कहानी- एक थी शाहिना 4 (Story Series- Ek Thi Shaheena 4)

 

…शाहिना की चूड़ियों की खनखनाहट आज भी मुझे चौंक़ा देती है. प्रेम की परिभाषा को भावनाओं की खिलखिलाहट में घोलकर पी जानेवाली सुधा-पिपासी शाहिना आज भी ज़िंदा है. मर कर भी ज़िंदा रहने और जिंदा रहकर भी मरने में क्या फ़र्क़ है… यह शाहिना मुझे सिखा गई.

 

मैं सुबह पांच बजे ही उठकर तैयार होने लग गया.
तैयार सूटकेस पास रखकर मैं चाय की चुस्कियां लेते हुए बार-बार अपनी घड़ी देख रहा था. भविष्य की कल्पना मुझे रोमांचित करके गुदगुदा रही थी. सोच रहा था, कैसे जल्दी से सात बजें और हम ‘एअरपोर्ट’ में आकर मिलें.
दरवाज़े के नीचे से पेपर वाले ने पेपर फेंका, तो मेरी सुनहरी तन्द्रा टूटी. पेपर की हेडलाइन देखी, तो सन्न रह गया. बिल्कुल फ्रंट पेज पर ही दो तस्वीरें छपी थीं. एक अरब की राजकुमारी ‘कॉशिमा’ की थी, जिसे किसी विदेशी से शादी करने के जुर्म में मौत की सज़ा सुनाई गई थी और दूसरा फोटो उसके अमेरिकन पति ‘जॉन’ का था. मेरे हाथ जहां के तहां रुक गए. मैं कटे हुए पेड़ की तरह बेड पर गिर पड़ा.
घड़ी की सूइयां अविरल बढ़ती जा रही थीं. समय बीतता गया. साढ़े छ: बजे फ़ोन की घंटी खनखनाई. यह शाहिना थी, “अरे तुम सोए हुए हो न… मुझे मालूम है. देखो जल्दी करो, मैं एअरपोर्ट पहुंच चुकी हूं. ड्राइवर को हमने वापस भी भेज दिया है. कम फास्ट.”
“मैं… मैं आता हूं…” मेरी आवाज़ में कंपकपाहट थी.
“उदास हो क्या? तुम्हारी आवाज़ कांप क्यों रही है… मनु” शाहिना ने पूछा.
“कुछ भी नहीं… नथिंग…” मैं स्पष्ट नहीं बोल पा रहा था. आज… आज का अख़बार पढ़ा तुमने शाहिना…?” मैंने डरते हुए पूछा.
“क्या…? अरे हां, ‘कॉशिमा’ वाली न्यूज़ तो नहीं.” शाहिना ज़ोरों से हंस पड़ी. “मनु! डर गए क्या? डरपोक कहीं के… चलो, चलो… जल्दी तैयार हो जाओ… मैं फ़ोन रखती हूं.. ओके, फील्ड इज़ क्लीअर… रास्ता साफ़ है… जल्दी आ जाओ…”
सात बजे फिर फ़ोन की घंटी बजी. मैं यूं ही ठंडी चाय का कप हाथों में लिए बैठा था. यह शाहिना थी. “जानते हो मनु… इंडिया काउन्टर पर मोहर लगवाते हुए ‘आबू’ के एक फ्रेंड ने देख लिया मुझे, पर कोई बात नहीं. अभी 20 मिनट के अंदर हम दोनों फ्लाइट के भीतर होंगे. दरवाज़े बंद और ‘प्लेन’ आसमान में… जल्दी आओ मनु… कम फास्ट. आई एम मिसिंग यू वेरी मच… तुम्हारे बिना एक पल भी बिताना मुश्किल हो रहा है. जल्दी आओ… और देखो, ज़्यादा तेज़ गाड़ी मत ड्राइव करना… समझे न…” शाहिना की भावुकता चरम सीमा पर थी.
प्रेम में सराबोर, भय-डर सब से दूर शाहिना की बातें मैं अवाक्-सा सुनता जा रहा था, चुपचाप. “और सुनो, गले में वो लालवाला मफलर ज़रूर डाल लेना… बहुत सर्द हवा चल रही है. ठीक है, जल्दी निकलो… मैं फ़ोन रखती हूं. आई एम मिसिंग यू मनु.” शाहिना ने फ़ोन रख दिया.
काफ़ी देर तक मैं फ़ोन पकड़े हुए सोचता रहा. मानो कभी शाहिना की आवाज़, कभी अख़बार की हेडलाइन और कभी फ्रंट पेज पर छपी “कॉशिमा” और ‘जॉन’ की तस्वीरें आंखों के आगे तैर जातीं. घबराहट के मारे मेरा पूरा शरीर पसीने से तर-बतर हो रहा था. और उधर इन सभी बातों से बेफिक्र शाहिना को डर छू भी नहीं रहा था.
