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कहानी- अंबर की नीलिमा (Short Story- Ambar Ki Neelima)  

कुफरी की हसीन वादियों में एक दुर्गम घाटी के समीप खड़ी नीलिमा प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को अपलक निहारे जा रही थी. अपने स्नो गॉगल को उसने हाथ में ले रखा था. इससे आसमान से गिर रहे ब़र्फ के फाहे सीधे उसके रक्तिम रुख़सारों का स्पर्श कर रहे थे. इससे उसकी मादकता में कुछ और वृद्धि हो रही थी. “बेइंतहा हसीन हैं ये नज़ारे.” तभी एक मदहोश आवाज़ आई. “बेइंतहा हसीन.” नीलिमा के होंठ अनायास ही बुदबुदा उठे. “लेकिन आपसे ज़्यादा हसीन नहीं.” इस बार आवाज़ में शरारत की खनक थी. नीलिमा चौंक पड़ी. 

 

 

दूर-दूर जहां तक दृष्टि जा सकती थी ब़र्फ की श्‍वेत चादर बिछी हुई थी. हिमाच्छादित देवदार के वृक्ष शांति दूतों की तरह निशब्द खड़े थे. मेघदूतों की सेना को चीर सूर्य की किरणें जब हिम से ढके पर्वत शिखरों से टकरातीं, तो वे स्वर्ण कलशों की भांति जगमगा उठते थे. मंद-मंद बह रहे पवन के झोंके जब मादक स्पर्श दे समीप से गुज़रते, तो अंतर्मन में एक सिहरन-सी दौड़ जाती थी. पूरे वातावरण में एक सुकून भरी शांति छाई हुई थी. कुफरी की हसीन वादियों में एक दुर्गम घाटी के समीप खड़ी नीलिमा प्रकृति के अनुपम सौंदर्य को अपलक निहारे जा रही थी. अपने स्नो गॉगल को उसने हाथ में ले रखा था. इससे आसमान से गिर रहे ब़र्फ के फाहे सीधे उसके रक्तिम रुख़सारों का स्पर्श कर रहे थे. इससे उसकी मादकता में कुछ और वृद्धि हो रही थी.
“बेइंतहा हसीन हैं ये नज़ारे.” तभी एक मदहोश आवाज़ आई. “बेइंतहा हसीन.” नीलिमा के होंठ अनायास ही बुदबुदा उठे. “लेकिन आपसे ज़्यादा हसीन नहीं.” इस बार आवाज़ में शरारत की खनक थी. नीलिमा चौंक पड़ी. उसने पीछे पलटकर देखा. सामने उसकी ही तरह स्कीइंग सूट पहने एक व्यक्ति खड़ा था. उसने सिर पर हेलमेट और चेहरे पर बड़ा-सा स्नो गॉगल लगा रखा था, किंतु उसकी आंखों में शरारत के चिह्न साफ़ नज़र आ रहे थे.
“शटअप.” अप्रत्याशित छींटाकशी से नीलिमा ग़ुस्से से चीख उठी.
“ग़ुस्से में तुम्हारा रूप कुछ और निखर आया है. इस ग़ुस्से को कभी अपने से दूर मत करना.” उस व्यक्ति ने कहा और स्की पोल को ब़र्फ पर टकराते हुए तेज़ी से भाग लिया. स्कीइंग-बूट्स के सहारे वह ब़र्फ पर तेज़ी से फिसलता चला जा रहा था. नीलिमा की आंखें क्रोध से चमक उठीं. उसने अपने स्की पोल को संभाला और स्कीइंग करते हुए तेज़ी से उस व्यक्ति के पीछे लपकी. जल्दबाज़ी में उसके स्नो गॉगल और हेलमेट वहीं गिर गए, इसकी उसने परवाह भी नहीं की. वह कुफरी-स्कीइंग स्पोर्ट्स की दो बार चैंपियन रह चुकी थी. उसे विश्‍वास था कि वह जल्द ही उस गुस्ताख़ को पकड़ लेगी. किंतु नीलिमा का अंदाज़ा ग़लत निकला. उसने बहुत कोशिश की, लेकिन उस मनचले के क़रीब नहीं पहुंच सकी. किंतु वह हार नहीं मानना चाहती थी, इसलिए पूरी शक्ति से आगे बढ़ रही थी.
अगले मोड़ पर छोटा-सा पत्थर र्फ से बाहर निकला हुआ था, नीलिमा उसे देख नहीं पाई. स्कीइंग-बूट्स के पत्थर से टकराते ही उसके मुंह से तेज़ चीख निकल गई. इससे पहले कि हवा में लहराता हुआ उसका शरीर किसी गहरी खाई में जा गिरता, उसी मोड़ से स्कीइंग करते हुए आ रहे एक व्यक्ति ने उसे अपनी बांहों में संभाल लिया. किंतु वह ख़ुद को संभाल न सका और नीलिमा को बांहों में लिए हुए ब़र्फ पर लुढ़कने लगा. नीलिमा उसकी बांहों में बुरी तरह कसमसा रही थी.
“अपने आप को संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा.” उस व्यक्ति के होंठों से फुसफुसाहट भरी आवाज़ निकली.
“कौन हो तुम?” नीलिमा चिहुंक उठी.
उस व्यक्ति ने उत्तर देने की बजाय बर्फ की एक चट्टान पर पैर अड़ाते हुए ख़ुद को संभाला. इससे पहले कि बौखलाई नीलिमा खड़ी हो पाती, वह स्की पोल को ब़र्फ पर तेज़ी से घमाते हुए वहां से चला गया. हतप्रभ नीलिमा उसे दूर जाते देखती रही. कौन था वो? देवदूत-सा प्रकट हुआ और अचानक ही चला गया. नीलिमा उसका चेहरा नहीं देख पाई थी, किंतु न जाने क्यों उसकी आवाज़ कुछ पहचानी-सी लगी. ऐसी आवाज़, जो पहले भी उसके कानों में गूंज चुकी थी, किंतु नीलिमा किसी निर्णय पर नहीं पहुंच पा रही थी. आज सुबह ही नीलिमा स्कीइंग चैंपियनशिप में भाग लेने शिमला आई थी. ऑर्गनाइज़िंग कमेटी की अध्यक्षा रीतिका सिन्हा ने उसका स्वागत करते हुए कहा, “वेलकम मिस नीलिमा, मुझे विश्‍वास है कि इस बार का मुक़ाबला पिछली बार से कहीं ज़्यादा रोमांचक होगा और आप जीत की हैट्रिक पूरी करेंगी.”

