...शाहिना की चूड़ियों की खनखनाहट आज भी मुझे चौंक़ा देती है. प्रेम की परिभाषा को भावनाओं की खिलखिलाहट में…
सच ही कहा गया है, प्रेम की पींग अच्छा-बुरा सोचने का व़क़्त ही नहीं देती. शाहिना की छुट्टियां ख़त्म…
अनायास ही मेरा हाथ उठा और शाहिना के ललाट पर मैंने हाथ रखते हुए पूछा, “बहुत तप रहा है?…
दिन बीतते रहे. मेरा बंगले पर आना-जाना लगा रहा. मैं हमेशा दरवाज़े के पासवाले सोफे पर ही जान-बूझकर बैठता…