“बिटिया हुई है बहुरिया को.” मिसिराइन का तीखा स्वर सीधे अम्मा के सीने में तीर बनकर लगा.
“बिटिया! हाय दुर्गा मइया, इ का की..? अरी दुई का कम थीं, जो इस बूढ़ी छाती पर एक और टपका दी.” ओसारे में बैठी अम्मा ने छाती ऐसे पीटा मानो लड़की हुई न हो, बल्कि घर से भाग गई हो.
“पहली हुई, तो दादा को ले गई, दूसरी हुई तो चाचा सरग सिधारे… अब इ तीसरी किसके लिए विषपान का कटोरा लेकर आई है? हे दुर्गा मइया…” अम्मा का बड़बड़ाना चालू था. मिसिराइन गरम पानी का भगोना उठाकर फिर कोठरी में चली गई. अन्दर से अब कुमुदनी के कराहने की आवाज़ नहीं आ रही थी. बेचारी बेटी का मुंह देखकर अपने दर्द का इजहार करने का अधिकार भी गंवा चुकी थी.
अम्मा ओसारे से डोलती हुई रसोई के दरवाज़े से आ लगीं. रिनू-सीनू, चार एवं ढाई वर्ष की कन्याएं बूढ़ी दादी के गले से आ लगीं.
“मां को भइया हुआ..?” रिनू ने दादी के झुर्री पड़े गालों को अपने नन्हें-नन्हें हाथों से सहला कर पूछा.
“हाय री दइया… कैसा अगोरी पड़ी है भाई को? अरी तुम सबका भाग्य ऐसा ही होता तो का था? तीन-तीन बहनें हो गईं तुम सब.”
यह भी पढ़ें: रिश्तों की बीमारियां, रिश्तों के टॉनिक (Relationship Toxins And Tonics We Must Know)
“सच्ची दादी…” कहती हुई दोनों नन्हीं बालिकाएं हठात् अधिकारपूर्वक दादी की गोद में चढ़ गईं, तो अम्मा ने उन्हें स्नेह से चिपका लिया.
“ई मन भी कैसा अजीब है दुर्गा मइया. जब इ सब पैदा होती हैं, तो कलेजे पर बछ चलती है और जब टू-टू रेंगती हैं, बोलती हैं, तो ऐसा लगे है मानो फूल बरसा रही हों. ओ
देवता…” दोनों छोरियों को अगल-बगल टांगे अम्मा
रसोई में आ गईं.
एक को गाड़ी में, दूसरी को दरी पर बिठाकर दो-चार कटोरी-चम्मच उनके सामने रख दिया. गैस जलाकर उस पर कड़ाही चढ़ा दी. हरीरा पकने लगा. जतन से इकट्ठा किए देशी घी का छौंक लगाकर हरीरा पकाने लगीं.
दो बेटे हैं उनके. बड़ा सुल्तानपुर में बहू और बच्चों के साथ है. वैसे तो हाथ में ढेरों नोट होते हैं उसके, पर तनख़्वाह गिनी- गिनाई ही तो मिलती है ना और उसी में गुज़ारा करना पड़ता है. पति की भी वही ३०. साल की पुरानी, मुनीमी की नौकरी न एक पैसे की अतिरिक्त आमदनी, न कुर्सी की तरक़्क़ी. ३० साल पहले जो गद्दी मिली थी, वह आज भी बरक़रार थी.
हां, बीच में ३-४ बार उसके कपड़े ज़रूर बदल गए थे. सेठजी दरियादिली दिखाते हुए हर त्योहार पर मियां-बीवी दोनों के लिए कपड़े ज़रूर भेजते. अम्मा की बड़ी अभिलाषा थी कि छोटे को एक बेटा हो जाए. आज सुबह भी जब संदीप काम पर जा रहा था, उनका मुंह सूजा हुआ था. भोली अम्मा को कौन समझाता कि बेटा पैदा करना संदीप या कुमदुनी के हाथ में नहीं है और ना ही इसके लिए पूरी तौर पर कुमदुनी ज़िम्मेदार है.
“अरी बहूजी… बहुरिया को कुछ खाने को तो दे दो.” मिसिराइन का तीखा स्वर फिर कानों से टकराया, “चाय ही बना दो.”
“चाय… अरी बच्चा जना है बहू ने ईंट-पत्थर नहीं, जो चाय दे दूं.” अम्मा ने मुंह बनाकर कहा, तो मिसिराइन ने घाव पर मरहम लगाना चाहा.
“सब्र करो बहूजी, अगली बार तुम्हारी दुर्गा मइया ज़रूर बेटा देगी, धीरज घरो.”