सच ही कहा है किसी ने, पुरुष के लिए ‘प्रेम’ एक भावना मात्र है, लेकिन नारी के लिए प्रेम पूजा से कम नहीं. संपूर्ण समर्पित हो जाने को ही नारी प्रेम समझती है. एअरपोर्ट पर अंतिम कॉल की घोषणा हुई तो शाहिना ने फिर फ़ोन मिलाया.
फ़ोन की घंटी बजती रही. मैं सुनता रहा, मगर मुझमें हिम्मत नहीं हो पा रही थी कि मैं फ़ोन उठा लूं. घंटी बजती रही. मैं कटे हुए पेड़ की तरह बेड पर लेटा हुआ था. लाख कोशिशों के बाद भी साहस नहीं जुटा पाया.
एअरपोर्ट पहुंचा, तो फ्लाईट जा चुकी थी. वहीं एक कोने में काफ़ी भीड़ इकट्ठी थी. मैं भीड़ को चीरता हुआ अंदर घुस गया. मुझे देखते ही शाहिना उठकर खड़ी हो गई. आगे मेरी ओर बढ़ने ही वाली थी कि रुककर, ठिठक कर खड़ी हो गई. मैंने धीरे से ‘सॉरी’ कहकर उससे देर से आने के लिए क्षमा मांगी. शाहिना ख़ामोश-सी खड़ी अपलक मुझे घूरती रही. फिर अचानक उसने मुंह मोड़ लिया. तभी वहां पास में बैठे पुलिस इंसपेक्टर ने अरबी में शाहिना से पूछा- “क्या यही है वो जिस के साथ आप ‘इजिप्ट’ जा रही थीं?” शाहिना चुप रही.
इन्सपेक्टर ने फिर अरबी में पूछा “वो कहां है? ये जनाब कौन हैं? हेलो मिस शाहिना, जवाब दीजिए…?” थोड़ी चुप्पी के बाद शाहिना ने मुझे घूरते हुए कहा, “ये… इन्हें… मैं… नहीं जानती…”
शाहिना के इस जवाब से मैं बिल्कुल चौंक पड़ा. तभी सामने से ‘आबू’ की गाड़ी आती हुई दिखाई पड़ी. गाड़ी आकर पोर्टिको में रुकी, तो मैं सारी कहानी समझ गया. इससे पहले कि मैं इन्सपेक्टर के सामने अपना परिचय देता, शाहिना उठकर उस इन्सपेक्टर के साथ कमरे में जा चुकी थी. ‘आबू’ भी घबराए हुए से उस कमरे में घुस गए. ‘आबू’ के चेहरे पर उड़ी हवाइयों से साफ ज़ाहिर था कि क्या होनेवाला है.
मेरी घबराहट बढ़ती जा रही थी. मैं वापस घर आ गया. मैं अपने ऊपर आनेवाले संकट की प्रतीक्षा कर रहा था. एक-एक पल भारी लग रहा था. न जाने कब मुझे नींद आ गई.
अगली सुबह फिर ‘पेपर’ की आवाज़ ने मुझे चौंका दिया. पेपर में ‘कॉशिमा’ की जगह फिर एक तस्वीर छपी थी, फ्रंट पेज पर. मगर आज दो नहीं स़िर्फ एक ही तस्वीर छपी थी और वह तस्वीर थी शाहिना की. अगले ही महीने मैं हिन्दुस्तान वापस आ गया.
…शाहिना की चूड़ियों की खनखनाहट आज भी मुझे चौंक़ा देती है. प्रेम की परिभाषा को भावनाओं की खिलखिलाहट में घोलकर पी जानेवाली सुधा-पिपासी शाहिना आज भी ज़िंदा है. मर कर भी ज़िंदा रहने और जिंदा रहकर भी मरने में क्या फ़र्क़ है… यह शाहिना मुझे सिखा गई.
…मेरे कंधे पर मेरी पत्नी नीता ने हौले से हाथ रखा, तो मेरी तन्द्रा टूटी. आंखों से न जाने कब अश्रु बूंदें टपककर गालों पे आ गई थीं. नीता अपने आंचल से मेरे आंसुओं को पोंछती हुई मेरे कंधों को थपथपाने लगी, तो मैं अतीत के धुंधलके से बाहर निकला. अपने ‘मेडल’ को सम्भालता हुआ, मैं अपनी सीट पर आ बैठा. तालियों की अविरल गड़गड़ाहट में मुझे शाहिना की चूड़ियों की खनक आज भी सुनाई पड़ रही थी. ऐसा लगा, मानो ‘मोटू’ कहकर वह खिलखिलाती हुई दौड़कर मेरे सामने आ जाएगी. और…

 

सुनीता सिन्हा

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