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इंसुलिन से जुड़े मिथकों की सच्चाई (Insulin Myths and Facts)

अगर आप या आपका कोई क़रीबी डायबिटीज़ की समस्या से जूझ रहा है तो आप इंसुलिन (Insulin) नामक शब्द से भली-भांति परिचित होंगे. जब हमारा शरीर पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हार्मोन (Insulin Hormone) का निर्माण नहीं करता तो रक्त में ग्लूकोज़ लेवल को बनाए रखने के लिए इसकी आवश्यकता होती है. इसके बारे में सुनते ही बहुत से लोगों के मन में तरह-तरह के सवाल उठने लगते हैं. आप अकेले नहीं हैं जो ऐसा सोचते हैं. इंसुलिन थेरेपी या इंजेक्शन के बारे में बहुत-सी ऐसी मिथक धारणाएं हैं, जिसके कारण इसके बारे में सुनते ही लोगों के पसीने छूटने लगते हैं. इसी बात को ध्यान में रखते हुए हम इंसुलिन थेरेपी से जुड़ी ग़लत धारणाओं को दूर करने की कोशिश कर रहे हैं.

मिथकः इंसुलिन इंजेक्शन का इस्तेमाल केवल टाइप 1 डायबिटीज़ में किया जाता है.
सच्चाईः यह सच है कि टाइप 1 डायबिटीज़ से जूझ रहे लोगों को इंसुलिन इंजेक्शन लेना ही पड़ता है, लेकिन कुछ केसेज़ में टाइप 2 के मरीज़ों को भी इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है. जब टाइप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित व्यक्ति के अग्न्याशय में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उत्पादन नहीं होता या उनकी रक्त कोशिकाएं ब्लड शुगर को नियंत्रित करने के लिए इंसुलिन का सही तरी़के से इस्तेमाल नहीं कर पातीं तो इंसुलिन थेरेपी की आवश्यकता पड़ती है.

मिथकः डायबिटीज़ की समस्या से जूझ रहे सभी लोगों को इंसुलिन की आवश्यकता होती है.
सच्चाईः टाइप 1 डायबिटीज़ से जूझ रहे सभी मरीज़ों को इंसुलिन की आवश्यकता पड़ती है, क्योंकि या तो उनके शरीर में पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन हार्मोन का उत्पादन नहीं होता या इंसुलिन का सही तरी़के से इस्तेमाल नहीं हो पाता है. लेकिन टाइप 2 डायबिटीज़ में ऐसा नहीं होता. टाइप 2 से पीड़ित कुछ मरीज़ों को कुछ केसेज़, जैसे-सर्जरी के समय, स्टेराइड दवाओं के सेवन के दौरान या कैंसर जैसी बीमारी में आवश्यकता पड़ने पर थोड़े समय के लिए इंसुलिन इंजेक्शन लेना पड़ सकता है. पर इन समस्याओं के ठीक होते ही इंसुलिन थेरेपी बंद हो जाती है. इसके अलावा अगर टाइप 2 डायबिटीज़ से पीड़ित मरीज़ के पैंक्रियाज़ से पर्याप्त मात्रा में इंसुलिन का उप्पादन नहीं होता, तब उन्हें इंसुलिन के इंजेक्शन्स लेने पड़ते हैं. पर ऐसा सभी केसेज़ में नहीं होता.

मिथकः इंसुलिन इंजेक्शन लेते समय बहुत दर्द होता है.
सच्चाईः यह धारणा पूरी तरह ग़लत है. इसे पढ़कर शायद आपको राहत महसूस होगी. पहले के समय में इंसुलिन इंजेक्शन लगाने के लिए मोटी सूई का प्रयोग किया जाता था, लेकिन आजकल प्रयोग में लाए जानेवाले इंसुलिन के इंजेक्शन्स से दर्द नहीं होता है. इंजेक्शन को ऐसी जगह इंजेक्ट किया जाता है, जहां कोई नर्व एंडिंग नहीं होती है, जिसके कारण बिल्कुल दर्द नहीं होता है. इसके अलावा आजकल प्रयोग में लाए जानेवाली सुइयां इतनी पतली और छोटी होती हैं कि दर्द महसूस ही नहीं होता.

