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सर्वगुण संपन्न बनने में खो न दें ज़िंदगी का सुकून (How Multitasking Affects Your Happiness)

 

 

सर्वगुण संपन्न बनने में खो न दें ज़िंदगी का सुकून (How Multitasking Affects Your Happiness)

परफेक्ट बनने की चाह हर किसी की होती है, ख़ासकर महिलाओं की. लेकिन क्या कभी आपने ग़ौर किया है कि ख़ुद को सर्वगुण संपन्न साबित करने की चाह में आप अपना चैन-सुकून भी खोती जा रही हैं. इसी पहलू पर एक नज़र डालते हैं.

अरे, सुनती हो मेरा रूमाल नहीं मिल रहा.” रवि की आवाज़ पर सीमा दौड़कर गई और उसके हाथों में रूमाल पकड़ा आई. केवल इतना ही नहीं, बल्कि सास-ससुर की चाय और दवाइयां, चिंटू का टिफिन, बैंक और बाज़ार के काम और न जाने क्या-क्या सीमा करती रहती है और अपने घर को परफेक्ट रखती है. सभी रिश्तेदारों में वह चहेती है. सीमा की सास कहते नहीं थकती कि उनकी बहू तो सर्वगुण संपन्न है.

स़िर्फ सीमा ही क्यों ऐसी कई महिलाएं हैं, जो हर जगह परफेक्ट रहना चाहती हैं. इसमें कोई बुराई भी नहीं है, पर साथ ही यह ध्यान रखना भी ज़रूरी है कि जीवन की हर कमान को संभालते-संभालते कहीं आपकी कमान आपके हाथ से छूट तो नहीं गई. इसका अर्थ है कि कहीं इस सर्वगुण संपन्नता के प्रमाणपत्र की क़ीमत आपका अपना व्यक्तित्व या आपका स्वास्थ्य तो नहीं.

सर्वगुण संपन्न से जुड़ी कुछ भ्रांतियां

महिलाएं तो मल्टीटास्किंग होती हैं… यह जुमला आपको गाहे-बगाहे सुनने मिल जाएगा, फिर वह ऑफिस हो या घर. और विडंबना यह है कि इस तथ्य को बतानेवाली अमूमन कोई स्त्री ही होती है. मल्टीटास्किंग का मतलब बहुत ग़लत लगाया जाता है. इसका मतलब अपने आप को सुबह से शाम तक कामों के बोझ तले दबा लेना नहीं होता या फिर एक साथ कई काम करना भी नहीं होता है. मल्टीटास्किंग का मतलब होता है कुछ कामों को एक साथ स्मार्ट तरी़के से करना, जिससे समय और ऊर्जा की बचत हो. इसका स्त्री और पुरुष से कोई लेना-देना नहीं है. अतः मल्टीटास्किंग के नाम पर सर्वगुण संपन्नता की प्रतिस्पर्धा ग़लत है.

किसी काम के लिए ना कहना असमर्थता का प्रमाण है

यह भी एक भ्रांति है कि अगर आपने घर में या ऑफिस में किसी को कोई काम करने से मना कर दिया, तो वह आपकी कमी होगी. साथ ही सामनेवाला नाराज़ हो जाएगा. इस कशमकश में हम कई ऐसे काम कर जाते हैं, जिनकी या तो ज़रूरत नहीं होती या जो हमारी सामर्थ्य के बाहर होता है. कोई भी काम या ज़िम्मेदारी तभी उठाएं, जब वह आवश्यक हो और आपके सामर्थ्य के अंदर हो. इसका सर्वगुण संपन्नता से कोई लेना-देना नहीं है.

