जी हां, पहलवानी के दांव-पेंच से तो वो हमारा दिल जीत ही चुके हैं, ऐसे में समाज व खेल से जुड़े मुद्दों पर भी अपने बेबाक अंदाज़, अपनी राय और अपनी बात खुलकर कहने का जिगर रखनेवाले 2012 के लंदन ओलिंपिक्स के ब्रॉन्ज़ मेडलिस्ट (60 कि. ग्रा. फ्रीस्टाइल कुश्ती) योगेश्वर दत्त ने हमें अपना समय दिया, हमसे बात की. तो जानते हैं उन्हें और क़रीब से. खेल के बारे में वो क्या सोचते हैं, उन्हीं से पूछते हैं.
वैसे भी जनवरी से प्रो रेसलिंग लीग फिर शुरू होने जा रही है, जहां दुनियाभर के बेहतरीन पहलवानों का जमावड़ा लगेगा और आपको देखने को मिलेंगे उनके लाजवाब दांव-पेंच. जल्द ही इसका ऑक्शन भी होगा. ऐसे में भारत के फेवरेट योगेश्वर दत्त (Yogeshwar Dutt) क्या कहते हैं पहलावानी व प्रो रेसलिंग लीग के बारे में, यह जानना भी दिलचस्प होगा.
योगी सर सबसे पहले तो कॉन्ग्रैचुलेशन्स आपकी एंगेजमेंट के लिए.
जी बहुत-बहुत धन्यवाद आपका.
बात रेसलिंग की करें, तो रेसलिंग का फ्यूचर कैसा है भारत में?
रेसलिंग का फ्यूचर बहुत ही अच्छा है, क्योंकि पिछले कुछ समय में, ख़ासतौर से 10-15 सालों में रेसलिंग काफ़ी बढ़ी है, क्योंकि लगातार 3 ओलिंपिक्स में मेडल आना कुश्ती से, यह बहुत बड़ी बात है.
जिस तरह की सुविधाएं कुश्ती को मिलती हैं, इसमें सुधार की कितनी गुंजाइश है?
हमें सुविधाएं तो पहले से ही काफ़ी अच्छी मिलती हैं, लेकिन आज भी ग्रास रूट पर काम करने की बेहद ज़रूरत है, क्योंकि खिलाड़ी गांव-देहात से ही निकलते हैं और वहां पर इतनी सुविधाएं नहीं हैं. सरकार कोशिश में लगी हुई है, पर आज भी वो सुविधाएं नहीं हैं, जो होनी चाहिए और जब तक ज़मीनी स्तर पर हम मज़बूत नहीं होंगे, तब तक वो नहीं हो पाएगा या उस तरह के परिणाम नहीं आएंगे, जैसा हम चाहते हैं. ऐसे में स्कोप उतना नहीं होगा, जितना हम अपेक्षा रखते हैं. ग्रास रूट मज़बूत होगा, तो अपने आप प्रतिभाएं निकलकर आएंगी और चाहे ओलिंपिक हो या वर्ल्ड चैंपियनशिप हमारे मेडल बढ़ेंगे.
आप लोग विदेशी प्लेयर्स के साथ खेलते हैं, तो उनमें और हम में क्या कुछ फ़र्क़ पाते हैं? चाहे फिटनेस हो या तकनीक?
विदेशी या इंटरनेशनल पहलवान जो होते हैं, तो कम वेट कैटेगरी में तो हम में कोई फ़र्क़ नहीं है, चाहे पावर हो, टेकनीक हो या फिटनेस हम सब समान हैं, क्योंकि हमारे पास 2003 से जॉर्जिया कोच हैं और उनके आने के बाद काफ़ी कुछ बदला है. हमारी परफॉर्मेंस भी बेहतर हुई है. हां, जहां तक ज़्यादा वेट कैटेगरी का सवाल है, तो वहां पावर में थोड़ा 19-20 हो जाता है, लेकिन अब वो भी दूर हो रहा है, क्योंकि अब हर पहलवान का लक्ष्य यही है कि ओलिंपिक में मेडल लाना है, जिससे वो अधिक फोकस्ड हो गए हैं. मन में जब एक लक्ष्य हासिल करने की ठान ही ली है, तो इससे सोच बदल गई है और इसी से हमें बहुत फ़ायदा मिलेगा.
आप अपनी फिटनेस के लिए क्या ख़ास करते हैं?
फिट रहने के लिए मेहनत तो बहुत ज़रूरी है ही, पर मैं डेली 5 स्टैंडर्ड ट्रेनिंग करता हूं. अलग-अलग दिन अलग शेड्यूल है हमारा. सुबह कभी गेम होता है, कभी क्रॉस कंट्री, तो कभी वेट ट्रेनिंग होती है. शाम को डेली मैट करते हैं. हफ़्ते में दो दिन- मंगलवार व शुक्रवार को दोनों टाइम मैट होता है हमारा.