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“थैंक्स.” नीलिमा ने सिर को हल्का-सा झुकाकर आभार प्रकट किया, फिर बोली, “हैट्रिक पूरी होने में कोई शक है आपको?” “शक हो या न हो, पर दुआ ज़रूर करूंगी.” रीतिका सिन्हा मुस्कुराईं.
“इस मेहरबानी की कोई ख़ास वजह?” नीलिमा खिलखिलाते हुए हंस पड़ी.
“दो वजहें हैं. पहली वजह तो है मेरा स्वार्थ. अगर आप फिर जीतीं, तो वुमन एम्पावरमेंट का हमारा झंडा कुछ और बुलंद होगा. दूसरी वजह यह है कि हैट्रिक बनते ही आप इंटरनेशनल फिगर बन जाएंगी, क्योंकि आपको यह जीत इंटरनेशनल स्टार ए. आर. पलिया को हराकर हासिल होगी.” रीतिका सिन्हा ने रहस्य से पर्दा उठाया.
“क्या? ए. आर. पलिया इस चैंपियनशिप में भाग ले रहे हैं?” “जी हां. वे किसी काम से परसों ही यूरोप से कोलकाता आए थे. हमारे प्रेसिडेंट को पता चला, तो उन्होंने उनसे ‘कुफरी स्कीइंग चैंपियनशिप’ में भाग लेने का अनुरोध किया. वे समय की कमी का हवाला दे रहे थे, लेकिन प्रेसिडेंट साहब ने जब कहा कि वे इंडिया के यूथ आईकॉन बन गए हैं, उनके चैंपियनशिप में भाग लेने से हिमाचल में टूरिज़्म के साथ-साथ स्पोर्ट्स को भी बढ़ावा मिलेगा, तो वे मान गए.”
“वे कहां रुके हैं?” नीलिमा ने उत्साह से पूछा.
“रुके तो इसी होटल में हैं, लेकिन इस समय प्रैक्टिस के लिए कुफरी गए हैं.”
“तो मैं भी कुफरी निकल रही हूं. चैंपियनशिप से पहले उनसे एक बार ज़रूर मिलना चाहूंगी.” थोड़ी ही देर में वह तरोताज़ा होकर बाहर निकली. रीतिका सिन्हा ने उसके लिए कार का इंतज़ाम कर दिया था. नीलिमा कुफरी की ओर चल दी. स्कीइंग की दुनिया में ए. आर. पलिया का नाम अचानक ही धूमकेतु की तरह उभरा था, जब पिछले सप्ताह उन्होंने स्विटज़रलैंड में आयोजित यूरोपियन स्कीइंग चैंपियनशिप में जीत हासिल की थी. 
नीलिमा ने यह ख़बर सुनी थी, किंतु व्यस्तता के कारण वह उनके बारे में ज़्यादा जानकारी हासिल नहीं कर पाई थी. वह एक घंटे में कुफरी पहुंच गई. स्कीइंग ग्राउंड पहुंचने पर पता लगा कि पलिया साहब प्रैक्टिस के लिए लास्ट कैंप तक गए हुए हैं. नीलिमा बस आगे बढ़ ही रही थी कि वहां के अनुपम सौंदर्य व नज़ारों को देखने के लिए कुछ पलों के लिए ठहर गई. वो जब भी यहां आती है, तो अक्सर यहां रुककर वादियों के अनुपम सौंदर्य को मन में उतारने के लिए कुछ पलों के लिए यहां ठहर जाती है. इसी बीच उस गुस्ताख़ ने उसका ध्यान भंग कर दिया था. ख़ैर, वह बेस कैंप तक पहुंची ही थी कि एक कार्यकर्ता ने आगे बढ़ते हुए कहा, “मैडम, बधाई हो. अब आपकी जीत पक्की हो गई है.”
“कैसे?”
“थोड़ी देर पहले पलिया साहब ने अपना नाम वापस ले लिया.” “क्यों?”
“कारण तो नहीं बताया.”
“पलिया साहब कहां हैं?” नीलिमा ने हड़बड़ाते हुए पूछा.
“वे तो शिमला लौट गए.” नीलिमा का संदेह अब कुछ और गहरा हो गया था. वह भी शिमला लौट पड़ी.  रिसेप्शन पर पहुंचते ही बोली, “पलिया साहब किस रूम में ठहरे हैं? ”
