“एक बार, सिर्फ़ एक बार आज़माकर देखो प्रज्ञा, बहुत कुछ सोचा-समझा इन दो सालों में.. .परंपरागत पुरुष के खोल से…
“बस केशव... मैं जानती हूं तुम बहुत ही सरल व समय के साथ बहनेवाले इंसान हो, लेकिन कुछ बातें ऐसी…
क्या अक्षत जैसे पुरुष पर उसे अपना स्वत्व, नारीत्व निछावर करना चाहिए? यह सवाल न चाहते हुए भी उसे भेद…
“अक्षत अगर हम दोनों को ना भी मिला... और तुम्हें भी मिल गया, तो मैं बिना जॉब के ही तुम्हारे…
लेकिन आज केशव की दी हुई ख़बर ने ऊपर से जमी बर्फ़ के नीचे शांत बह रही नदी में खलबली-सी…