आपके आसपास ऐसी कई चीज़ें हैं, जिनके बारे में कुछ अजब-ग़ज़ब बातें आप शायद नहीं जानते होंगे. ऐसी बातों के बारे में जानकर आपको हैरानी भी होगी और आपका ज्ञान भी बढ़ेगा. यकीन मानिए, ये 5 अजब-ग़ज़ब बातें आपको ज़रूर पसंद आएंगी.
1) कैसे हुई लॉन्जरी स्टोर्स में लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) के डिस्प्ले की शुरुआत?
हम अक्सर यही सोचते हैं कि महिलाओं के लिए लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) कौन ख़रीदता है? ज़ाहिर है महिलाएं ही… पर यह जवाब पूरी तरह सही नहीं है. लॉन्जरी ख़रीदने में महिलाओं से कहीं आगे हैं पुरुष और इसकी वजह ये है कि पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को लॉन्जरीज़ ग़िफ़्ट करना पसंद करते हैं. ख़ास बात ये है कि लॉन्जरी स्टोर्स में जाकर लॉन्जरी ख़रीदने से ज़्यादा पुरुष लॉन्जरीज़ की ऑनलाइन शॉपिंग करना पसंद करते हैं, क्योंकि ऐसा करते समय उन्हें कोई देख नहीं सकता और वो आसानी से अपनी पत्नी या प्रेमिका के लिए लॉन्जरीज़ ख़रीद सकते हैं. आंकड़ों के अनुसार, वैलेंनटाइन डे, शादी के सीज़न के दौरान पुरुष लॉन्जरीज़ की शॉपिंग अधिक करते हैं. इसकी एक बड़ी वजह यह है कि शादी के सीज़न में ज़्यादातर कपल्स की वेडिंग एनीवर्सरी होती है इसलिए पुरुष अपनी वाइफ के लिए लॉन्जरीज़ की शॉपिंग करते हैं. इसी तरह वैलेंनटाइन डे के ख़ास मौके पर भी पुरुष अपनी पत्नी या प्रेमिका को लॉन्जरीज़ गिफ्ट करना पसंद करते हैं. आपको ये बात जानकर हैरानी होगी कि पुरुषों की वजह से ही लॉन्जरी स्टोर्स में लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) के डिस्प्ले की शुरुआत हुई थी. ऐसा क्यों हुआ, आइए हम आपको बताते हैं. दरअसल, भारतीय पुरुष जब अपने देश से बाहर जाते हैं तो उनकी शॉपिंग लिस्ट में सबसे ऊपर लॉन्जरीज़ का ही नाम होता है. वे अपनी पत्नी या प्रेमिका को लॉन्जरीज़ ग़िफ़्ट करना पसंद करते हैं, लेकिन दुनिया के हर पुरुष की तरह भारतीय पुरुष भी लॉन्जरी स्टोर में जाकर अलग-अलग स्टाइल्स के बारे में पूछने से हिचकिचाते हैं. ये बात जल्दी ही लॉन्जिरी स्टोर्स के मालिकों को समझ आ गई. उन्होंने पुरुषों की समस्या को समझते हुए और लॉन्जरीज़ की बिक्री बढ़ाने के लिए एक तरकीब निकाली और हर पैटर्न की बेहतरीन लॉन्जरीज़ को स्टाइलिश ढंग से डिस्प्ले करना शुरू कर दिया. इससे पुरुष डिस्प्ले की गई लॉन्जरीज़ को पसंद कर उसे ख़रीदने लगे. इस तरह पुरुषों की वजह से हुई लॉन्जरी स्टोर्स में लॉन्जरीज़ (अंडरगार्मेन्ट्स) के डिस्प्ले की शुरुआत!
2) कैसे हुआ गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कार?
