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फादर्स डे स्पेशल: सख़्त होती मॉम- कूल होते पापा (Fathers Day Special: Strict Mom And Cool Dad)

आज की वर्किंग मॉम घर-बाहर की दोहरी ज़िम्मेदारी निभाते-निभाते जहां बच्चों के प्रति सख़्त हो गई है, वहीं बच्चों के प्रति पुरुषों का व्यवहार कूल होता जा रहा है. आज के पापा अपने बच्चों के प्रति पहले के मुक़ाबले बहुत संवेदनशील हो गए हैं. नए ज़माने के पापा अपने बच्चों की नैपी भी बदलते हैं और उन्हें लोरी भी सुनाते हैं, उन्हें स्कूल छोड़ने भी जाते हैं और उनका होमवर्क भी कराते हैं. फादर्स डे के ख़ास मौ़के पर आइए नए ज़माने के कूल पापा को और क़रीब से जानते हैं.

यदि आप कुछ समय पहले के पापा के बारे में सोचेंगे, तो आपको एक ऐसा पुरुष नज़र आएगा, जो अपने परिवार के लिए दिन-रात मेहनत तो करता था, लेकिन उनके सामने अपनी भावनाएं खुलकर व्यक्त नहीं कर पाता था. वो बच्चों की ज़रूरतें तो पूरी करता था, लेकिन उनके साथ हंसी-मज़ाक करने से कतराता था. इसकी सबसे बड़ी वजह थी समाज का दबाव. कुछ समय पहले तक यदि पुरुष अपने बच्चों के साथ घुल-मिल जाता, तो उसे ये ताने सुनाए जाते कि ज़्यादा लाड़-प्यार से बच्चे बिगड़ जाते हैं. यदि वो अपने परिवार के सामने भावुक हो जाता, तो उसे ये कहकर झिड़क दिया जाता कि क्या औरतों की तरह रोता है. तब के पुरुषों पर अपने परिवार के लिए रोज़ी-रोटी जुटाने का इतना दबाव होता था कि वो अपनी ख़ुशियों के बारे में कभी सोच ही नहीं पाते थे. परिवार भी बाहर से सख़्त दिखनेवाले पिता के कोमल मन को समझने की कोशिश नहीं करता था. बच्चों के सारे सीक्रेट्स, सारी नादानियां, तमाम शैतानियां स़िर्फ मां के हिस्से आती थीं, पिता के हिस्से स़िर्फ ज़िम्मेदारियों का बोझ ही आता था.

किन वजहों ने बनाया पिता को सख़्त?
पहले पिता की छवि कठोर और अनुशासन प्रिय इंसान की ही होती थी. पिता परिवार का मुखिया होता था, दिनभर घर से बाहर रहता था, इसलिए बच्चे अपनी मां की तरह पिता के क़रीब नहीं आ पाते थे. पिता को इस बात की चिंता रहती थी कि उनकी संतान ज़िंदगी के कठोर सफ़र को बख़ूबी तय कर पाएगी या नहीं, इसलिए वे बच्चों के साथ हमेशा सख़्ती से पेश आते थे.

* सामाजिक दबाव
कुछ समय पहले तक पुरुषों पर एक तरह का सामाजिक दबाव होता था. यदि कोई पिता अपने बच्चे को नहला दे या उसके कपड़े बदल दे, तो उसे यह कहकर टोक दिया जाता था कि ये तुम्हारा काम नहीं है. ऐसे में पुरुष चाहकर भी अपने बच्चों की केयर नहीं कर पाते थे. अपने कमरे में भले ही कई पुरुष बच्चों की देखभाल करते रहे होंगे, लेकिन बाहर ऐसा करने में उन्हें हिचक महसूस होती थी.

* आर्थिक दबाव
पहले परिवार में स़िर्फ पुरुष ही घर से बाहर पैसे कमाने जाते थे, इसलिए उन पर परिवार के पालन-पोषण का दबाव रहता था. तब के पुरुष आज की तरह अपने पहनावे या ग्रूमिंग पर भी बहुत ध्यान नहीं देते थे. इसके साथ ही उस समय एक या दो बच्चों का चलन नहीं था. ज़्यादा बच्चे होने के कारण पुरुष पर पैसे कमाने का दबाव आज के मुक़ाबले कहीं ज़्यादा था.

