टीवी सीरियल ‘क्योंकि सास भी बहू थी’ (Kyonki Saas Bhi Kabhi Bahu Thi) में तुलसी वीरानी का किरदार निभाकर हर घर की फेवरेट बहू बन जानेवाली स्मृति ईरानी (Smriti Irani) अब मंजी हुई पॉलिटीशियन और केंद्रीय मंत्री बन चुकी हैं और पॉलिटीशियन के तौर पर भी वो उतनी ही पॉपुलर हैं. हर मंच पर खुलकर बोलनेवाली स्मृति ईरानी ने अपने पर्सनल लाइफ (Smriti Irani’ s personal life) के बारे में कभी बात नहीं की, लेकिन हाल ही में एक इंटरव्यू में उन्होंने अपनी बचपन की कई यादों को शेयर (Smriti Irani’s childhood memories) किया, साथ ही पहली बार अपने माता पिता के तलाक पर भी बात की. उनका ये इंटरव्यू अब खूब वायरल हो रहा है.
नीलेश मिश्रा को दिए इस इंटरव्यू में स्मृति ईरानी ने बताया कि उनके पिता पंजाबी-खतरी थे और मां बंगाली-ब्राह्मण. उनके माता-पिता की लव मैरिज की थी और दोनों ने अपने परिवार की मर्ज़ी के खिलाफ जाकर शादी की थी. “जब उन्होंने शादी की, तब उनके पास सिर्फ 150 रुपये थे. वे गाय के शेड में रहा करते थे. मैं लेडी हार्टिंग्स हॉस्पिटल में हुई. बाद में वे गुड़गांव में शिफ्ट हो गए थे, क्योंकि गुड़गाँव अफोर्डेबल था.”
स्मृति ने बचपन में पैसों की तंगी और माता पिता के बीच विवादों को लेकर भी बात की, “मेरे पिता आर्मी क्लब के बाहर किताबें बेचा करते थे और घर-घर में मसाले बेचा करती थीं. मैं पापा के पास बैठा करती थी. मेरे पिता ज्यादा पढ़े-लिखे नहीं थे और मेरी मां ग्रेजुएट थीं. पैसों की तंगी के अलावा उनके बीच विवाद की ये वजह भी थी.”
स्मृति ने आगे कहा, “हमारा पहला घर जो मुझे याद है, वह गुड़गांव में था. घर में झाडू लगाने और सफाई का काम मेरा था. उस जगह की मेरी आखिरी याद 7 साल की उम्र की है. उस घर में मेरा आखिरी दिन 1983 में था. मैं और मेरी बहनें बैठकर काली दाल खा रहे थे. तभी मेरी मां आई और उन्होंने रिक्शा वाले को रोका. हमारे सामान इकट्ठा किए और कहा कि जल्दी से खाना खा लो, हम दिल्ली के लिए निकल रहे हैं. मुझे याद है मैंने मां से कहा था कि मैं एक दिन यह घर खरीदूंगी. मेरी मां ने तब इस पर कोई जवाब नहीं दिया था. हम रिक्शा में बैठ कर निकल गए. उस दिन के बाद 40 साल हो गए मैंने आज तक काली दाल फिर कभी नहीं खाई.”
“मुझे 40 साल लगे यह बताने में कि मेरे माता-पिता अलग हो चुके हैं. जब मेरे माता पिता अलग हुए थे तब हमें नफरत भरी नजरों से देखा जाता था, लेकिन अब मुझे एहसास होता है कि जेब में सिर्फ 100 रुपये लेकर जिंदगी गुजारना और हम सबका ख्याल रखना उनके लिए कितना मुश्किल रहा होगा.”
सालों बाद जब मैं सांसद बनकर दिल्ली आई तो मैं पुराने घर में गई. मैं तब 37 साल की थी. मैंने ईरानी साहब से कहा कि मैं वो घर खरीदना चाहती हूँ. मैंने मां को भी फोन करके इस बारे में बात की, लेकिन मां ने कहा कि इससे उन्होंने जो दुख झेले वो कम नहीं हो जाएगा. मां ने कहा कि हम अपनी बेटियों से कुछ नहीं ले सकते, लेकिन मेरी इच्छा है कि अगर मैं अपने घर में मरूं. क्योंकि मेरी मां ने अपना सारा जीवन किराये के घर में बिताया. 6 साल पहले मैंने एक घर खरीदा, जिसमें मेरी मां रहती हैं और मुझे इसके लिए वे हर महीने 1 रुपये किराया भी देती हैं, ताकि उनका स्वाभिमान बरकरार रहे.”
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