आजकल बर्थ कंट्रोल पिल्स बहुत कॉमन हो गई हैं. आपने भी कभी न कभी गर्भनिरोधक गोलियों का प्रयोग ज़रूर किया होगा. पर क्या आप जानती हैं कि गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कार किसने किया था? आपको जानकर हैरानी होगी कि गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कार किसी पुरुष ने नहीं, बल्कि एक महिला ने किया है. जी हां, आपको यह जानकर ख़ुशी होगी कि बर्थ कंट्रोल पिल्स का आविष्कार मार्गरेट हिगिन्स सेंगर नामक एक महिला ने किया था. दरअसल, मार्गरेट हिगिन्स सेंगर ख़ुद अपने माता-पिता की ग्यारहवीं संतान थी, इसीलिए शायद उसे गर्भनिरोधक गोलियों की अहमियत अच्छी तरह पता थी. लेकिन आपको यह जानकर दुख होगा कि बर्थ कंट्रोल क्लीनिक चलाने के आरोप में सन् 1917 में मार्गरेट सेंगर को जेल की सज़ा हुई थी.
IVF और गर्भनिरोधक गोलियों का आविष्कारक अमेरिकी बायोलॉजिस्ट और शोधकर्ता ग्रेगोरी गुडविन पिंकस को भी माना जाता है. अमेरिकी बायोलॉजिस्ट और शोधकर्ता ग्रेगोरी गुडविन पिंकस बचपन से ही खोजी स्वभाव के थे, जिसके कारण उन्होंने एक ऐसी कॉट्रासेप्टिव पिल बनाई, जिसकी मदद से महिलाएं गर्भवती होने से बच सकती हैं. ग्रेगोरी की उत्सुकता हार्मोनल चेंज और रिप्रोडक्शन प्रोसेस में होने वाले बदलाव में थी. रिप्रोडक्शन प्रक्रिया को क्या बीच में रोका जा सकता है, क्या गर्भधारण को रोका जा सकता है जैसे सवाल ग्रेगोरी के दिमाग में कौंधते रहते थे. अपने इन्हीं सवालों के जवाब के रूप में ग्रेगोरी गुडविन पिंकस को 1934 में पहली बार इस क्षेत्र में बड़ी कामयाबी मिली, जब खरगोश में विट्रो फर्टिलाइजेशन (IVF) प्रोड्यूस करने में वो कामयाब हुए. ग्रेगोरी ने कम्बाइंड कॉन्ट्रासेप्टिव पिल्स का भी आविष्कार किया. ग्रेगोरी गुडविन पिंकस ने ‘द कंट्रोल ऑफ फर्टिलिटी’ और ‘द एग्स ऑफ मैमल्स’ नाम की किताबें भी लिखीं, जो आज भी इस क्षेत्र में होने वाले शोध में मददगार साबित होती हैं.
3) टीवी सीरियल्स को डेली सोप क्यों कहते हैं?
क्या आप जानते हैं कि जो डेली सोप यानी टेलीविज़न पर आने वाले स्पॉन्सर्ड टीवी प्रोग्राम्स आप इतने लगाव से देखते हैं, उनके नाम की शुरुआत कैसे हुई? आप जो सीरियल टीवी पर देखते हैं, उन्हें आख़िर डेली सोप क्यों कहते हैं? हो गए ना हैरान? चलिए, हम आपकी जिज्ञासा शांत करते हैं और आपके बताते हैं कि आख़िर टीवी सीरियल्स को डेली सोप क्यों कहा जाता है. ये बात बहुत पुरानी है. दरअसल हुआ यूं कि जब यूएसए में ओपेराज़ ने टीवी की दुनिया में अपना पहला क़दम रखा, तो साबुन बनानेवाली यानी सोप कंपनियों में उन्हें स्पॉन्सर करने की होड़-सी लग गई. साबुन बनानेवाली सभी कंपनियां चाहती थीं कि उनका साबुन यानी उनका सोप ओपेराज़ को स्पॉन्सर (प्रायोजित) करे. साबुन कंपनियों की इस होड़ को देखते हुए ओपेराज़ का नाम सोप ओपेरा पड़ गया. मज़ेदार बात यह है कि आज भी ऐसे टेलीविज़न के कार्यक्रमों को स्पॉन्सर करने में सोप कंपनीज़ ही आगे हैं. हालांकि आज टेलीविज़न प्रोग्राम्स को कई अन्य कंपनियां भी स्पॉन्सर करती हैं, लेकिन आज भी टीवी पर आने वाले प्रोगाम को डेली सोप ही कहा जाता है. तो है ना ये सोप ओपेरा की दिलचस्प कहानी!
4) कैसे हुई पोटैटो चिप्स की शुरुआत?