* पारिवारिक दबाव
पहले परिवार में पुरुषों को सारे अधिकार प्राप्त थे, इसलिए घर में उनका ही हुकुम चलता था. बच्चों की परवरिश के दौरान ही बेटा-बेटी में इतना ज़्यादा भेदभाव किया जाता था कि लड़कियों का स्वभाव बचपन से ही डरा-सहमा हो जाता था. इस सोच के चलते पुरुष परिवार में अपना रौब बनाए रखने के लिए बच्चों से भी एक निश्‍चित दूरी बनाए रखते थे.

* बेटियों से रखी जाती थी दूरी
पहले के पिता बेटे को तो फिर भी डांट-डपट देते थे, लेकिन बेटियों से एक निश्‍चित दूरी बनाकर रखते थे. महिलाओं के लिए जारी पर्दा प्रथा उनके पिता पर भी लागू होती थी. यही वजह थी कि तब कोई पिता सार्वजनिक रूप से अपनी बेटी को गले नहीं लगा पाता था या उसे दुलार नहीं कर पाता था. तब पिता और बेटी दोनों ही अपनी भावनाओं को दबाए रखते थे और अपनी भावनाओं को खुलकर व्यक्त नहीं कर पाते थे.

पिता को कूल बनानेवाले कारण
पुरुष को सख़्त बनानेवाले समाज में बदलाव की कई वजहें हैं, जिनमें सबसे प्रमुख है संयुक्त परिवार का एकल परिवार में बदल जाना.

* एकल परिवार ने बदली पापा की छवि
पहले संयुक्त परिवार में बच्चों की देखभाल की चिंता नहीं रहती थी. घर के सारे बच्चों को एक जैसा प्यार और परवरिश मिलती थी. समय के साथ लोग रोज़ी-रोटी की तलाश में गांव से शहर आने लगे और संयुक्त परिवार एकल होने लगे. एकल परिवार में पुरुष को अपने बच्चों के क़रीब रहने का मौक़ा मिला और बच्चों के प्रति उनकी छवि भी बदलने लगी. तब पुरुष बच्चों के प्रति अपना प्यार खुलकर व्यक्त करने लगे और बच्चे भी अपने पापा से घुलने-मिलने लगे.

* मां की भूमिका भी निभाने लगे हैं पापा
बदलती सोच और बढ़ती महंगाई ने धीरे-धीरे महिलाओं को आर्थिक आत्मनिर्भरता के लिए प्रेरित किया और महिलाओं की आत्मनिर्भरता ने पुरुषों को थोड़ा और बदल दिया. आज के पापा ये बात अच्छी तरह जानते हैं कि यदि उनकी बीवी घर पर नहीं है, तो उन्हें मां की भूमिका निभाते हुए बच्चों की तमाम ज़िम्मेदारियां निभानी हैं. मां की अनुपस्थिति में आज के पापा बच्चों को पढ़ाने, उनके साथ खेलने से लेकर घर के सभी काम भी करने लगे हैं.

* भावनाएं व्यक्त करने लगे हैं पुरुष
पहले के पापा अपनी कठोर छवि को बरक़रार रखने के लिए बच्चों के सामने कभी कमज़ोर नहीं पड़ते थे, लेकिन अब ऐसा नहीं है. आज के पापा बच्चों के सामने अपनी हर भावना व्यक्त करते हैं. वो बच्चों के सामने अपनी हार भी स्वीकार करते हैं और उनके सामने रो भी देते हैं, जिसके चलते उनका अपने बच्चों के साथ रिश्ता और मज़बूत बनने लगा है.

इसलिए सख़्त हो रही हैं मॉम
पहले जिस तरह पुरुष घर से बाहर रहने के कारण अपने बच्चों को लेकर ज़्यादा प्रोटेक्टिव और सख़्त हुआ करते थे, वैसे ही अब महिलाएं होने लगी हैं. वर्किंग मदर्स को इस बात की चिंता रहती है कि उनके घर से बाहर रहने के कारण कहीं उनके बच्चे बिगड़ न जाएं, इसलिए वो अपने बच्चों के साथ सख़्ती बरतने लगी हैं. लेकिन मां की सख़्ती की भरपाई अब नए ज़माने के पापा करने लगे हैं. आज के कूल पापा बच्चों के साथ हर बात शेयर करते हैं, उनके साथ खेलते हैं, उनका होमवर्क कराते हैं. मां और पिता की बदलती भूमिका बच्चों को पिता के और क़रीब ला रही है.
– कमला बडोनी

Kamla Badoni

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