आंखों से दिल का हाल बताने वाली महिलाओं से यूं तो कोई बात छुपाए नहीं छुपती, पर बात जब जीवनसाथी…
मैं अपनी चचेरी बहन के पास अस्पताल में बैठी थी. उसका छोटा-सा एक्सीडेंट हुआ था और पांव में फ़्रैक्चर हो जाने कीवजह से वह तीन-चार दिनों के लिए एडमिट थी. मैं उसके पास कुर्सी पर बैठी कोर्स की किताब पढ़ रही थी कि तभी उसकेस्कूल के दोस्त उससे मिलने आए. दो लड़कियां और तीन लड़के. कुछ ही देर में बाकी सब तो चले गए लेकिन रश्मि काएक दोस्त, जिसका नाम जतिन था रुक गया. हम तीनों बातें करने लगे. बातों के सिलसिले में पूरी दोपहर कब निकल गईपता ही नहीं चला. दूसरे दिन फिर आने का वादा करके वह घर चला गया. उसके जाने के बाद मैं यूं ही उसके बारे में सोचने लगी… बिखरे बालों वाला वह बहुत सीधा-सादा, भोला-सा लगा मुझे. रात में चाची रश्मि के पास रुकी और मैं घर चली गई. सुबह नहाकर जब वापस आई तो देखा जतिन महाराज पहले से ही वहां बैठे थे. चाची के चले जाने के बाद हम तीनों फिर गप्पे मारने लगे. एक आम और साधारण-सा चेहरा होने के बाद भीएक अजब-सी, प्यारी-सी रूमानियत थी जतिन के चेहरे पर और उसकी बातों में कि दिल और आंखें बरबस उसकी ओर खींची चली जाती थी. चार दोपहरें कब निकल गई पता नहीं चला. रश्मि को अभी डेढ़ महीना घर पर ही रहना था. इस बीच उसके बाकी दोस्तों के साथ ही जतिन भी घर आता रहा. वह स्कूल में होने वाली पढ़ाई की जानकारी रश्मि को देकर उसकी मदद करता और खाली समय में हम तीनों खूब बातें करते और मस्ती करते. अब तो जतिन से मेरी भी बहुत अच्छी दोस्ती हो गई थी. जिस दिन वह नहीं आता वो दिन खाली-खाली-सा लगता और मैं बेसब्री से उसका इंतजार करती. रश्मि भी हंसी-हंसी में उसे ताना मारती, "तुम मुझसे मिलने थोड़े ही आते हो, तुम तो चेतना से मिलने आते हो…" तब जतिन एक शर्मीली-सी हंसी भरी नज़र मुझ पर डाल कर सिर झुका लेता. बारहवीं पास होते ही मैं डेंटल कॉलेज में पढ़ने दूसरे शहर चली गई और जतिन भी आगे की पढ़ाई करने दूसरे शहर चला गया, लेकिन फोन पर हम बराबर संपर्क में बने रहते. कभी-कभी रात की ट्रेन से सफर करके जतिन मुझसे मिलने आता. दिन भर हम साथ में घूमते, लंच करते और रात की ट्रेन से वह वापस चल आ जाता. पढ़ाई खत्म होने तक हम दोनों को ही इस बात का एहसास हो चुका था कि हम दोस्ती से आगे बढ़ चुके हैं. हम एक-दूसरे से प्यार करने लगे हैं और अब अलग नहीं रह सकते. हम दोनों ही अपनी एक अलग रूमानी दुनिया बसा चुके हैं, जहां से लौटना अब संभव नहीं था. कितनी खूबसूरत थी वह दुनिया, बिल्कुल जतिन की दिलकश मुस्कुराहट की तरह और उसकी आंखों में झलकते प्यार सेसराबोर जिसमें मैं पूरी तरह भीग चुकी थी. नौकरी मिलते ही जतिन ने अपने घर में इस बारे में बात की. उसके माता-पिता अपने इकलौते बेटे की खुशी के लिए सहर्षतैयार हो गए, लेकिन मेरे पिताजी ने दूसरी जाति में शादी से साफ इनकार कर दिया. यहां तक कि जतिन के घर आने पर अपनी बंदूक तान दी. महीनों घर में तनाव बना रहा, लेकिन मैं जतिन के