लघुकथा- प्राथमिकता (Short Story- Prathmikta)

ऑफिस में सारा दिन उसका मन नहीं लगा. रह-रहकर पापा का निरीह चेहरा आंखों के आगे घूमता रहा. दो वर्ष पूर्व मम्मी का स्वर्गवास हुआ था. तब से उन्होंने स्वयं को कितना बदल लिया. पहले कोई भी काम करने की उनकी आदत कहां थी. उनका हर काम मम्मी ही तो करती थीं.

सुबह बिस्तर से उठ कर गौरव किचन में पहुंचा, तो देखा जूही चाय बना रही थी.
“गुड मॉर्निंग,” मुस्कुराकर उसने जूही को आलिंगनबद्ध करना चाहा. जूही ने झटके से उसकी बांहें हटा दीं और मुंह फेर लिया. पिछले दो दिनों से जूही उससे नाराज़ चल रही थी. इस माह उनकी मैरिज एनिवर्सरी थी और वह अंडमान निकोबार घूमने जाना चाहती थी. गौरव ने जाने का वादा भी कर लिया था, किंतु व्यस्तता के चलते रिज़र्वेशन करवाना भूल जाता था. जूही ने चाय की ट्रे उसके हाथ में देते हुए कहा, “आज टिकट नहीं करवाए, तो मैं जाऊंगी ही नहीं.”
“अच्छा बाबा, आज अवश्य करवा दूंगा. अब तो नाराज़गी छोड़ो.” गौरव ने अपने कानों को हाथ लगाते हुए कहा. जूही मुस्कुरा दी. बेड टी लेकर गौरव पापा के कमरे में आया, तो देखा, पापा आंखों के बिल्कुल नज़दीक अख़बार रखकर पढ़ने का प्रयास कर रहे थे. गौरव का दिल भर आया. उसने पापा के हाथ से अख़बार लेकर चाय पकड़ाई और बोला, “लाइए पापा, मैं न्यूज़ पढ़कर सुना दूं.”
“नहीं बेटा, तुम ऑफिस के लिए लेट हो जाओगे. क्या करूं, बरसों की आदत है. जानता हूं, पढ़ नहीं पाऊंगा फिर भी अख़बार देखकर रहा नहीं जाता.” पापा ने जल्दी से चाय पी कर कप उसे पकड़ा दिया. तैयार होकर वह ऑफिस के लिए निकल पड़ा.

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ऑफिस में सारा दिन उसका मन नहीं लगा. रह-रहकर पापा का निरीह चेहरा आंखों के आगे घूमता रहा. दो वर्ष पूर्व मम्मी का स्वर्गवास हुआ था. तब से उन्होंने स्वयं को कितना बदल लिया. पहले कोई भी काम करने की उनकी आदत कहां थी. उनका हर काम मम्मी ही तो करती थीं. किंतु उनके जाते ही अपने सब काम वह स्वयं करने लगे और तो और घर के कामों में भी जूही की मदद करते थे. उस समय जूही कितना प्रसन्न रहती थी. किंतु अब पिछले तीन माह से दोनों आंखों में मोतियाबिंद के कारण पापा को ठीक से दिखाई नहीं देता. कितने बेबस और लाचार हो गए हैं पापा. डॉक्टर ने तुरंत ऑपरेशन के लिए बोला है. जब-जब उसने पापा का ऑपरेशन करवाना चाहा, कोई ना कोई बड़ा ख़र्चा आन पड़ा. पहले जूही की छोटी बहन की शादी, फिर प्रीमियम की लंबी-चौड़ी किस्त. किंतु अब उसे क्या विवशता है? अंडमान निकोबार घूमने जाने की.
शाम को वह घर पहुंचा, तो जूही बरामदे में खड़ी मिल गई. वह बेहद उत्तेजित स्वर में बोली, “जानते हो, अभी-अभी पापा गिरते-गिरते बचे हैं. बरामदे से लाॅन में जा रहे थे. जब दिखाई नहीं देता, तो एक जगह बैठे नहीं रह सकते क्या? हरदम ऑपरेशन की रट लगाए रहते हैं अरे हो जाएगा ऑपरेशन. पैसे पेड़ पर लगे हुए हैं क्या? जिस काम की प्राथमिकता है, पहले वही तो किया जाएगा ना.” वह एकटक जूही का चेहरा देखता रहा फिर बोला, “तुम बिल्कुल ठीक कह रही हो. जिस काम की प्राथमिकता हो, पहले वही करना चाहिए. मैंने डॉक्टर खन्ना से एपॉइंटमेंट ले लिया है. साथ ही ऑफिस में छुट्टी के लिए एप्लाई भी कर दिया है.”
“इसका मतलब…”
“जूही, हमारी प्राथमिकता पापा का ऑपरेशन है, अंडमान निकोबार घूमना नहीं.” वह दृढ़ स्वर में बोला. जूही ख़ामोशी से अंदर चली गई.

रेनू मंडल

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