी सफर ज्यादा वक्त तक नहीं चला. 1996 तक आते -आते अनु बड़े पर्दे से गायब हो गईं और उन्होंने अपना रुख योग और अध्यात्म की तरफ कर लिया.

फैजल खान

फिल्म  मेला  में फैजल खान ने आमिर खान के दोस्त की भूमिका निभाई थी. आपको जानकर हैरानी होगी कि फैजल खान आमिर खान के सगे भाई हैं हालांकि आमिर और फैजल के रिश्ते अब अच्छे नहीं हैं.

सुमीत सहगल


सुमीत सहगल ने संजय दत्त, गोविंदा और मिथुन चक्रवर्ती जैसे बहुत से स्टार्स के साथ काम काम किया, लेकिन उन्हें सफलता नहीं मिली. उनकी बेटी ने अजय देवगन की फिल्म शिवाय के साथ बॉलीवुड में डेब्यू किया था.

हरमन बावेजा

एक्टर हरमन बावेजा ने जब बॉलीवुड में एंट्री की तो उस वक्त माना जा रहा था कि आने वाले समय में वो सुपरस्टार्स को कड़ी टक्कर देंगे लेकिन ऐसा हो नहीं सका. हरमन जल्द ही इंडस्ट्री से गायब हो गए. फिल्म निर्देशक हैरी बावेजा और निर्माता पम्मी बावेजा के बेटे हरमन ने साल 2008 में फिल्म लव स्टोरी 2050′ से डेब्यू किया था. साल 2009 में हैरी बावेजा ने अपने बेटे के लिए रोमांटिक फिल्म व्हॉट्स योर राशि बनाई. दोनों ही फिल्में बॉक्स ऑफिस पर सुपर फ्लॉप साबित हुईं. अब उनके लुक में भी बदलाव आ गया है. यहां तक कि पहचानना भी मुश्किल हो जाएगा.

Share
Published by
Shilpi Sharma

Recent Posts

कहानी- आंधी (Short Story- Aandhi)

“बच्चे हमारी ज़िंदगी का सबसे अहम् हिस्सा हैं. सोसायटी से कटकर ज़िंदगी जी जा सकती…

लाइफ़स्टाइल नई, पर सोच वही… रिश्तों में आज भी लड़कियों को नहीं मिलता बराबरी का दर्जा… (Equality In Relationships: Women Still Far From Being Equal With Men)