अतिरिक्त किसी और से शादी करने के लिए किसी भी हालत में तैयार न थी. महीनों बाद सब के समझाने पर पिताजी थोड़े नरम हुए. उन्होंने पंडित जी से कुंडली मिलवाई तोपंडित जी ने मुझे मंगली बता कर कहा कि यदि यह शादी हुई, तो लड़की महीने भर में ही विधवा हो जाएगी. साथ ही लड़के की कुंडली में संतान योग भी नहीं है. घर में सब पर वज्रपात हो गया. अब तो शादी की बिल्कुल ही मनाही हो गई. चार-पांच पंडितों ने यही बात की. अलबत्ता जतिन के घर वाले अब भी अपने बेटे की खुशी की खातिर इस शादी के लिए तैयार थे. बहुत संघर्षों और विवादों के बाद…
नए साल का आग़ाज़ हो चुका है और इस मौक़े पर सभी जश्न में डूबे नज़र आ रहे हैं, वहीं…
सावन बरस रहा है... मेरा विरही मन जल रहा है.. मुझे याद आ रही है सावन की वो पहली बारिश… उस पहली बारिश की वो की भीगती हुई खूबसूरत शाम और उस शाम का वो हसीन लम्हा... मन सुलग रहा था ...तन मचल रहा था...लजाती खामोश आंखें... जज़्बातों का उफान चरम पर था, हम दोनों अकेले उस कमरे में थे कि अचानक बिजली कड़कने से मैं डरकर तुम्हारे सीने से लिपट गई थी और तुमने मुझे मजबूती से थाम लिया था. मैं झिझक रही थी... लजा रही थी और खुद को तुमसे छुड़ाने का असफल प्रयास कर रही थी. बारिश जब तक थम नहीं गई, तब तक हमारी खामोशियां रोमांचित होकर सरगोशियां करती रहीं... मौन मुखर होकर सिर्फ़ आंखों के रास्ते से एक-दूसरे के दिल को अपने मन का हाल बता रहा था. बारिश में भीगते अरमान मुहब्बत के नग़मे गुनगुना रहे थे… इतना हसीन मंजर था वो कि आज भी याद कर मां रोमांचित हो उठता है… लग रहा था कि ये बारिश ताउम्र यूं ही होती रहे, ये बदल ऐसेही मुहब्बत बरसाते रहें… ये बिजली कौंधकर यूं ही डराती रहे ताकि मैं तुमसे यूं ही लिपटी रहूं… चाहत के ये पल यूं ही थमे रहें… मन इश्क़ के नशे में डूबा हुआ था कि अचानक बारिश और भी तेज़ हो गई. लग रहा था भगवान ने मेरी सुन ली थी… यूं लग रहा था कि बाहर एक तूफ़ान चल रहा है और यहां अंदर, मन के भीतर भी एक तूफ़ान शुरू हो गया था. तुमने अपने हाथों से मेरे आरक्त चेहरे को उठाकर मेरे सुर्ख और तपते हुए अधरों को अपनी चाहत भरी पावन नज़रों से निहारा, फिर कहा… "अभी नहीं, अभी पाप है यह" ये कहते हुए तुमने अपनी नज़रों को झुका लिया था. यह भी पढ़ें: पहला अफेयर: अलविदा! (Pahla Affair… Love…
क्या अब भी कोई उम्मीद बाक़ी है तुम्हारे आने की? क्या अब भी कोई हल्की सी गुंजाइश बची है हमारी मोहब्बत की? क्योंआज भी हर आहट पर धड़क उठता है मेरा दिल, क्यों आज भी रह-रहकर ये महसूस होता है कि तुम हो, कहीं आसपास हीहो… लेकिन बस निगाहों से न जाने क्यों ओझल हो! सात बरस गुज़र गए जय तुमको मेरी ज़िंदगी से गए हुए लेकिन मैं आज भी, अब भी उसी मोड़ पर रुकी तुम्हारा इंतज़ार कररही हूं… एक छोटी-सी बात पर यूं तनहा छोड़ गए तुम मुझे! मैं तो अपने घर भी वापस नहीं जा सकती क्योंकि सबसेबग़ावत करके तुम्हारे संग भागकर शादी जो कर ली थी मैंने. शुरुआती दिन बेहद हसीन थे, हां, घरवालों