“वे तो चेक आउट करके थोड़ी देर पहले ही एयरपोर्ट के लिए निकले हैं.” रिसेप्शनिस्ट ने कहा.
“प्लीज़, आप ज़रा अपना लैपटॉप दे सकती हैं क्या?”
“सॉरी मैम, इसे हम किसी कस्टमर को नहीं दे सकते.”
“प्लीज़, यह किसी की ज़िंदगी का सवाल है.” नीलिमा की आवाज़ भर्रा उठी. रिसेप्शनिस्ट ने नीलिमा के चेहरे के भावों को देखा, तो ना नहीं कर सकी. नीलिमा ने जल्दी से गूगल पर ए. आर. पलिया टाइप किया. कई फाइलें सामने आ गईं. उसने विकीपीडिया को क्लिक कर दिया. अगले ही पल ए. आर. पलिया की फोटो के साथ-साथ उनका पूरा विवरण दिखने लगा. पूरा नाम: अंबर राज ‘पलिया’ जन्म स्थान: पलिया, ज़िला: लखीमपुर-खीरी, उत्तर प्रदेश. शिक्षा: युवराज दत्त महाविद्यालय. “वही है.” नीलिमा की आंखों से आंसू टपक पड़े और वह आंधी-तूफ़ान की तरह कार की ओर दौड़ पड़ी. रीतिका सिन्हा उसी समय होटल में प्रवेश कर रही थी. नीलिमा को इस तरह भागते देख उन्होंने उसे आवाज़ भी दी, लेकिन नीलिमा ने जैसे सुना ही नहीं. थोड़ी ही देर पहले कुफरी के लास्ट-कैंप से ख़बर आई थी कि पलिया साहब ने वहां पहुंच प्रतियोगियों की लिस्ट देखी, फिर अचानक ही अपना नाम वापस ले लिया. यह ख़बर सुन रीतिका सिन्हा पहले से ही परेशान थी और उनसे मिलने ही होटल आई थी. यहां नीलिमा को इस तरह भागते देख उनका दिमाग़ चकरा गया था. 
उधर नीलिमा की कार तेज़ी से एयरपोर्ट की ओर जा रही थी, किंतु उसके अंतर्मन में अतीत के दृश्य उससे भी तेज़ी से चल रहे थे. क्लास वन से लेकर इंटर तक वह हर परीक्षा में प्रथम स्थान पाती रही थी. यह सिलसिला टूटा था बीएससी फर्स्ट ईयर के हाफ ईयरली एग्ज़ाम में. हाफ ईयरली में उस शहर में नए-नए आए अंबर ने उसे दूसरे स्थान पर धकेल दिया था. बुरी तरह चिढ़ गई थी वह अपनी इस पराजय से और हमेशा अंबर को अपमानित करने का अवसर ढूंढ़ती रहती. किंतु अंबर उसकी किसी भी बात का बुरा नहीं मानता था. फाइनल एग्ज़ाम से पहले उनकी क्लास का टूर ॠषिकेश गया हुआ था. वहां छात्रों ने वॉटर राफ्टिंग का प्रोग्राम बनाया. नीलिमा और कुछ अन्य लड़कियां राफ्टिंग पर नहीं गईं. वे सब गंगा के किनारे पथरीली चट्टानों पर घमते हुए उसके तेज़ बहाव का आनंद ले रही थीं. अचानक एक चट्टान पर नीलिमा का पैर फिसल गया. इससे पहले कि कोई कुछ समझ पाता, वह गंगा की विकराल लहरों में जा गिरी. नीलिमा को तैरना नहीं आता था. सभी मदद के लिए चीख रहे थे, किंतु गंगा के प्रचंड वेग के आगे बेबस थे. तभी राफ्टिंग करती अंबर की बोट उधर आ गई. अंबर ने तुरंत छलांग लगा दी. लहरों की विकरालता से लड़ता वह बहुत मुश्किलों से नीलिमा तक पहुंच पाया.