ये माना समय बदल रहा है और लोगों की सोच भी. समाज कहने को तो पहले से कहीं ज़्यादा मॉडर्न ही गया है. लाइफ़स्टाइल बदल गई, सुविधाएं बढ़ गईं, लग्ज़री चीजों की आदतें हो गई… कुल मिलाकर काफ़ी कुछ बदल गया है, लेकिन ये बदलाव महज़ बाहरी है, दिखावाहै, छलावा है… दिखाने के लिए तो हम ज़रूर बदले हैं लेकिन भीतर से हमारी जड़ों में क़ैद कुछ रूढ़ियां आज भी सीना ताने वहीं कि वहींऔर वैसी कि वैसी खड़ी हैं… थमी हैं… पसरी हुई हैं. जी हां, यहां हम बात वही बरसों पुरानी ही कर रहे हैं, बेटियों की कर रहे हैं, बहनों की कर रहे हैं और माओं की कर रहे हैं… नानी-दादी, पड़ोसन और भाभियों की कर रहे हैं, जो आज की नई लाइफ़स्टाइल में भी उसी पुरानी सोच के दायरों में क़ैद है और उन्हें बंदी बना रखा हैखुद हमने और कहीं न कहीं स्वयं उन्होंने भी.  भले ही जीने के तौर तरीक़ों में बदलाव आया है लेकिन रिश्तों में आज भी वही परंपरा चली आ रही है जिसमें लड़कियों को बराबरी कादर्जा और सम्मान नहीं दिया जाता. क्या हैं इसकी वजहें और कैसे आएगा ये बदलाव, आइए जानें.  सबसे बड़ी वजह है हमारी परवरिश जहां आज भी घरों में खुद लड़के व लड़कियों के मन में शुरू से ये बात डाली जाती है कि वोदोनों बराबर नहीं हैं. लड़कों का और पुरुषों का दर्जा महिलाओं से ऊंचा ही होता है. उनको घर का मुखिया माना जाता है. सारे महत्वपूर्ण निर्णय वो ही लेते हैं और यहां तक कि वो घर की महिलाओं से सलाह तक लेना ज़रूरी नहीं समझते. घरेलू कामों में लड़कियों को ही निपुण बनाने पर ज़ोर रहता है, क्योंकि उनको पराए घर जाना है और वहां भी रसोई में खाना हीपकाना है, बच्चे ही पालने है तो थोड़ी पढ़ाई कम करेगी तो चलेगा, लेकिन दाल-चावल व रोटियां कच्ची नहीं होनी चाहिए.ऐसा नहीं है कि लड़कियों की एजुकेशन पर अब परिवार ध्यान नहीं देता, लेकिन साइड बाय साइड उनको एक गृहिणी बनने कीट्रेनिंग भी दी जाती है. स्कूल के बाद भाई जहां गलियों में दोस्तों संग बैट से छक्के मारकर पड़ोसियों के कांच तोड़ रहा होता है तो वहीं उसकी बहन मां केसाथ रसोई में हाथ बंटा रही होती है.ऐसा नहीं है कि घर के कामों में हाथ बंटाना ग़लत है. ये तो अच्छी बात और आदत है लेकिन ये ज़िम्मेदारी दोनों में बराबर बांटीजाए तो क्या हर्ज है? घर पर मेहमान आ जाएं तो बेटियों को उन्हें वेल्कम करने को कहा जाता है. अगर लड़के घर के काम करते हैं तो आस-पड़ोस वाले व खुद उनके दोस्त तक ताने देते हैं कि ये तो लड़कियों वाले काम करता है.मुद्दा यहां काम का नहीं, सोच का है- ‘लड़कियोंवाले काम’ ये सोच ग़लत है. लड़कियों को शुरू से ही लाज-शर्म और घर की इज़्ज़त का वास्ता देकर बहुत कुछ सिखाया जाता है पर संस्कारी बनाने के इसक्रम में लड़के हमसे छूट जाते हैं.अपने घर से शुरू हुए इसी असमानता के बोझ को बेटियां ससुराल में भी ताउम्र ढोती हैं. अगर वर्किंग है तो भी घरेलू काम, बच्चों व सास-ससुर की सेवा का ज़िम्मा अकेले उसी पर होता है. ‘अरे अब तक तुम्हारा बुख़ार नहीं उतरा, आज भी राजा बिना टिफ़िन लिए ऑफ़िस चला गया होगा. जल्दी से ठीक हो जाओ बच्चेभी कब तक कैंटीन का खाना खाएंगे… अगर बहू बीमार पड़ जाए तो सास या खुद लड़की की मां भी ऐसी ही हिदायतें देती है औरइतना ही नहीं, उस लड़की को भी अपराधबोध महसूस होता है कि वो बिस्तर पर पड़ी है और बेचारे पति और बच्चे ठीक से खानानहीं खा पा रहे. ये चिंता जायज़ है और इसमें कोई हर्ज भी नहीं, लेकिन ठीक इतनी ही फ़िक्र खुद लड़की को और बाकी रिश्तेदारों को भी उसकीसेहत को लेकर भी होनी चाहिए. घर के काम रुक रहे हैं इसलिए उसका जल्दी ठीक होना ज़रूरी है या कि स्वयं उनकी हेल्थ केलिए उसका जल्दी स्वस्थ होना अनिवार्य है? पति अगर देर से घर आता है तो उसके इंतज़ार में