की कमी ज़रूरखलती थी पर तुम्हारे प्यार के सब कुछ भुला बैठी थी मैं. लेकिन फिर धीरे-धीरे एहसास हुआ कि तुम्हारी और मेरी सोच तोकाफ़ी अलग है. तुमको मेरा करियर बनाना, काम करना पसंद नहीं था, जबकि मैं कुछ करना चाहती थी ज़िंदगी में. बस इसी बात को लेकर अक्सर बहस होने लगी थी हम दोनों में और धीरे-धीरे हमारी राहें भी जुदा होने लगीं. एक दिनसुबह उठी तो तुम्हारा एक छोटा-सा नोट सिरहाने रखा मिला, जिसमें लिखा था- जा रहा हूं, अलविदा!… और तुम वाक़ई जा चुके थे… मन अतीत के गलियारों में भटक ही रहा था कि डोरबेल की आवाज़ से मैं वर्तमान में लौटी! “निशा, ऑफ़िस नहीं चलना क्या? आज डिपार्टमेंट के नए हेड आनेवाले हैं…” “हां रेखा, बस मैं तैयार होकर अभी आई…” ऑफिस पहुंचे तो नए हेड के साथ मीटिंग शुरू हो चुकी थी… मैं देखकर स्तब्ध थी- जय माथुर! ये तुम थे. अब समझ मेंआया कि जब हमें बताया गया था कि मिस्टर जे माथुर नए हेड के तौर पर जॉइन होंगे, तो वो तुम ही थे. ज़रा भी नहीं बदले थे तुम, व्यक्तित्व और चेहरे पर वही ग़ुरूर! दो-तीन दिन यूं ही नज़रें चुराते रहे हम दोनों एक-दूसरे से, फिर एक दिन तुम्हारे कैबिन में जब मैं अकेली थी तब एक हल्कीसे आवाज़ सुनाई पड़ी- “आई एम सॉरी निशा!” मैंने अनसुना करना चाहा पर तुमने आगे बढ़कर मेरा हाथ पकड़ लिया- “मैं जानता हूं, ज़िंदगी में तुम्हारा साथ छोड़कर मैंनेबहुत बड़ा अपराध किया. मैं अपनी सोच नहीं बदल सका, लेकिन जब तुमसे दूर जाकर दुनिया को देखा-परखा तो समझआया कि मैं कितना ग़लत था, लड़कियों को भी आगे बढ़ने का पूरा हक़ है, घर-गृहस्थी से अलग अपनी पहचान औरअस्तित्व बनाने की छूट है. प्लीज़, मुझे माफ़ कर दो और लौट आओ मेरी ज़िंदगी में!” “क्या कहा जय? लौट आओ? सात साल पहले एक दिन यूं ही अचानक छोटी-सी बात पर मुझे यूं अकेला छोड़ तुम चलेगए थे और अब मुझे कह रहे हो लौटने के लिए? जय मैं आज भी तुम्हारी चाहत की गिरफ़्त से खुद को पूरी तरह मुक्त तोनहीं कर पाई हूं, लेकिन एक बात ज़रूर कहना चाहूंगी कि तुमने मुझसे अलग रहकर जो भी परखा दुनिया को उसमें तुमने येभी तो जाना ही होगा कि बात जब स्वाभिमान की आती है तो एक औरत उसके लिए सब कुछ क़ुर्बान कर सकती है. तुमनेमेरे स्वाभिमान को ठेस पहुंचाई और अपनी सुविधा के हिसाब से मेरी ज़िंदगी से चले गए वो भी बिना कुछ कहे-सुने… औरआज भी तुम अपनी सुविधा के हिसाब से मुझे अपनी ज़िंदगी में चाहते हो! मैं ज़्यादा कुछ तो नहीं कहूंगी, क्योंकि तुमने भी जाते वक़्त सिर्फ़ अलविदा कहा था… तो मैं भी इतना ही कहूंगी- सॉरीबॉस!” इतना कहकर मैं वहां से चली आई. ऐसा लगा मानो बरसों का एक बोझ जो सीने और अपने अस्तित्व पर रखा था वो उतरगया हो… अब सब कुछ साफ़ था और बेहद हल्का, क्योंकि बरसों पुराना मेरा इंतज़ार अब ख़त्म हो चुका था, ज़िंदगी की नई राह अब मेरा इंतज़ार कर रही थी! - रिंकी शर्मा…
