सच ही कहा गया है, प्रेम की पींग अच्छा-बुरा सोचने का व़क़्त ही नहीं देती. शाहिना की छुट्टियां ख़त्म हो गई. वह चार दिनों के बाद ही इजिप्ट जा रही थी. उसका टिकट आ चुका था, पर वह जाने से साफ़ इंकार कर रही थी. उसकी उस अवज्ञा का अंजाम मैं जानता था. समझा-बुझाकर उसे जाने के लिए राजी करना चाहा, तो समझने की बजाए उसने फ़ोन पटक दिया. काफ़ी कशमकश के बाद जब हम दोनों ने साथ जाने की योजना बनाई, तब जाकर वह मानी.
मैं घर पहुंचा. कार से उतरने ही वाला था कि शाहिना ने मुझे पीछे से चूंटी काटी. मैंने उसे देखा, तो उसने मां की तरफ़ इशारा किया. मैंने अंदर चलने के लिए आग्रह किया. एक-दो बार इंकार करने के बाद वो राज़ी हो गईं.
अपने एक कमरे के छोटे-से फ्लैट में मैं अम्मी और शाहिना को ले आया. चाय बनाने लगा, तो अम्मी ने शाहिना को अरबी में झड़पते हुए चाय बना देने का इशारा किया. शाहिना यही तो चाहती थी. मगर अम्मी के सामने ना-ना करती हुई मेरे पास आ बैठी. अम्मी ने मुस्कुराते हुए पूछा- “शादी क्यों नहीं कर लेते बेटा…?” मैं जवाब के लिए शब्द चुन ही रहा था कि शाहिना चाय को प्याली में छानती हुई बोली, “कौन शादी करेगा इस मोटू से…?” शाहिना की बात पूरी भी नहीं हुई थी कि अम्मी उसे डांटने लगी.
कुछ देर बाद अम्मी बालकनी में आई, तो मैंने शाहिना को अपनी बांहों में भरते हुए पूछा, “क्यों, मैं मोटू हूं…?”
“ऑफ़कोर्स…” और वो मेरे सीने से लग गई. मैंने उसके होंठों पर चुम्बन लेना चाहा, तो वो रोकती हुई बोली, “बस शुरू हो गए न… तुम लड़कों को और भी कुछ सूझता है? तुम सभी लड़के एक से होते हो… फ्रॉड, एकदम फ्रॉड…”
“मैं फ्रॉड हूं…?” मैंने उसकी आंखों में झांकते हुए पूछा “ऑफ़कोर्स… यू आर ए फ्रॉड… ए रीअल फ्रॉड…” और वो खिलखिलाने लगी.
शाहिना अचानक ख़ामोश हो उठी. मुझसे लिपटती हुई बोली, “मनु… इसी तरह हमारे ख़ुशनुमा दिन कटते रहेंगे ना, हंसते-खेलते… तुम्हारी बांहों में इसी तरह समाए हुए… है न? बोलो ना…?”
“हां… स्वीटहार्ट… बस तुम और मैं. मैं और तुम…” मैंने उसके बालों को प्यार से सहलाते हुए उसके माथे पर प्यार से एक चुंम्बन ले लिया.
“कब तक हम लोग यूं पल-दो पल के लिए मिलते रहेंगे मनु… तुम्हारी जुदाई मुझसे अब नहीं सही जाती… आई लव यू… आई कांट लिव विदाउट यू…”
मैंने शाहिना का आंसुओं से भीगा हुआ चेहरा उठाया, उसकी आंखों में झलकता सम्पूर्ण समर्पण कोई भी स्पष्ट पढ़ सकता था. वह मेरे सीने से चिपककर रोती रही. अम्मी की आहट पाकर जब वह अलग हुई, तो मेरी कमीज़ का अगला हिस्सा भीगा हुआ था. हमारा प्रेम अब अपने अंतिम पायदान पर पहुंच चुका था. प्रेम के अंजाम और अरब देश के निरंकुश रस्म-ओ-रिवाज़ से अनभिज्ञ हम अपने भविष्य की योजनाओं में ही व्यस्त रहा करते थे. सुनहरे सपनों में खोए रहते थे.
सच ही कहा गया है, प्रेम की पींग अच्छा-बुरा सोचने का व़क़्त ही नहीं देती. शाहिना की छुट्टियां ख़त्म हो गई. वह चार दिनों के बाद ही इजिप्ट जा रही थी. उसका टिकट आ चुका था, पर वह जाने से साफ़ इंकार कर रही थी. उसकी उस अवज्ञा का अंजाम मैं जानता था. समझा-बुझाकर उसे जाने के लिए राजी करना चाहा, तो समझने की बजाए उसने फ़ोन पटक दिया. काफ़ी कशमकश के बाद जब हम दोनों ने साथ जाने की योजना बनाई, तब जाकर वह मानी.
मैं भी शाहिना के बिना बेचैन रहने लगा था. इजिप्ट के टूरिस्ट वीसा पर वहां से हिन्दुस्तान जाने का प्रोग्राम तय हो गया. और यह भी तय हो गया कि हिन्दुस्तान पहुंचते ही हम शादी कर लेंगे. शाहिना सोच-सोचकर रोमांचित हो रही थी. तीन दिन जो बाक़ी थे मानो तीन साल लग रहे थे.
आख़िर वह दिन भी आ गया. सुबह 9 बजे की ‘एअर साऊदी’ की फ्लाईट थी. रात को ही मैंने वीसा के सारे पेपर्स तैयार करके चुपचाप शाहिना को थमा दिए थे. सुबह सात बजे हमें एअरपोर्ट पहुंचना था और इससे पहले कि कोई हमें देख ले, हम देश छोड़कर हवा से बातें कर रहे होंगे. किसी को हल्का-सा शक़ भी हो गया, तो हमें पकड़वा सकता था और ‘अगवा’ की सज़ा वहां मौत है. हम लोग अपनी ‘प्लैनिंग’ को गुप्त रखकर सारे काम करते जा रहे थे.
प्रेम की इस आंधी के सामने मौत के भय की सच्चाई नहीं टिक पाई. भावनाओं के सतत प्रहार ने विवेक को धराशाई कर दिया था. हम दोनों रातभर सो नहीं पाए.
सुनीता सिन्हा
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