“अपने आपको संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा.” बेहोश होने से पहले नीलिमा के कानों में अंबर के स्वर गूंजे. इस दुर्घटना ने नीलिमा और अंबर की दोस्ती की एक नई दास्तान लिख दी थी. दोनों को अब एक-दूसरे को देखे बिना चैन नहीं मिलता था. फाइनल एग्ज़ाम में एक बार फिर अंबर प्रथम आया था. नीलिमा ने दिल खोलकर उसे बधाई दी थी. थर्ड ईयर में एनुअल फंक्शन होनेवाला था. पूरे कॉलेज में तैयारी चल रही थी. नीलिमा ऑडीटोरियम में प्रतिदिन बैले की प्रैक्टिस करती थी. कोरियोग्राफर के निर्देशों पर नीलिमा एक दिन ऑडीटोरियम में थिरक रही थी कि उसका पैर फिसल गया. इससे पहले कि वह गिरती, अपने प्ले की प्रैक्टिस कर रहे अंबर ने दौड़कर उसे अपनी बांहों में संभाल लिया था. नीलिमा के कानों में एक बार फिर महदोश कर देनेवाले शब्द गूंजे, “अपने आपको संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा.”  “नीलिमा को संभलने की ज़रूरत नहीं है, क्योंकि उसे मालूम है कि अंबर हर पल उसके साथ ही रहता है.” नीलिमा खिलखिलाकर हंस दी थी. अपनी बांहों में उसे संभाले अंबर एकटक उसके चेहरे को देखता रह गया था. देखते ही देखते थर्ड ईयर के एग्ज़ाम क़रीब आ गए. नीलिमा के फिज़िक्स के नोट्स गुम हो गए थे. उसे परेशान देख अंबर नोट्स की फोटोकॉपी देने नीलिमा के घर पहुंचा. उसे अपने कमरे में बैठाने के बाद नीलिमा ने मम्मी के पास जाकर कहा, “ममा, जल्दी से चाय और कुछ स्नैक्स बना दो.” “कौन है ये?” “मॉम, ये अंबर, मेरा क्लासमेट.” “तो यही है वो, जिसने तुम्हारी ज़िंदगी हराम कर रखी है.” मम्मी, अंबर का नाम सुनते ही उखड़ गईं. “यह क्या कह रही हैं आप? वह मेरा बहुत अच्छा दोस्त है.” नीलिमा का स्वर आश्‍चर्य से भर उठा. “बचपन से तू हमेशा फर्स्ट आती रही है, मगर इस दुष्ट ने तुझे दूसरे स्थान पर धकेल दिया है. पढ़ाई करते-करते मेरी फूल जैसी बेटी की आंखें सूज गईं, मगर इससे जीत न सकी. यह तेरा दोस्त नहीं, दुश्मन है.”
 “मम्मी, यह क्या बोल रही हो?” नीलिमा ने मम्मी के मुंह पर हाथ रख दिया. नीलिमा जब अपने कमरे में पहुंची, तो अंबर वहां नहीं था. नीलिमा फूट-फूटकर रो पड़ी. दो दिन बाद नीलिमा एग्ज़ाम देने पहुंची. उसकी समझ में ही नहीं आ रहा था कि अंबर का सामना कैसे करेगी, किंतु अंबर तो एग्ज़ाम देने ही नहीं आया. पेपर देकर नीलिमा सीधे उसके कमरे पर पहुंची, तो पता लगा कि वह अपने घर पलिया चला गया है. अंबर के अचानक चले जाने से नीलिमा का मन घबरा रहा था. मन में अनेकों झंझावत लिए वह घर लौट आई. अंबर के दिए गए नोट्स उसकी मेज़ पर ही रखे थे. उस दिन अंबर के अपमानित होकर चले जाने के बाद नीलिमा ने उनको उठाकर भी नहीं देखा था. उसने कांपते हाथों से नोट्स उठाए, किंतु पहला पन्ना खोलते ही उसकी चेतना जड़ हो गई. ख़ूबसूरत अक्षरों में लिखे एकलौते वाक्य ने उसके अस्तित्व को ही हिला दिया था. ‘फाइनल एग्ज़ाम में प्रथम स्थान पाने की अग्रिम शुभकामनाएं.’

