कहानी- नई राह नई मंज़िल 1 (Story Series- Nayi Raah Nayi Manzil 1)
संध्या को लगा, पूरा घर जैसे घूम रहा है. उसने दीवार का सहारा न लिया होता, तो शायद चक्कर खाकर गिर ही ...
संध्या को लगा, पूरा घर जैसे घूम रहा है. उसने दीवार का सहारा न लिया होता, तो शायद चक्कर खाकर गिर ही ...
घर से तो निकल आई थी, अब कहां जाए, क्या करे, कुछ समझ नहीं आ रहा था. बस, निरुद्देश्य सड़क पर चलती जा रही ...
“हर उम्र की अपनी एक सोच होती है. ग़लत कुछ भी नहीं है. ग़लत स़िर्फ यह है कि उम्र के उस दौर से गुज़रने ...