ये भीगता मौसम, ये बरसती फ़िज़ा… मन के किसी कोने में तुम्हारी यादों की सोंधी महक को फिर हवा दे जाते हैं… जब-जब ये बारिश होती है, तन के साथ-साथ मन को भी भिगो देती है… कैसी अजीब सी कशिश थी तुम्हारी उस सादगी में भी, कैसी रूमानियत थी तुम्हारी आंखों की उस सच्चाई में भी… मेरा पहला जॉब वो भी इतने बड़े बैंक में. थोड़ा डर लग रहा थालेकिन तुमने मुझे काफ़ी कम्फ़र्टेबल फील कराया था. हर वक्त मेरी मदद की और न जाने कैसे धीरे-धीरे एक दिन अचानक मुझे ये एहसास हुआ कि कहीं मैं प्यार में तो नहीं? कुछ दिन अपने दिल को समझने और समझाने में ही बीत गए और उसके बाद मैंने निर्णय ले लिया कि तुमसे अपनीफ़ीलिंग्स का इज़हार कर दूंगी क्योंकि घर में भी मेरी शादी को लेकर बात चलने लगी थी. मैंने देर करना ठीक नहीं समझा और कहीं न कहीं मुझे भी ये लगने लगा था कि तुम्हारा भी खिंचाव और लगाव है मेरीतरफ़. मैंने लंच में तुमसे बिना झिझके साफ़-साफ़ अपने दिल की बात कह दी. तुमने भी बड़े सहज तरीक़े से मुझसे कहाकि तुम भी मुझसे प्यार करने लगे हो लेकिन एक सच है जो तुम मुझे बताना चाहते हो, लेकिन शाम को फ़ुर्सत में… ‘निशांत, कहो क्या कहना चाहते हो?’ ‘निधि मैंने तुमको अपने घर इसलिए बुलाया कि बात गंभीर है और मैं तुमको अंधेरे में नहीं रखना चाहता. निधि ये तस्वीर मेरी 3 साल की बेटी किट्टू की है.’ ‘तुम शादीशुदा हो? तो तुमने मुझे अपने घर क्यों बुलाया? तुम्हारी पत्नी और बेटी कहां हैं?’ ‘निधि, यही सब बताने के लिए तो बुलाया है तुम्हें! मेरी पत्नी और मैं अलग रहते हैं. हमने तलाक़ का फ़ैसला लिया है. किट्टू भी राधिका के साथ ही है. मेरी पत्नी राधिका को मेरी सादगी और सहजता पसंद नहीं थी. उसको शुरू से लगता था कि मैंऔरों की तरह स्मार्ट नहीं. उसकी ख्वाहिशें भी बहुत बड़ी थीं जो मैं पूरी न कर सका, इसलिए हमने अलग होने का फ़ैसला किया है.’ ‘निशांत मुझे कोई प्रॉब्लम नहीं, मैं तुमसे बेहद प्यार करती हूं और तलाक़ तक तो क्या, ताउम्र तुम्हारा इंतज़ार कर सकती हूं!’ इसके बाद सब कुछ ठीक चल रहा था, मेरी शामों में रूमानियत घुलने लगी थी, दिन रंगीन हो ही रहे थे कि निशांत ने बताया उसकी बेटी किट्टू बहुत बीमार है और राधिका वापस घर लौट आई है क्योंकि किट्टू अपने मम्मी-पापा दोनों के साथ रहना चाहती थी. किट्टू की रिपोर्ट्स से पता चला कि उसको ब्रेन ट्यूमर है और सर्जरी करनी पड़ेगी, जो काफ़ी रिस्की है! मैंने निशांत को कहा कि फ़िलहाल वो किट्टू पर ध्यान दे. ‘क्या बात है निशांत, तुम इतने उलझे-उलझे क्यों रहते हैं इन दिनों? किट्टू ठीक हो जाएगी, ज़्यादा सोचो मत!’ ‘निधि किट्टू की फ़िक्र तो है ही लेकिन एक और बात है, राधिका काफ़ी बदल गई है. उसका कहना है कि किट्टू हम दोनों केसाथ रहना चाहती है और उसकी ख़ातिर वो खुद को बदलना चाहती है, लेकिन मैंने उसे अपने और तुम्हारे रिश्ते के बारे मेंबता दिया है, राधिका को कोई आपत्ति नहीं, पर किट्टू की ज़िद का क्या करूं. वो बस यही कहती है कि उसको मम्मी-पापा दोनों के साथ रहना है!…
कोई भी रिश्ता हो, वो कुछ न कुछ चाहता है, कुछ वादे, कुछ सपने, कुछ शर्तें, तो कुछ सामंजस्य व…