 

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अंबर के हाथों से लिखे अक्षर किसी नश्तर की भांति नीलिमा की आत्मा को बींधे जा रहे थे. इसका मतलब अंबर जान-बूझकर पेपर देने नहीं आया था. नीलिमा का प्रथम स्थान सुरक्षित करने के लिए उसने अपना करियर ही बर्बाद कर डाला था. नीलिमा को अपने वजूद से ही घृणा होने लगी. क्रोध से फुंफकारती हुई वो बाहर आई और मम्मी को क्या-क्या नहीं कह डाला था उसे ख़ुद याद नहीं. पूरी बात जान मम्मी भी सन्न रह गईं. उनकी बातों से आहत हो अंबर ऐसा क़दम उठा लेगा, इस बात की उन्हें कल्पना भी नहीं थी. उनकी आंखें भीग गईं. अगले ही दिन मम्मी नीलिमा को लेकर पलिया पहुंची, तो वहां दूसरा आघात प्रतीक्षा कर रहा था. अंबर के माता-पिता की काफ़ी पहले मृत्यु हो गई थी. तीन दिन पहले अचानक वह अपनी ज़मीन-जायदाद कौड़ियों के भाव बेच विदेश चला गया था. नीलिमा ने उसे ढूंढ़ने की हर संभव कोशिश की, लेकिन असफल रही. धीरे-धीरे बारह वर्ष बीत गए. नीलिमा अब एक मल्टीनेशनल बैंक में अधिकारी थी.  स्नो-स्कीइंग का उसे बचपन से शौक़ था. वह हर साल स्कीइंग करने कुफरी ज़रूर आती. पिछले दो वर्षों से वह यहां की चैंपियन थी. नीलिमा को याद आ रहा था कि एक दिन अंबर ने बताया था कि उसके पूर्वज पंजाब से ‘पलिया’ आए थे. पंजाब में अपने नाम के आगे अपने गांव का नाम जोड़ने का रिवाज़ है, इसलिए उसने नाम अंबर राज के आगे ‘पलिया’ जोड़कर उसे ए. आर. पलिया कर लिया था. इस नाम को सुन नीलिमा को आभास भी नहीं हुआ था कि वह अंबर है, किंतु कुफरी में उस अंजान मददगार के मुंह से निकले शब्दों ‘अपने आप को संभालना सीखो, क्योंकि हर जगह तुम्हें संभालने के लिए मैं मौजूद नहीं रहूंगा…’  ने उसकी यादों को ताज़ा कर दिया था. उसका नाम प्रतियोगियों की लिस्ट में देख अंबर ने एक बार फिर उसका प्रथम स्थान सुरक्षित करने के लिए इतना बड़ा बलिदान दिया था. वह बिना कुछ कहे जिस तरह चला गया था, उससे स्पष्ट था कि वह अभी तक आहत है. नीलिमा का कलेजा बैठा जा रहा था. वह अंबर को पाकर दोबारा उसे खोना नहीं चाहती थी.  नीलिमा जिस समय एयरपोर्ट पहुंची अंबर अंदर जाने के लिए आगे बढ़ रहा था. उसे देखते ही वह पुकार उठी, “अंबर, रुक जाओ.”
अंबर ने पलटकर पीछे देखा. पलभर ठिठकने के बाद वह पुन: तेज़ क़दमों से गेट की ओर बढ़ने लगा.
“अंबर, प्लीज़ रुक जाओ. अंबर के बिना नीलिमा का कोई अस्तित्व नहीं है.” नीलिमा पूरी शक्ति से अंबर की ओर दौड़ पड़ी. अंबर के बढ़ते क़दम ठिठक गए. उसने एक बार फिर पीछे पलटकर देखा.