मिथकः इंसुलिन लेने का अर्थ यह है कि मरीज़ को खाने-पीने में किसी तरह का परहेज़ करने की आवश्यकता नहीं होती.
सच्चार्ईः टाइप 2 डायबिटीज़ के मरीज़ों के लिए इंसुलिन इंजेक्शन लेने के साथ-साथ स्वस्थ जीवनशैली अपनाना और हानिकारक चीज़ों से परहेज़ करना बहुत ज़रूरी है, क्योंकि अगर वे हेल्दी डायट नहीं लेंगे तो इंसुलिन इंजेक्शन लेने से भी कुछ ख़ास फर्क नहीं पड़ेगा. अनहेल्दी भोजन ग्रहण करने, एक्सरसाइज़ नहीं करने व मोटापा बढ़ने पर और ज़्यादा इंसुलिन लेने की ज़रूरत पड़ सकती है. इतना ही नहीं, इन बुरी आदतों के कारण इंसुलिन इंजेक्शन का असर भी कम हो सकता है. इसके अलावा अस्वस्थ जीवनशैली के कारण हाई कोलेस्ट्रॉल, मोटापा इत्यादि की समस्या भी हो सकती है, जिसके कारण इंसुलिन रेज़िस्टेंट, खराब ब्लड शुगर और अनियंत्रित ब्लड प्रेशर की समस्याएं हो सकती हैं. इन सभी कारणों से हार्ट अटैक, स्ट्रोक और किडनी फेल्योर का ख़तरा बढ़ जाता है.


मिथकः इंसुलिन इंजेक्शन लेने से वज़न बढ़ता है.
सच्चाईः यह सच है कि इंसुलिन इंजेक्शन लेने पर शुरुआत में कुछ लोगों का वज़न थोड़ा बढ़ जाता है, लेकिन ज़्यादातर केसेज़ में ऐसा कुछ समय के लिए होता है. धीरे-धीरे हमारे शरीर को इसकी आदत हो जाती है. अगर मरीज़ खान-पान पर नियंत्रण रखता है तो उसका वज़न नहीं बढ़ता.

मिथकः अगर इंसुलिन इंजेक्शन के कारण ब्लड शुगर बहुत ज़्यादा कम हो जाए तो व्यक्ति कोमा में जा सकता है.
सच्चाईः ऐसा हो सकता है, लेकिन ऐसा होने के चांसेज़ बहुत कम होते हैं, ख़ासतौर पर टाइप 2 डायबिटीज़ के केसेज़ में. लेकिन इसके बावजूद हाथों में कंपन, पसीना छूटना, भूख और असमंजस की स्थिति लो ब्लड शुगर के संकेत हो सकते हैं. अगर आपको कभी ऐसा महसूस हो तो थोड़ा-सा शक्कर खाएं और 15 मिनट बाद अपना ब्लड शुगर चेक करें, क्योंकि ब्लड शुगर बहुत ज़्यादा कम होने पर ही बेहेशी आ सकती है.

मिथकः इंसुलिन मरीज़ की पूरी ज़िंदगी को बदल देता है.
सच्चाईः यह सच है कि इंसुलिन लेने पर ज़िंदगी बदल जाती है. लेकिन बदलाव अच्छा होता है, बुरा नहीं. इससे शरीर को ऊर्जा मिलती है और जीवनशैली व कार्यक्षमता में सुधार आता है. हां, थोड़ी-बहुत सावधानियां बरतनी पड़ती हैं, जैसे-इंसुलिन ट्रीटमेंट के दौरान खान-पान पर ध्यान रखना आवश्यक होता है और ब्लड शुगर को मॉनिटर करते रहना पड़ता है. उसी के अनुसार फिज़िकल ऐक्टिविटी और ट्रैवल प्लान करना पड़ता है. इंसुलिन थेरेपी पौष्टिक खान-पान और नियमित एक्सरसाइज़ करने के लिए प्रेरित करती है.

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मिथकः सफ़र के दौरान इंसुलिन इंजेक्शन लेना मुश्क़िल होता है.
सच्चाईः आजकल बाज़ार में तरह-तरह के इंसुलिन इंजेक्शन्स उपलब्ध हैं, जिन्हें लेना बहुत आसान है. बाज़ार में इंसुलिन पेन्स भी मिलते हैं, जिन्हें फ्रिज में रखने की आवश्यकता नहीं पड़ती और इसे आसानी से लिया जा सकता है.

मिथकः इंसुलिन की आदत पड़ जाती है.
सच्चाईः इंसुलिन कोई दवा नहीं है जो इसकी आदत पड़ जाए. यह जन्मजात हमारे रक्त में होता है. डायबिटीज़ होने पर शरीर में इंसुलिन का निर्माण कम हो जाता है और ऐसी स्थिति में इंसुलिन इंजेक्शन इस कमी को पूरा करता है.

मिथकः गर्भावस्था के दौरान इंसुलिन लेने बच्चे को नुक़सान पहुंचता है.
सच्चाईः यह सोच ग़लत है. इंसुलिन बहुत कम मात्रा में प्लेसेंटा में पहुंचता है और बच्चे यानी भ्रूण को किसी तरह नुक़सान नहीं पहुंचाता. इसके विपरीत ज़्यादा दिनों तक ब्लड शुगर का स्तर ज़्यादा रहने पर प्रेग्नेंसी में जटिलताएं आ सकती हैं, जिसका असर मां और बच्चे पर पड़ सकता है.

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Shilpi Sharma

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