आपसी प्यार, देखभाल और सम्मान किसी भी स्वस्थ रिश्ते की मुख्य नींव है. यही वह चीज़ है, जो ज़्यादातर शादीशुदा…
शादी के कुछ सालों बाद अधिकतर कपल्स की ये शिकायत होती है कि उनका रिश्ता अब पहले जैसा रोमांटिक नहीं…
क्या आपके रिश्ते में भी ऐसा मोड़ आ गया है कि आपको उनसे ऊब-सी होने लगी है? क्या ऐसा लगता…
कहते हैं प्यार में सब कुछ जायज़ है लेकिन सुमित की सोच कुछ अलग ही थी... आज सुमित को एक अरसे बाद देखा वोभी अपने पति की ऑफ़िस पार्टी में. बालों में हल्की सफ़ेदी झलक रही थी पर व्यक्तित्व उतना ही आकर्षक और शालीन... दिल पुरानी यादों में डूब गया. मुझे याद है एक-एक लम्हा जो सुमित की बाहों में बीता था, कितना हसीन हुआ करता थातब सब कुछ. सुमित और मैं साथ ही पढ़ते थे और उसका घर हमारे घर से कुछ ही दूरी पर था. वो बस कुछ ही वक़्त पहलेयहां शिफ़्ट हुआ था. कॉलेज का आख़िरी साल था और सुमित ने भी मेरे ही कॉलेज में एडमिशन ले किया था. आते-जातेपहले आंखें मिलीं और फिर साथ पढ़ते-पढ़ते दोस्ती हो गई. सुमित काफ़ी समझदार था और मैं उसकी इसी समझदारी की क़ायल थी. मैंने उसे अपने दिल की बात कहने में देर नहींलगाई और उसने भी अपनी भावनाओं का इज़हार कर दिया. पढ़ाई पूरी हुई और घर में मेरी शादी की बातें भी होने लगीं. एक रोज़ पापा ने ऐलान कर दिया कि लड़केवाले आ रहे हैं देखने. मैं घबरा गई और भागकर सुमित के पास गई. उसेबताया तो उसने कहा कि मैं घरवालों को बता दूं और कल वो भी आकर पापा से बात करेगा. मैंने हिम्मत जुटाकर मम्मी-पापा को अपने प्यार का सच बता दिया. पापा ने भी कहा ठीक है सुमित को आने दो कल, तभीबात करेंगे पर फ़िलहाल जो लोग देखने आ रहे हैं उस पर ध्यान दो. लड़केवाले तो आकर चले गए पर मुझे कल का इंतज़ार था. सुमित आया और पापा ने मुझे भी बुलाया. पापा बोले- मुझेलव मैरिज से कोई प्रॉब्लम नहीं है, ये सुन मैं एक पल को खुश हो गई, पर पापा की आगे की बातें सुन मैंने उम्मीद छोड़ दी. “सुमित अगर तुम हमारे समाज के होते तो मुझे कोई आपत्ति नहीं होती क्योंकि तुम होनहार हो, समझदार हो लेकिन मैंअपने समाज के विरुद्ध जाकर रचना की शादी नहीं कर सकता. मुझे भी नाते-रिश्तेदारों को जवाब देना है. मैं तुम दोनों कोभ्रम में नहीं रखना चाहता इसलिए साफ़-साफ़ कह दिया.” मेरे सारे सपने बिखरते नज़र आए मुझे... रात के एक बज रहे थे... “अरे रचना, इतनी रात तुम मेरे यहां? सब ठीक तो है?” “सुमित चलो भाग चलते हैं, हम अपने प्यार को ऐसे हारते देख नहीं सकते. शादी कर लेंगे तो पापा ज़रूर माफ़ कर देंगे.” “रचना, मैं अपने प्यार को ऐसे कलंकित नहीं कर सकता, यूं चोरी-छिपे शादी करना ठीक नहीं, तुम्हारे घरवालों की औरतुम्हारी भी बदनामी होगी. मैं तुम्हें बदनाम कैसे कर सकता हूं, सिर्फ़ अपने स्वार्थ के लिए? प्यार का अर्थ पाना ही नहीं होताबल्कि खोना भी होता है. मुझे उम्मीद है तुम हमारे प्यार की लाज रखोगी और अपनी शादी को दिल से निभाओगी! मेरीख़ातिर... चलो तुम्हें घर