अभिनेत्री अपर्णा सेन 36 चौरंगी लेन के साथ निर्देशन में कदम रखने वाली थीं और तब उन्हें निर्देशन की सबसे मूल्यवान सलाह मिली थी. भारतीय फिल्म के मील के पत्थर माने जाने वाले सत्यजीत रे ने अपर्णा से कहा था, “इस फिल्म में दर्शकों के दिल को छू लेने वाला कोई पल निर्मित कर पाई हो या नहीं.”
यह वाक्य अपर्णा को नई राह दिखाने वाला साबित हुआ. महान फिल्मकार रे के ये वाक्य अपर्णा के लिए किसी ख़ज़ाने से कम नहीं थे इतना ही नहीं रे ने अपर्णा को लीक से हटकर भारत में अंग्रेजी में फिल्में बनाने के लिए प्रोत्साहित किया.
राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार विजेता अपर्णा सेन ने सत्यजीत रे की पुरानी यादें ताज़ा करते हुए कहा, “मुझे नहीं लगता कि उनके बिना मेरी पहली फिल्म बन पाती. उन्होंने जब मेरी पहली फिल्म 36 चौरंगी लेन की कहानी पढ़ी तो बोले बहुत अच्छा, इसमें दिल को छू लेने वाली बात है. इसे ज़रूर बनाओ.” जब मैंने उनसे पूछा कि कैसे बनाऊं तो उन्होंने कहा था “सबसे पहले, फिल्म बनाने के लिए एक निर्माता खोजो.” अपर्णा ने बताया कि रे ने ही उन्हें निर्माता के लिए उस समय के जाने-माने अभिनेता शशि कपूर से मिलने के लिए कहा था.
अपर्णा ने बताया, “जब मैंने अपनी फिल्म की कहानी के अंग्रेजी में होने को लेकर संशय जाहिर किया तो उन्होंने (रे) मुझे आश्वस्त किया था कि अब भारत में अंग्रेजी में फिल्में बनाने का समय आ गया है. जब मैंने फिल्म पूरी कर ली तब उन्होंने पूछा था कि फिल्म कैसी बनी है? मैंने संदेह के साथ कहा कि इसमें कई गलतियां हैं. लेकिन उन्होंने मुझे बीच में रोककर अपनी दमदार आवाज में कहा निश्चित तौर पर इसमें गलतियां होंगी. अपनी पहली ही फिल्म से तुम क्या उम्मीद करती हो?”
अपर्णा ने बताया कि तब रे ने उनसे पूछा था कि तुम इसमें दर्शकों के दिल को छू लेने वाला कोई पल गढ़ पाई हो या नहीं? अपर्णा ने बताया कि उस दिन मुझे एक सीख मिली. कोई फिल्म तकनीकी रूप से नायाब शॉट की श्रृंखला भर नहीं होती, बल्कि फिल्म उन ख़ास पलों के इर्द-गिर्द सिमटी होती है, जो दर्शकों को छू ले और फिल्म ख़त्म होने के बाद भी याद रह जाए. अपर्णा के लिए रे एक मार्गदर्शक और बाद के दिनों में करीबी मित्र रहे. अपर्णा के पिता चिदानंद दासगुप्ता जाने माने फिल्म समीक्षक थे और रे के दोस्त थे.
अपर्णा ने सत्यजीत रे की फिल्म तीन कन्या के एक हिस्से समाप्ति से 14 वर्ष की आयु में अभिनय की शुरुआत की थी. इस फिल्म से जुड़ी यादें ताज़ा करते हुए अपर्णा बताती हैं, “मुझे याद है रे फिल्म में मेरे किरदार मृन्मोयी के आखिरी दृश्य की शूटिंग कर रहे थे, जिसमें मृन्मोई इस संतोष और विश्वास में दिखती है कि उसका पति उससे प्रेम करता है. रे ने मुझसे अंग्रेजी में कहा अपने अंगूठे का सिरा मुंह में रखो और प्रेम भरी बेहतरीन चीज़ों के बारे में सोचो. यह महान फिल्मकार के एक 14 वर्षीय बच्ची से अभिनय करा लेने का बेहतरीन नमूना था, क्योंकि इतनी छोटी अवस्था में मैं रोमांस और प्रेम के विचार से ही असहज और संकोच से भर जाती या मुझे इस तरह के प्रेम की कल्पना ही नहीं होती.”
एक संवेदनशील निर्देशक के रूप में रे के विकसित होने की व्याख्या करते हुए अपर्णा उन आलोचनाओं को सिरे से खारिज कर देती हैं, जिसमें कहा जाता है कि रे ने विदेशों में भारत की गरीबी को बेचने का काम किया. अपर्णा कहती हैं, “रे एक शहरी शिक्षित मध्यम वर्गीय परिवार से थे, इसके बावजूद उन्होंने अपनी पहली फिल्म पाथेर पांचाली के लिए ग्रामीण इलाके के गरीब परिवार की कहानी को चुना. फिल्म ने अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर 11 पुरस्कार जीते.
अपर्णा ने कहा, “रे पर भारत की गरीबी को विदेशों में बेचने का आरोप लगा. इसके उलट उन्होंने देश में गरीब तबके को एक पहचान दिलाई और उन्हें पूरे सम्मान के साथ अपनी फिल्मों में जगह दी. अपने दर्शकों के सामने गरीबों को बराबरी के साथ पेश किया और उन्हें अपने ही देश के इन दुर्भाग्यशाली लोगों से परिचित कराया और उनके दुखों और ख़ुशियों के प्रति एहसास जगाया.”
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