जो ख़ुद के लिए कम-से-कम समय निकाले, वही सर्वगुण संपन्न है

हमारे समाज में अगर स्त्री ख़ुद के लिए स्पेस रखती है या अपने लिए कुछ समय निकालती है, तो वह सर्वगुणता के पैमाने पर खरी नहीं उतरती. इस भ्रांति को बदलने की ज़रूरत है. स़िर्फ स्त्री ही नहीं, हर किसी को अपने लिए समय निकालने की आवश्यकता होती है. अपनी ज़िम्मेदारियों को पूरा करते हुए ऐसा करना कोई अपराध नहीं है. समाज या परिवार क्या कहेगा, इस डर से अपनी किसी रुचि या अपने लिए समय निकालना ना छोड़ें.

अगर आपसे सब ख़ुश हैं, तो ही आप सर्वगुण संपन्न हैं

सबको ख़ुश करना मुश्किल ही नहीं असंभव है, लेकिन सर्वगुण संपन्न बनने की चाह में हम हर किसी को ख़ुश करने की कोशिश करते रहते हैं. इसमें पूरी तरह से सफल कम ही हो पाते हैं, साथ ही कई बार निराशा भी हाथ लगती है. इससे अच्छा है कि हम यह कोशिश करें कि हमारी वजह से कोई दुखी ना हो.

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कैसे पहचानें कि सर्वगुण संपन्न बनने की चाहत में आप ख़ुद को खो रही हैं?

अक्सर छोटी छोटी बातें ही हमें किसी बड़े बदलाव का इशारा देती हैं-

*    अगर आपको अपने कामों को पूरा करने के लिए दिनभर का समय कम पड़ता है.

*    समय के साथ आप अपनी पसंद-नापसंद भूलती जा रही हैं.

*    आपकी अपनी कोई हॉबी नहीं है.

*    हमेशा थकान महसूस होती है.

*    अक्सर चिड़चिड़ापन और निराशा होती है.

*    आपके आसपास सब ख़ुश हैं, पर आपको अंदर से ख़ुशी का अनुभव नहीं होता है.

*    हमेशा तनाव और दबाव महसूस होता है.

*    अगर आपके दोस्त या सहेलियां नहीं हैं.

*    आप दिन का कोई भी समय अपने मन मुताबिक़ नहीं बिता पाती हैं.

*    आपको लोगों के बीच अपने अस्तित्व के लिए संघर्ष करना पड़ता है.

समाधान के लिए इन बातों पर ध्यान दें

*    सबसे पहले और ज़रूरी है अपने लिए कुछ क्वालिटी समय निकालना.

*    अपने आसपास कुछ सहेलियां हमेशा रखें.

*    अपनी किसी भी रुचि को जीवित रखें.

*    अगर आप अपने बारे में सोच रही हैं, तो इसके लिए किसी भी प्रकार का अपराधबोध ना रखें.

*    कम-से-कम 15 दिनों में एक बार बाहर घूमने ज़रूर जाएं.

*    अपने बचपन का अलबम, कॉलेज के ज़माने की फोटोज़ ज़रूर देखें.

*    घर में हर किसी की ख़ुशी का ध्यान रखें, पर अपनी ख़ुशी को दांव पर ना लगाएं.

*    घर हो या ऑफिस, कामों को मिल-बांटकर करें. काम करने के लिए किसी की मदद लेने में कोई बुराई नहीं है.

सर्वगुण संपन्न नहीं स्मार्ट बनें

*    सर्वगुण संपन्न होना असल में किसी और के पैमाने पर ख़ुद को सिद्ध करना है.

*    यह तमगा लेने के लिए अपने स्व को खो देने से अच्छा है कि आप स्मार्ट बनें.

*    दिन के चौबीस घंटे का इस्तेमाल चतुराई और पूरी प्लानिंग से करें.

*    अपने रिश्तों में मधुरता बनाएं रखने के लिए किसी बड़े प्रयास की ज़रूरत नहीं है, बल्कि छोटी-छोटी बातों को याद रखें.

*    दिन में थोड़ा समय ख़ुद को ज़रूर दें, फिर चाहे वह योग हो या फिर डांस. तो स्मार्ट बनें और जीवन की हर कमान को कुशलता से संभालें.

 – माधवी कठाले निबंधे

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Geeta Sharma

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