डायट में क्या ख़ास ख़्याल रखते हैं? आपका मनपसंद खाना क्या है?
खाने में तो ऐसी कोई चॉइस नहीं है, कुछ भी मिल जाए, वही खा लेता हूं. घर का खाना खाता हूं, प्योर वेजीटेरियन हूं. मम्मी के हाथ के परांठे अच्छे लगते हैं और भिंडी की सब्ज़ी भी पसंद है.
जो युवा कुश्ती में अपना फ्यूचर देखते हैं, उन्हें क्या टिप्स देना चाहेंगे?
जो युवा कुश्ती में अपना भविष्य तलाश रहे हैं, तो उन्हें अपना लक्ष्य बड़ा रखना चाहिए, उसी पर फोकस करना चाहिए, जिसके लिए बहुत ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत होती है और यह मेहनत करनी ही चाहिए. क्योंकि मेहनत के बिना कुछ हासिल नहीं होगा, इसलिए अपना मक़सद बड़ा बनाइए. ओलिंपिक्स हो या वर्ल्ड चैंपियन बनना हो उसके लिए जी-जान से जुट जाना चाहिए.
प्रो रेसलिंग लीग ने रेसलिंग को और भी पॉप्युलर किया है व खेल को बढ़ावा भी मिला है, इस बारे में कुछ और बताना चाहेंगे?
प्रो रेसलिंग का पहला सीज़न लोगों द्वारा काफ़ी पसंद किया गया था और पिछली बार 6 टीम्स थीं, जिससे नए खिलाड़ियों को भी मौक़ा मिला और अपने घर में ही अंतरराष्ट्रीय स्तर का माहौल मिला, जिसका बहुत फ़ायदा हुआ. पूरे देश ने देखा, पहलवानों ने भी पसंद किया. कुश्ती पॉप्युलर हुई है लीग से. हालांकि कुश्ती में ओलिंपिक्स में जब से मेडल आने लगे, तो यह लोगों की पहली पसंद बन गई है, लेकिन लीग से सबसे बड़ा फ़ायदा यह हुआ कि जूनियर पहलवानों को भी अलग पहचान मिली है. विदेशी व इंटरनेशनल प्लेयर्स के साथ खेलने से उन्हें एक्सपोज़र भी मिला है.
अन्य खेलों के मुकाबले कुश्ती पॉप्युलर तो बहुत हुई है, लेकिन क्या इसमें उतना पैसा व सुविधाएं भी बढ़ी हैं?
अन्य खेलों से कंपेयर नहीं कर सकते, लेकिन यह है कि आज के टाइम में माहौल बहुत अच्छा है गेम के लिए, क्योंकि देश में इसे काफ़ी पसंद किया जाता है. जहां तक पैसों की बात है, तो उसकी भी कमी नहीं है. जो देश में दंगल होते हैं, उसमें काफ़ी अच्छा पैसा मिलता है.
बात अगर ओलिंपिक्स की करें, तो इस बार क्या वजह थी कि जो प्लेयर्स ख़ासतौर से विदेशी प्लेयर्स भी, आपकी टेकनीक के कायल थे या आपके फैन्स को भी ऐसा लग रहा था कि शायद कोई सायकोलॉजिकल प्रेशर था कि आप वो परफॉर्मेंस नहीं दे पाए, तो इसके लिए अपने फैन्स को कुछ कहना चाहेंगे?
जहां तक रियो की बात है, तो इस बार परफॉर्मेंस अच्छी नहीं रही. मेहनत बहुत ज़्यादा की थी. मैं सफ़ाई नहीं दे सकता, क्योंकि मैं हार गया था, लेकिन बस वो मेरा दिन नहीं था. मेरी परफॉर्मेंस ख़राब रही थी, लेकिन अब इस नकारात्मक भाव को ही लेकर मैं आगे नहीं चल सकता या मैं उसी के बारे में सोच-सोच के उस दुख के साथ नहीं रह सकता कि कैसे और क्यों हो गया… लेकिन आगे यही कोशिश करूंगा कि ऐसी कुश्ती, इतनी ख़राब कुश्ती मैं कभी न लड़ूं, क्योंकि मेरी आज तक की सबसे ख़राब कुश्तियों में से उसे कह सकते हो आप. ऐसी कुश्ती मैं कभी लड़ा ही नहीं. मुझे नहीं पता कि वो क्या था, क्या नहीं था. मैं ख़ुद समझ नहीं पाया कि कैसे इतनी ख़राब परफॉर्मेंस हो गई थी, लेकिन अब मैं यही चाहता हूं कि उस चीज़ को भूलकर आगे बढ़ा जाए, आगे की तैयारी करूं, जिससे 2017 में वर्ल्ड चैंपियनशिप है और 2018 में कॉमनवेल्थ गेम्स में अच्छा कर सकूं.