यह भी पढ़ें: ख़ुद अपना ही सम्मान क्यों नहीं करतीं महिलाएं (Women Should Respect Herself)
“अरी, तू का मुझे धीरज धरा रही है, तेरा कुछ नहीं मारा जाएगा. लड़का न सही लड़की ही सही, पर लेने में कौन-सी तू कोताही कर देगी.”
“लो और सुनो.” मिसिराइन वहीं आंगन में पसर गई, “नौ माह से तो तुम्हीं बोले जा रही थीं, वादा किए थीं कि लड़का होएगा तो ये दूंगी, वो दूंगी. अब दोष हमें दिए जा रही हो. अरे, बिटिया जनने में न बहू को कम मेहनत करनी पड़े है, न हमारी मेहनत कम होए है. बेटा या बेटी, दर्द दोनों में बराबर ही होए है बहूजी.”
“अरी मिसिराइन… दर्द तो दोनों का मैंने भी बराबर झेला है, पर इ बता, पोते की चाह भला किसे ना होए है.”
“वो तो ठीक है बहूजी, पर तुम्हारे बेटे का बोले हैं कि तुम काहे को जी जला रही हो? ब्याह-शादी की चिंता वो करें, जो एके मां-बाप हैं.”
“वाह! दादी हूं इनकी तीन-तीन बेटियों की ज़िम्मेदारी हो गई है अब हम पर. एक बात सुन ले, मैं ख़ूब जानूं कि तेरा मतलब क्या है?”
“अरी बहूजी, वह तो मैं अब भी कह रही हूं. बेटे का दूसरा ब्याह कर दो. लड़की तीस के ऊपर है. रंग दबा ज़रूर है थोड़ा, पर पहली जच्ची में लड़का ही देगी, यह गारंटी.”
“क्यों? क्या पेट जांच कर आई है उसका? अरी कलमुंही, उधर बहू दर्द में पड़ी है और तू उसकी छाती पर सौत लाने की तैयारी करवा रही है. हमारे ही बेटे की दूसरी शादी रचाने आती है. अरे! बहू है हमारी, कोई सड़क पर नहीं है. अरी मवेशी के भी बछिया होए है, तो लोग पास-पड़ोस में लड्डू बांटें हैं. हम का जानवर से भी गए गुज़रे हैं? हमसे यह ना होगा मिसिराइन. ये ले हरीरा, बहू को पिला जाकर. मैं दाल चढ़ाती हूं. बहू ने जल्दी-जल्दी बच्चे जने हैं, उसे कमज़ोरी आ गई है… बहू अगर बीमार पड़ी, तो तेरी खैर नहीं…” अम्मा बड़बड़ाती रहीं.
यह भी पढ़ें: कैसे बनें स्मार्ट फैमिली मैन?(How To Become Smart Family Man?)
“वाह जी! मनुष्य जानवर तो छोड़, कोठे वाली की भी बिटिया होए, तो दस तोले की सोने की पाजेब बजे है और हम बेटे के पीछे भागे जा रहे हैं. अरी, इसमें बहू की क्या ग़लती ? जो दुर्गा मइया दे दे.”
अम्मा का बड़बड़ाना चालू था और उसकी बातें सुन दरवाज़े पर खड़े उनके पति विश्वनाथ बाबू बेटे संदीप के कंधे पर हाथ धरे आश्चर्य से खड़े रह गए.
सुबह तक तो पत्नी ज्वालामुखी बनी बहू को घूर रही थीं और अब अचानक ये ममता का दरिया कहां से फूट पड़ा है. उन्होंने संदीप की पीठ थपथपाई और मुस्कुरा पड़े. वाह री नारी… तेरे मन में क्या है, क़ुदरत भी नहीं जानता.
– साधना राकेश
अब यही आवाज़ दिल कीधड़कनों से आ रही हैज़िंदगी कम हो रही हैउम्र बढ़ती जा रही…
if it’s not just about occasional periods when a couple’s sex life is dull, then…
स्वरा भास्कर (Swara Bhaskar) जब से एक प्यारी सी बेटी राबिया (Swara Bhaskar's daughter Raabiyaa)…
लोकप्रिय टीव्ही होस्ट आणि अभिनेता मनीष पॉलने चमकदार हिरव्या रंगाची मिनी कूपर कार खरेदी केली…
डायरेक्ट टू होम अर्थात् डीटीएच उद्योगाचा पाया घालणाऱ्या डिश टीव्हीने आता मनोरंजन क्षेत्रात नवा पुढाकार…
जीनत अमान (Zeenat Aman) सोशल मीडिया पर काफी एक्टिव (Zeenat Aman on social media) रहती…