छोड़ दूं.” मैं आंसुओं के सैलाब में डूब गई और चुपचाप शादी भी कर ली. पापा ने विदाई के समय कहा था, “मुझे माफ़ कर देनाबेटा, मैं कायर निकला!” मेरे पति अरुण काफ़ी अच्छे और नेकदिल थे, लेकिन सुमित की कमी हमेशा ही खली! “अरे रचना, इनसे मिलो, ये सुमित हैं, कुछ ही दिन पहले इनका यहां ट्रांसफ़र हुआ है.” मेरे पति ने सुमित से मिलवाया और मैं बीते वक्त से वर्तमान में लौट आई. मौक़ा पाते ही मैंने सुमित से उसका नंबर ले लिया. हिम्मत जुटाकर फ़ोन लगाया. हालचाल पूछा, पत्नी-परिवार के बारे मेंपूछा. “रचना, मैंने शादी नहीं की. किसी और से शादी करके मैं उसके साथ अन्याय नहीं करना चाहता था. मेरा प्यार तो तुम होऔर हमेशा रहोगी.” मैं समय निकालकर सुमित के घर जा पहुंची... “रचना तुम्हें इस तरह नहीं आना चाहिए था, किसी को पता चलेगा तोतुम्हारे लिए परेशानी हो जाएगी” “मैं खुद को रोक नहीं पाई और अब जब हम एक ही शहर में हैं तो मिल तो सकते ही हैं ना...” ख़ैर कुछ देर रुककर मैं घर लौट आई. ऐसा लगा ज़िंदगी फिर मुझे सुमित के क़रीब रहने का मौक़ा देना चाहती है... …
रिश्तों का दूसरा नाम सच्चाई और ईमानदारी है और ऐसे में अगर हम यह कहेंगे कि झूठ बोलने से आपके रिश्ते मज़बूत हो सकते हैं तो आपको लगेगा ग़लत सलाह से रहे हैं, लेकिन यहां हम ऐसे झूठ की बात कर रहे हैं जिनसे किसी का नुक़सान नहीं होगा बल्कि सुनने वालों को ये झूठ बेहद पसंद आएगा. अगर आपकी पत्नी आपसे पूछती है कि क्या मैं पहले से मोटी हो गई हूं तो भले ही यह सच हो कि उनका वज़न बढ़ा हो पर आप कह सकते हैं कि बिल्कुल नहीं, तुम मोटी नहीं हेल्दी हो और पहले से ज़्यादा ख़ूबसूरत लगती हो.इसी तरह अगर आपकी पत्नी पूछे कि यह रंग मुझपर कैसा लग रहा है तो अगर आप कहेंगे कि अच्छा नहीं लग रहामत पहनो तो उनको चिढ़ होगी, बेहतर होगा आप कहें यह तो खूब फब रहा है लेकिन अगर इसकी जगह ये वालापहनोगी तो और भी हसीन लगोगी.अगर पति ने कुछ बनाकर खिलाने की कोशिश की है और स्वाद उतना अच्छा नहीं बन सका तो भी आप ज़रूर कहेंकि कोशिश तो क़ाबिले तारीफ़ है, अगली बार इसमें थोड़ा सा ये मसाला भी ट्राई करना तो टेस्ट कुछ अलग होगा.अगर आपको पति का फ़ोन पर ज़ोर ज़ोर से बात करना नहीं भाता तो सीधे आवाज़ कम करने या यह कहने के कि कितना ज़ोर से बोलते हो, यह कहें- तुम्हारी धीमी आवाज़ बेहद हस्की और सेक्सी साउंड करती है, फिर देखिए अगली बार से वो खुद ही धीमा बोलेंगे.अगर आपको पति का किसी काम में हस्तक्षेप पसंद नहीं या उनके काम करने का तरीक़ा आपको पसंद नहीं तो यहना कहें कि तुम्हें नहीं आता तो मत करो, बल्कि यह कहें कि तुमने पहले ही इतनी मदद कर दी, तो अब यह काम मुझेकरने दो या कहें कि तुम वो वाला काम कर दो क्योंकि वो तुम मुझसे बेहतर करोगे और मैं यह कर लेती हूं... या आप यह भी कह सकती हैं कि तुम थक गए होगे तो तुम आराम कर लो बाक़ी मैं संभाल लेती हूं.