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कन्या भ्रूण हत्या ( Female Foeticide)

सदियां बदल रही हैं, लेकिन बेटियों को लेकर हमारी सोच अब तक नहीं बदली. तकनीकी विकास हुआ और उस विकास का प्रयोग (दुरुपयोग) भी हमने गर्भ में पल रही बेटी की हत्या के लिए ही करना बेहतर समझा. अगर नारी विहीन समाज की चाह है, तो परिवार व शादी जैसी प्रथाएं बंद ही कर दें. मात्र बेटे की चाह तो इसी ओर इशारा करती है.

 


एबॉर्शन सेंटर्स के बाहर इस तरह के विज्ञापन चौंका देते हैं- 500 ख़र्च करो और 50,000 बचाओ… जिसका अर्थ है कि गर्भ में कन्या है, तो 500 में गर्भपात करवा लो और उसके दहेज के 50,000 बचा लो.

* जहां तक गर्भपात की बात है, तो गर्भपात ग़ैरक़ानूनी नहीं है, लेकिन सेक्स सिलेक्टिव एबॉर्शन अपराध है.

* मेडिकल टर्मिनेशन ऑफ प्रेग्नेंसी एक्ट 1971 में बनाया गया और 2003 में यह सोचकर इसमें संशोधन किया गया कि महिलाओं की सेहत पर  नकारात्मक प्रभाव नहीं पड़ेगा और अनसेफ एबॉर्शन्स की संख्या भी कम होगी. लेकिन आज भी हक़ीक़त यही है कि अनसेफ एबॉर्शन्स की संख्या घट  नहीं रही.

* हैरानी की बात यह है कि कन्या भ्रूण हत्या उन राज्यों और शहरों के उन हिस्सों में सबसे अधिक होती है, जहां आर्थिक रूप से अधिक संपन्न व सो  कॉल्ड पढ़े-लिखे लोग यानी एलीट क्लास के लोग रहते हैं.

* इंडियन पीनल कोड के अंतर्गत एबॉर्शन करवाना, यहां तक कि ख़ुद महिला द्वारा अपनी मर्ज़ी से भी एबॉर्शन करवाना अपराध है, यदि वो महिला की  जान को बचाने के लिए न किया गया हो.

* इसमें तीन साल तक की कैद या जुर्माना या फिर दोनों ही हो सकता है.

* इसी तरह गर्भस्थ शिशु का लिंग परीक्षण भी अपराध है, जब तक कि डॉक्टर निश्‍चित न हो कि महिला के शारीरिक या मानसिक स्वास्थ्य के  मद्देनज़र गर्भपात ज़रूरी है.

कहां है रौशनी की किरण?

* लोगों को जागरूक करने के लिए सरकार द्वारा ङ्गबेटी बचाओफ अभियान चलाया गया, जिसमें पेंटिंग्स, विज्ञापनों, पोस्टर्स, एनिमेशन और वीडियोज़ द्वारा कोशिशें की गईं. इस अभियान को इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के साथ-साथ कई मेडिकल संस्थाओं ने समर्थन व सहयोग दिया.

* इस अभियान का असर कहीं-कहीं नज़र भी आया. गुजरात में वर्ष 2009 में 1000 लड़कों के मुक़ाबले लड़कियों की जन्म संख्या 802 से बढ़कर 882  हो गई थी.

* इन सबके बावजूद हालात ये हैं कि जब महिलाओं से इस विषय में पूछा जाता है, तो वो झल्लाकर यही कहती हैं कि कैसा क़ानून और किस तरह का  समाज… सच्चाई तो यह है कि जब हम बेटियों को जन्म देती हैं, तो यही समाज हमें हिकारत की नज़रों से देखकर ताने देता है. हमें हर जगह कमतर  बताया जाता है. रिश्तेदारों से लेकर पति तक तानों से छलनी कर देते हैं. फिर हम क्यों बेटियों को जन्म दें, ताकि वो भी हमारी ही जैसी ज़िंदगी जीने  को मजबूर हों?

* महिलाओं द्वारा उठाए ये तमाम सवाल दरअसल हमारे सामाजिक ढांचे पर तमाचा हैं, जिसमें महिलाओं को दोयम दर्जे का ही माना जाता है. अगर  बीवी कमाती है, तो उसे एक्स्ट्रा इन्कम माना जाता है, पढ़ी-लिखी लड़कियां इसलिए डिमांड में हैं कि वो पति के स्टेटस को मैच करने के साथ-साथ  बच्चों की परवरिश बेहतर कर पाएंगी, उनका होमवर्क करवा पाएंगी आदि.

* दूसरी तरफ़ पढ़ी-लिखी लड़कियों के साथ यह भी समस्या आती है कि दहेज अधिक देना पड़ता है, क्योंकि उनके लिए लड़के भी अधिक पढ़े-लिखे  ढूंढ़ने होते हैं.

* अख़बारों के मैट्रिमोनियल कॉलम में भी आसानी से ऐसी दोहरी मानसिकता के दर्शन हो सकते हैं, जिसमें लिखा होता है- चाहिए गोरी, सुंदर, लंबी,  पढ़ी-लिखी, घरेलू व संस्कारी लड़की. यानी घरेलू व संस्कारी लड़की वो, जो घर के सारे काम भी करे और अपने अधिकारों के लिए आवाज़ भी न उठाए.

* जब इस तरह की मानसिकता वाले समाज में हम जी रहे हैं, तो पैरेंट्स को यही लगता है कि लड़की का जन्म यानी ढेर सारा ख़र्च और मुसीबत.

* इन समस्त समीकरणों के बीच ख़ुद लड़कियों को ही अपनी रक्षा का बीड़ा उठाना होगा. अपने लक्ष्य बदलने होंगे और उसी से समाज की दशा व दिशा  भी बदलेगी.

* शादी, परिवार और समाज की घिसी-पिटी परंपराओं से ऊपर उठकर अपने अस्तित्व को देखना होगा और सबसे ज़रूरी है कि आवाज़ उठानी होगी.

* कोई ज़बर्दस्ती गर्भपात करवाता है, तो आवाज़ उठाएं, फिर सामने भले ही सास-ससुर, मां-बाप या अपना पति ही क्यों न खड़ा हो. क़ानून बने हैं,  उनका उपयोग नहीं करेंगे, तो व्यवस्था नहीं बदलेगी.

कहां से मिल सकती है मदद?

* इंडियन वुमन वेलफेयर फाउंडेशन (IWWF) वेबसाइट:
www.womenwelfare.org
यहां आपको लीगल असिस्टेंस भी मिलेगा और आप ऑनलाइन अपनी शिकायत भी दर्ज करवा सकती हैं.

* जागृति नामक संस्था भी वुमन एंपावरमेंट के लिए काम करती है. संस्था द्वारा कन्या भ्रूण हत्या के ख़िलाफ़ भी काफ़ी अभियान किए गए हैं.
फोन: 0836-2461722
वेबसाइट: www.jagruti.org

* नेशनल कमिशन फॉर प्रोटेक्शन ऑफ चाइल्ड राइट्स (NCPCR), नई दिल्ली- फोन: 011-23478200
फैक्स: 011-23724026
कंप्लेन के लिए: 011-23724030
ईमेल: Complaint.ncpcr@nic.in,
complaints.ncpcr@gmail.com

 

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