क्या आप जानते हैं कैसे हुई पोटैटो चिप्स की शुरुआत? नहीं ना… चलिए, हम आपको बताते हैं पोटैटो चिप्स के आविष्कार की दिलचस्प कहानी. आपको जानकर हैरानी होगी कि पोटैटो चिप्स का अविष्कार सोच-समझकर नहीं किया गया. दरअसल, पोटैटो चिप्स का अविष्कार एक ग़लती के कारण हुआ. आख़िर क्या थी ये ग़लती और कैसे हुई पोटैटो चिप्स की शुरुआत? आइए, हम आपको बताते हैं. हुआ यूं कि न्यूयॉर्क के एक होटल में एक मेहमान ने फ्रेंच फ्रायड पोटैटो का ऑर्डर दिया. जब उसे डिश परोसी गई तो उसने यह कहते हुए डिश को वापस किचन में भेज दिया कि आलू के स्लाइसेज़ बहुत मोटे हैं. शेफ़ को यह बात लग गई, उसने इसे एक चुनौती की तरह लेते हुए कहा कि अब मैं तुम्हें आलू की बहुत पतली स्लाइसेज़ दूंगा. दूसरी बार उसने आलू को बहुत पतला-पतला काटकर भेजा. इस बार उस मेहमान को वह डिश बेहद पसंद आई. इस बात से प्रभावित होकर होटल ने उस नई डिश को अपने रेग्युलर मेनू कार्ड में स्थान दे दिया. धीरे-धीरे कई होटलों के रेग्युलर मेनू में इसे जगह मिल गई. पोटैटो चिप्स की क़ामयाबी का आलम यह है कि आज विश्वभर में अरबों डॉलरों की पोटैटो चिप्स इंडस्ट्रीज़ हैं.
5) कैसे हुआ स्कूटर का आविष्कार?
क्या आप जानते हैं हमारी ज़िंदगी को आसान बनाने वाले स्कूटर कैसे बने? आपको यह जानकर आश्चर्य होगा कि स्कूटर का निर्माण ख़ासतौर पर लेडीज़ यानी महिलाओं के लिए किया गया था. वैसे तो स्कूटर के आविष्कार के बारे में अनेक कहानियां हैं, लेकिन स्कूटर के निर्माण से जुड़ी एक कहानी के अनुसार, स्कूटर का आविष्कार विश्व युद्ध के दौरान हुआ. विश्व युद्ध के समय पुरुष मोटर साइकिल का इस्तेमाल धड़ल्ले से कर रहे थे. युद्ध में बहुत से पुरुषों को जान से हाथ धोना पड़ा. धीरे-धीरे पुरुषों की संख्या घटने लगी. परिणामस्वरूप मजबूरी में महिलाओं को युद्ध के मैदान में उतरना पड़ा. ज़ाहिर है, उन्हें आने-जाने के लिए सवारी की ज़रूरत महसूस हुई, लेकिन महिलाओं को मोटर साइकिल चलाने में काफ़ी दिक़्क़त आ रही थी, क्योंकि मोटर साइकिल चलाने के लिए उन्हें दोनों पैरों को फैलाना पड़ता था. महिलाओं की असुविधा को ध्यान में रखकर स्कूटर का निर्माण किया गया, ताकि वे आसानी से युद्ध में भाग ले सकें.
एक रिपोर्ट के अनुसार भारत की 14 प्रतिशत महिलाएं टू व्हीलर चलाना जानती हैं और पिछले 10 सालों में टू व्हीलर चलाने वाली महिलाओं में 50 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी हुई है. इसकी सबसे बड़ी वजह है भारत में कामकाजी महिलाओं की संख्या का तेज़ी से बढ़ना. आज की कामकाजी महिलाएं ऑफिस जाने से लेकर बच्चों को स्कूल लाने-ले जाने, मार्केट से समान लाने आदि काम के लिए पति की बाइक या कार का इंतज़ार किए बिना ख़ुद स्कूटी चलाना पसंद कर रही हैं. महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने और उनके काम समय पर पूरा करने में उनकी स्कूटी का बहुत बड़ा योगदान है. स्कूटी के लिए महिलाओं का क्रेज़ देखते हुए अब बाइक कंपनियां महिलाओं की पसंद और सहूलियत को देखते हुए स्कूटी तैयार कर रही हैं.
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