“मम्मी की ग़लती के लिए मुझे इतनी बड़ी सज़ा मत दो. जीवन के अंतिम पलों तक वे अपने आपको माफ़ नहीं कर पाई थीं. अगर आज वे होतीं, तो तुमसे हाथ जोड़कर माफ़ी मांग लेतीं.” नीलिमा ने क़रीब पहुंच फफकते हुए अपने दोनों हाथ जोड़ दिए. “क्या? आंटी इस दुनिया में नहीं हैं?” अंबर के होंठ हिले.
“हां, वे तुमसे माफ़ी मांगने तुम्हारे घर पलिया तक गई थीं, मगर तुम वहां से जा चुके थे. मम्मी को जब पता चला कि मैं ख़ुद तुम्हें फर्स्ट आते देखना चाहती थी, तो वे बहुत रोई थीं.”
“क्या कहा? तुम ख़ुद मुझे फर्स्ट आते देखना चाहती थी?” अंबर तड़प उठा. उसकी आंखों में थर्ड ईयर की क्लास का वह दृश्य कौंध उठा, जब हेड ऑफ डिपार्टमेंट मिसेज़ डिसूज़ा ने नीलिमा को डांटते हुए कहा था कि वह टाइम मैनजमेंट सीखे, ताकि एग्ज़ाम में साढ़े चार की बजाय पूरे पांच प्रश्‍नों का उत्तर लिख सके. भयानक तूफ़ान के बाद जैसे कुहासा हट गया हो. अंबर नीलिमा के कंधों को पकड़ उसे झिंझोड़ते हुए चीख पड़ा, “इसका मतलब तुम जान-बूझकर साढ़े चार प्रश्‍न ही हल करती थी, ताकि मैं प्रथम आ सकूं.” नीलिमा ने कोई उत्तर नहीं दिया. उसने अपनी आंखें झुका लीं, किंतु अंबर ने उसके चेहरे को अपने हाथों में भर लिया और उसकी आंखों में झांकते हुए भर्राये स्वर में बोला, “इतना बड़ा बलिदान और मुझे ख़बर तक नहीं होने दी?”
“बलिदान तो तुमने भी किया था और मुझे बताया तक नहीं. यह भी नहीं सोचा कि अंबर के बिना नीलिमा कितनी अधूरी है.” नीलिमा की आंखों से अश्रुधार बह निकली.
“नीलिमा, अगर हो सके, तो अंबर को उस गुनाह के लिए माफ़ कर दो, जो उसने तुमसे दूर जाकर किया है.” अंबर का स्वर कांप उठा. नीलिमा किसी लता की भांति अंबर के चौड़े सीने से लिपट गई. उसके आंसू अंबर को भिगोए जा रहे थे. बारह वर्षों की दूरी मिट चुकी थी. कुछ देर बाद उसने सिसकते हुए कहा, “अंबर, वादा करो कि कल चैंपियनशिप में तुम जीतने की पूरी कोशिश करोगे.”
“तुम्हें भी वादा करना होगा कि तुम हारोगी नहीं.” अंबर ने एक बार फिर नीलिमा के चेहरे को अपने दोनों हाथों में भर उसकी आंखों में झांका.
“वादा रहा.” सिसकियां भरते हुए नीलिमा मुस्कुरा उठी. एक-दूजे को जीत का तोहफ़ा देने दो प्रेमी वापस लौट पड़े. अंबर में मुस्कुराता हुआ सूर्य दोनों के मिलन का साक्षी था. 

 

– संजीव जायसवाल ‘संजय’

 

 

 

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Usha Gupta

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