खुद देर तक भूखा रहना सही नहीं, ये बात बताने की बजाय लड़कियों को उल्टेये सीख दी जाती है कि सबको खिलाने के बाद ही खुद खाना पत्नी व बहू का धर्म है. व्रत-उपवास रखने से किसी की आयु नहीं घटती और बढ़ती, व्रत का संबंध महज़ शारीरिक शुद्धि व स्वास्थ्य से होता है, लेकिनहमारे यहां तो टीवी शोज़ व फ़िल्मों में इन्हीं को इतना ग्लोरीफाई करके दिखाया जाता है कि प्रिया ने पति के लिए फ़ास्ट रखा तोवो प्लेन क्रैश में बच गया… और इसी बचकानी सोच को हम भी अपने जीवन का आधार बनाकर अपनी ज़िंदगी का अभिन्न हिस्साबना लेते हैं. बहू की तबीयत ठीक नहीं तो उसे उपवास करने से रोकने की बजाय उससे उम्मीद की जाती है और उसकी सराहना भी कि देखोइसने ऐसी हालत में भी अपने पति के लिए उपवास रखा. कितना प्यार करती है ये मेरे राजा से, कितनी गुणी व संस्कारी है. एक मल्टी नेशनल कंपनी में काम करने वाली सुप्रिया कई दिनों से लो बीपी व कमज़ोरी की समस्या झेल रही थी कि इसी बीचकरवा चौथ भी आ गया. उसने अपनी सास से कहा कि वो ख़राब तबीयत के चलते करवा चौथ नहीं कर पाएगी, तो उसे जवाब मेंये कहा गया कि अगर मेरे बेटे को कुछ हुआ तो देख लेना, सारी ज़िंदगी तुझे माफ़ नहीं करूंगी. यहां बहू की जान की परवाहकिसी को नहीं कि अगर भूखे-प्यासे रहने से उसकी सेहत ज़्यादा ख़राब हो गई तो? लेकिन एक बचकानी सोच इतनी महत्वपूर्णलगी कि उसे वॉर्निंग दे दी गई. आज भी हमारे समाज में पत्नियां पति के पैर छूती हैं और उनकी आरती भी उतारती दिखती हैं. सदा सुहागन का आशीर्वाद लेकरवो खुद को धन्य समझती हैं… पुत्र प्राप्ति का आशीर्वाद मिलने पर वो फूले नहीं समाती हैं… ऐसा नहीं है कि पैर छूकर आशीर्वाद लेना कोई ग़लत रीत या प्रथा है, बड़े-बुजुर्गों का आशीर्वाद बेहद ज़रूरी है और ये हमारेसंस्कार भी हैं, लेकिन पति को परमेश्वर का दर्जा देना भी तो ग़लत है, क्योंकि वो आपका हमसफ़र, लाइफ़ पार्टनर और साथी है. ज़ाहिर है हर पत्नी चाहती है कि उसके पति की आयु लंबी हो और वो स्वस्थ रहे लेकिन यही चाहत पति व अन्य रिश्तेदारों कीलड़की के लिए भी हो तो क्या ग़लत है? और होती भी होगी… लेकिन इसके लिए पति या बच्चों से अपनी पत्नी या मां के लिए दिनभर भूखे-प्यासे रहकर उपवास करने कीभी रीत नहीं… तो फिर ये बोझ लड़कियों पर क्यों?अपना प्यार साबित करने का ये तो पैमाना नहीं ही होना चाहिए.बेटियों को सिखाया जाता है कि अगर पति दो बातें कह भी दे या कभी-कभार थप्पड़ भी मार दे तो क्या हुआ, तेरा पति ही तो है, इतनी सी बात पर घर नहीं छोड़ा जाता, रिश्ते नहीं तोड़े जाते… लेकिन कोई उस लड़के को ये नहीं कहता कि रिश्ते में हाथ उठानातुम्हारा हक़ नहीं और तुमको माफ़ी मांगनी चाहिए.और अगर पत्नी वर्किंग नहीं है तो उसकी अहमियत और भी कम हो जाती, क्योंकि उसके ज़हन में यही बात होती है कि जो कमाऊसदस्य होता है वो ही सबसे महत्वपूर्ण होता है. उसकी सेवा भी होनी चाहिए और उसे मनमानी और तुम्हारा निरादर करने का हक़भी होता है.मायके में भी उसे इसी तरह की सीख मिलती है और रिश्तेदारों से भी. यही कारण है कि दहेज व दहेज के नाम पर हत्या वआत्महत्या आज भी समाज से दूर नहीं हुईं.बदलाव आ रहा है लेकिन ये काफ़ी धीमा है. इस भेदभाव को दूर करने के लिए जो सोच व परवरिश का तरीक़ा हमें अपनाना हैउसे हर घर में लागू होने में भी अभी सदियों लगेंगी, क्योंकि ये अंतर सोच और नज़रिए से ही मिटेगा और हमारा समाज व समझअब भी इतनी परिपक्व नहीं हुईं कि ये नज़रिया बदलनेवाली नज़रें इतनी जल्दी पा सकें. पत्नी व महिलाओं को अक्सर लोग अपनी प्रॉपर्टी समझ लेते हैं, उसे बहू, बहन, बेटी या मां तो समझ लेते हैं, बस उसे इंसान नहींसमझते और उसके वजूद के सम्मान को भी नहीं समझते.गीता शर्मा 

© Merisaheli