मेरे जो फैन हैं, वो इस हार के बाद भी मेरे साथ थे और आगे भी मेरे साथ खड़े रहेंगे, क्योंकि वो मुझे बहुत प्यार करते हैं. उनसे यही कहूंगा कि दुखी न हों, मैं आगे की अपनी परफॉर्मेंस से उनकी सभी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का पूरा प्रयास करूंगा.
आपके मेडल अपग्रेडेशन को लेकर जो आपने स्टैंड लिया, उसको काफ़ी सराहना मिली, तो इससे पता चलता है कि आप एक समझदार व सुलझे हुए इंसान हैं, तो कितना ज़रूरी होता है कि इतने बड़े प्लेयर को अपनी ज़मीन से जुड़े रहना?
जो रशियन पहलवान सिल्वर जीता था, उसकी रोड एक्सिडेंट में मौत हो चुकी थी, ऐसे में उसके परिवार के पास स़िर्फ उसकी यादें ही थीं, इसलिए मुझे यही लगा कि उसकी चीज़ें उसकी सौग़ात के रूप में उसके परिवार के पास ही रहें. किसी की मौत के बाद उसकी यादें ही तो परिवार के पास रह जाती हैं, तो मैं वो उनसे नहीं छीन सकता था.
मेरा यही मानना है कि खिलाड़ी हो या कोई भी, इंसान को हमेशा ज़मीन से जुड़े रहना चाहिए. हमें यह नहीं भूलना चाहिए कि हम कहां से निकलकर आए हैं, हमारी कौन-सी जगह है और लोगों ने हमें यहां तक पहुंचाया है. उन्होंने इतना मान-सम्मान दिया, तभी हम यहां तक आ पाए हैं. इन बातों को कभी नहीं भूलना चाहिए.
आप समाज व स्पोर्ट्स से जुड़े मामलों में भी खुलकर स्टैंड लेते हैं, जबकि कुछ स्पोर्ट्समैन ऐसा नहीं करते. आपके इसमें पॉज़िटिव-नेगिटिव कमेंट्स भी मिलते हैं, तो क्या इससे आपका हौसला टूटता है या अन्य प्लेयर्स को भी स्टैंड लेना चाहिए इन सब मामलों में?
सबके अपने विचार होते हैं. सबका अपना सोचने का नज़रिया होता है, बोलने का तरीक़ा होता है. मुझे जब लगता है कि यह ग़लत है, तो चाहे वो कोई भी मुद्दा हो, मैं उसके लिए बोलता हूं और जो नहीं बोलता वो उसका अपना नज़रिया है. सबका स्वभाव अलग होता है, कोई बोलना पसंद करता है, कोई चुप रहना पसंद करता है. मेरा यह मानना है कि मुझे जो ठीक नहीं लगता, उसके ख़िलाफ़ आवाज़ उठाता हूं, फिर चाहे वो खेल की बात हो या देश की, क्योंकि सबसे पहले हम हिंदुस्तानी हैं और अपने देश के लिए मैं समझता हूं कि बोलना चाहिए. यह हमारा फ़र्ज़ बनता है.
इसके बाद निगेटिव कमेंट भी मिलते हैं, तो मैं उसके बारे में नहीं सोचता, क्योंकि ये ज़िंदगी का हिस्सा है. किसी को भी, किसी की हर बात अच्छी नहीं लगती, पर अगर आप यह सोचकर कि कोई क्या बोलेगा, अपनी बात नहीं कहेंगे, तो ये भी ग़लत है. जिस मुद्दे पर आपको यह लगे कि हां, मुझे बोलना चाहिए, तो बोलना ही पड़ेगा और मैं बोलता हूं. ऐसे में मैं किसी की परवाह नहीं करता कि कोई मेरे बारे में क्या कहेगा.
इस बार प्रो रेसलिंग लीग की तैयारी कैसी है?
इस बार मैं प्रो रेसलिंग में शायद नहीं खेलूंगा, क्योंकि उसी समय मेरी शादी होनेवाली है. मैं नहीं चाहूंगा कि मैं बीच में सीरीज़ को छोड़ूं, क्योंकि पिछली बार भी 4 कुश्ती के बाद ही मेरी नी में फिर दर्द उभर आया था, जिस वजह से मैं बीच से हटा था… और मुझे बीच से हटना पसंद नहीं है. इसलिए मैं सोचता हूं कि उसमें हिस्सा ही न लूं.
शुक्रिया अपना समय देने के लिए. आपके फ्यूचर के लिए ऑल द बेस्ट और आपकी शादी के लिए हमारी शुभकामनाएं!
बहुत-बहुत धन्यवाद आपका. थैंक्यू.
– गीता शर्मा
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