अगर पतिदेव की तोंद निकल गई हो तो उनको ताना ना दें और ना ही उनके किसी दोस्त से उनकी तुलना करें बल्किकहें कि कुछ दिन मैं डायटिंग करने की सोच रही हूं अगर आप भी साथ देंगे तो मुझे मोटिवेशन मिलेगा, इसलिए प्लीज़ मुझे फिट होने में मेरी मदद करो और मैं फिट रहूंगी तो आपको भी तो अच्छा लगेगा ना. इसी तरह अगर पति को लगे कि पत्नी को डायटिंग की ज़रूरत है तो किसी पड़ोसन का उदाहरण देने से बेहतर है किआप कहें कि मेरे कपड़े थोड़े टाइट हो रहे हैं इसलिए सुबह जॉगिंग करने की और डायटिंग की सोच रहा है लेकिन तुम्हें मेरा साथ देना होगा. कभी कभी एक दूसरे की झूठी तारीफ़ में क़सीदे कस दिया करें इससे आप दोनों को ही अच्छा लगेगा. सिर्फ़ पार्टनर ही नहीं, बाक़ी घरवालों के साथ भी थोड़ा बहुत अच्छावाला झूठ बोलने में हर्ज़ नहीं, इससे उन्हें बेहतरफ़ील होगा जिससे वो खुश रहेंगे और रिश्ते भी मज़बूत होंगे.अगर पतिदेव बच्चों की तरफ़ ज़्यादा ध्यान नहीं देते या ज़िम्मेदारी से बचते हैं तो उनसे कहें कि बच्चे अक्सर बोलते हैंकि मुमकिन आपको तो कुछ नहीं आता, पापा ज़्यादा इंटेलीजेंट लगते हैं, इसलिए कल से हम उनसे ही पढ़ेंगे, ऐसाकहने से पतिदेव बच्चों के प्रति ज़िम्मेदारी ज़्यादा ख़ुशी से निभाएंगे और इससे बच्चों के साथ उनकी बॉन्डिंग भी स्ट्रॉंगहोगी. साथ ही आपका एक काम कम हो जाएगा.अगर आपकी पत्नी और आपकी मां की बनती नहि तो पत्नी से कहें कि मां अक्सर तुम्हारे काम और खाने की तारीफ़करती हैं, मां कहती हैं कि बेचारी दिनभर काम में लगी रहती है, थोड़ा भी आराम नहीं मिलता उसको और मैं भी कुछना कुछ बोलती ही रहती हूं लेकिन वो सब सह लेती है. इसी तरह अपनी मां को भी कहें कि आपकी बहू अक्सर कहती है कि काश मैं भी मम्मी जैसा टेस्टी खाना बना पाती, उनके हाथों में जो स्वाद है वो मेरे में नहीं, वो हर काम सलीके से करती हैं. ऐसी बातों से दोनों के मन में एक दूसरे केप्रति सकारात्मक भाव जागेगा और कड़वाहट दूर होगी.अगर पत्नी को लगता है कि पति और पत्नी के घरवालों की ज़्यादा नहीं बनती तो पत्नी जब भी मायके से आए तोकहे कि मम्मी-पापा हमेशा कहते हैं कि दामाद के रूप में उन्हें बेटा मिल गया है, कितना नेक है, बेटी को खुश रखताहै और किसी तरह की कोई तकलीफ़ नहीं देता वरना आज के ज़माने में कहां मिलते हैं ऐसे लड़के.दूसरी तरफ़ अपने मायकेवालों से कहें आप कि वो हमेशा हमारे घर के संस्कारों की तारीफ़ करते हैं कि तुम्हारे मम्मीपापा ने इतने अच्छे संस्कार दिए हैं कि तुमने मेरा पूरा घर इतने अच्छे से संभाल लिया. इन सबसे आप सभी के बीचतनाव काम और प्यार ज़्यादा बढ़ेगा.इसके अलावा एक बात का हमेशा ध्यान रखें कि शादी के शुरुआती दौर में कभी भी अपने डार्क सीक्रेट्स किसी सेभी शेयर ना करें, अपने अफ़ेयर्स या फैंटसीज़ आदि के बारे में पार्टनर को जोश जोश में बता ना दें. बाद में भी भले हीआप दोनों में अटूट विश्वास हो पर ये बातें कभी साझा ना करें. पार्टनर भले ही अलग अलग तरीक़ों से पूछने कीकोशिश भी करे तब भी यहां आपके द्वारा बोला गया झूठ आपके रिश्ते को बिगड़ने से बचा सकता है! पिंकु शर्मा