♦ यदि बच्चा अंगूठा चूसे या नाख़ून काटे.
♦ बहुत रोए.
♦ नज़रें मिलाने से बचे.
♦ बहुत हिंसक, आक्रामक और विनाशकारी प्रवृत्ति का हो जाए.
♦ दूसरों से निर्दयतापूर्ण व्यवहार करे.
♦ बच्चे को सोने में तकलीफ़ होना.
♦ बोलने में तकलीफ़ होना.
♦ अकेले रहना.
♦ खेलने न जाना.
♦ बहुत ज़िद्दी हो जाना.
♦ किसी बात, चीज़ का फोबिया होना.
♦ ख़ुद के बारे में नकारात्मक बातें करे.
♦ बिस्तर गीला करे.
♦ शर्मीले स्वभाव का हो जाए.
♦ शारीरिक और मानसिक विकास धीमा हो जाए.
भावनात्मक नुक़सान के प्रभाव लंबे अरसे बाद सामने आते हैं और उस वक़्त इलाज कर पाना मुश्किल हो जाता है. यह स़िर्फ बच्चे के विकास के लिए ही नहीं, बल्कि जीवन के लिए भी घातक होता है.
♦ सबसे सामान्य प्रभाव बच्चे का डिप्रेशन में जाना.
♦ आत्महत्या.
♦ आत्मग्लानि.
♦ रिश्ते-नाते व रिश्तेदारों से कटने लगना.
♦ बहुत सारे अनजाने भय से ग्रस्त हो जाना.
♦ अपनी भावनाओं को ठीक से व्यक्त न कर पाना.
♦ किसी पर या ख़ुद पर विश्वास की कमी.
♦ हमेशा सबको शंका की नज़र से देखना.
♦ ख़ुद को हमेशा कम आंकना.
याद रखें, बाल मन जितना सरल व सहज है, उतना ही जटिल भी. आपके बच्चे आपसे स़िर्फ प्यार और स्वीकृति चाहते हैं. वे चाहते हैं कि आप उनकी सफलता को ही नहीं, बल्कि असफलता को भी सहर्ष स्वीकार करें. उन्हें संबल दें. उन्हें भावनात्मक सुरक्षा प्रदान करें. उनसे बात करें, उनकी चिंताओं व सवालों का समाधान करें. इसलिए पैरेंट्स को चाहिए कि उनकी आंखों में अपने सपने भरने की बजाय उनके सपनों को समझें और उन्हें पूरा करने में उनका साथ दें. बच्चों की भावनाओं का सम्मान करें. ज़रूरत पड़ने पर काउंसलर की मदद लेने से भी न हिचकें. ध्यान रहे, बच्चे आप से वही लेंगे, जो आप उन्हें देंगे. यह आप पर निर्भर करता है कि आप उन्हें प्रेम व सौहार्द देते हैं या विकृतियां.
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