“हर उम्र की अपनी एक सोच होती है. ग़लत कुछ भी नहीं है. ग़लत स़िर्फ यह है कि उम्र के…
घर से तो निकल आई थी, अब कहां जाए, क्या करे, कुछ समझ नहीं आ रहा था. बस, निरुद्देश्य सड़क…
संध्या को लगा, पूरा घर जैसे घूम रहा है. उसने दीवार का सहारा न लिया होता, तो शायद चक्कर खाकर…