पूजा श्रीवास्तव… उम्र 15 वर्ष… पिछले 12 सालों से उसके अंकल ही उसका यौन शोषण कर रहे थे, लेकिन वो समझ ही नहीं पाई कि उसके अंकल उसके साथ कुछ ग़लत कर रहे हैं तो किसी से शिकायत का सवाल ही नहीं उठता. पर आज जब वह सब कुछ समझने लगी है तो उसे अपने आप पर शर्म आती है और बहुत गिल्ट फील होता है. जिसे वह बचपन में अंकल का स्नेह समझती थी, वो दरअसल सेक्सुअल एब्यूज़ यानी यौन शोषण था.
ये स़िर्फ पूजा की कहानी नहीं है. हमारे देश में रोज़ाना कई बच्चे इस तरह के यौन शोषण के शिकार होते हैं और उससे भी अफ़सोस की बात तो ये है कि वे चुपचाप इस शोषण का शिकार बनते रहते हैं, क्योंकि उन्हें ये भी पता नहीं होता कि उनके साथ जो कुछ हो रहा है, वो ग़लत है. तो शिकायत किस बात की करें?
हमारे देश में बाल यौन शोषण की घटनाएं तेज़ी से बढ़ी हैं और आंकड़ों पर यक़ीन करें तो भारत में बच्चे इसके सबसे ज्यादा शिकार हो रहे हैं. एक सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार भारत में 53% बच्चे सेक्सुअल एब्यूज़ यानी यौन शोषण के शिकार हैं और अधिकतर इस शोषण की रिपोर्ट तक दर्ज़ नहीं कराते…
इन घटनाओं से हर माता-पिता की रातों की नींद गायब हो गई है. हर माता-पिता अपने बच्चे की सुरक्षा को लेकर डरे हुए हैं… गली-मोहल्ले, स्कूल, घर-बाहर आख़िर कहीं भी तो उनका बच्चा सुरक्षित नहीं है. उसके साथ कहीं भी कुछ भी घट सकता है. आख़िर हर व़क़्त बच्चों के साथ साया बनकर तो नहीं चला जा सकता और इस युग में, जबकि माता-पिता दोनों वर्किंग हैं तो ऐसे में हर व़क़्त बच्चे को सुरक्षा देनेवाले माता-पिता होना भी तो बेहद मुश्किल है.
पड़ोस में रहनेवाले शर्मा अंकल 10 वर्षीय सोनू को अकेले में बहला-फुसलाकर उसके प्राइवेट पार्ट्स को सहलाते थे. सोनू ने एक दिन यूं ही बातों-बातों में मां से कहा कि शर्मा अंकल जैसे उसे प्यार करते हैं, वैसे ही उसकी मम्मी क्यों नहीं करती तो मां को सच्चाई का पता चला…
6 ठीं की छात्रा कोमल उस दिन डरी-सहमी घर लौटी और उसकी मां ने पूछा, तो वो रोते हुए बताने लगी कि उसके मैथ्स के टीचर बहुत गंदे हैं. वे होमवर्क चेक करने के बहाने उसके अंगों को छूकर मुस्कुराते हैं. इसलिए उसे मैथ्स का पीरियड अच्छा नहीं लगता.
घर-बाहर गली-नुक्कड़, स्कूल या प्लेग्राउंड… आपके बच्चे के साथ इस तरह की हरकत कहीं भी होती हो, तो सवाल उठना स्वाभाविक है कि फिर आपके बच्चे कहां और कितने सुरक्षित हैं?… और इस तरह की घटनाओं ने माता-पिता की चिंता और भी बढ़ा दी है कि आख़िर वो अपने बच्चों को सुरक्षित कैसे रखें, ख़ासकर कामकाजी माता-पिता, जो दिनभर घर से बाहर रहते हैं, उनकी मुश्किलें तो और बढ़ गई हैं.
अपने लाडले को, जिसे पूरी दुनिया की नज़रों से बचाकर रखती है मां कि कहीं उसे किसी की बुरी नज़र न लग जाए… वही बच्चा किसी की बुरी नज़रों… किसी की बुरी आदत का शिकार हो जाए तो… ज़रा सोचिए, उस मां पर क्या बीतती होगी?
अधिकतर माता-पिता अपने बच्चों को ये समझाकर कि ‘कोई अजनबी अंकल चॉकलेट या ग़िफ़्ट दे तो मत लेना, वो कहीं पिकनिक पर ले चलने की बात करे तो सुनना मत’ उसकी सुरक्षा के प्रति आश्वस्त हो जाते हैं. वे उसे सिखाते हैं कि वे स़िर्फ उन पर भरोसा करें, जिन्हें वो पहले से जानते-पहचानते हैं और बच्चा उनकी बात मानकर उन पर भरोसा करने भी लगता है. लेकिन तब क्या हो, जब यही जान-पहचान के लोग मौक़ा देखकर कभी उसके अंगों को छूकर, तो कभी उसे निर्वस्त्र कर और कभी उसके साथ बलात्कार कर उसे अपनी हवस का शिकार बना लें? जिस नौकर पर आपको पूरा भरोसा है, वही उसके अपहरण की साजिश रच डाले… या आपके कॉलोनी के जिस युवा लड़के के पास आप उसे पढ़ने भेजती थीं, वही उसके साथ ग़लत हरकत करने लगे.
दरअसल, बच्चे समाज का सबसे असुरक्षित तबका हैं और आसान टारगेट भी. इसकी वजह है कि बच्चे अपने आसपास के लोगों को, जिन्हें वे रोज़ स्कूल, घर या कॉलोनी में देखते हैं, उस पर सहज ही विश्वास करने लगते हैं और अनजाने ही उससे रिश्ता जोड़ लेते हैं. भरोसे के इसी रिश्ते की आड़ में ये उनका यौन शोषण करते हैं. बच्चे भी उनके कहने पर वो सब करते रहते हें, जो उनसे कहा जाता है. ये यौन अनाचारी बच्चे को रिश्ते की दुहाई देकर अपनी इच्छापूतिर्र् तो करते ही हैं, साथ ही बच्चे के मन में किसी न किसी तरह का डर पैदा करने में भी क़ामयाब हो जाते हैं, ताकि उनकी ग़लत हरकत का पता किसी को न चले और उनकी दरिंदगी का खेल यूं ही चलता रहे.
बाल मनोवैज्ञानी डॉ. प्रीति मेनन के अनुसार, “हमारे यहां कोई भी बच्चा सुरक्षित नहीं है. किसी भी बच्चे के साथ इस तरह का हादसा कभी भी हो सकता है और चूंकि इस तरह की हरकत करनेवाले घर-परिवार के लोग ही होते हैं, इसलिए इन हादसों का जल्दी पता भी नहीं चलता.” उनके अनुसार, “इसके लिए हमारे यहां का पारिवारिक ढांचा सबसे ज़्यादा ज़िम्मेदार है. हमारे यहां बच्चों को हमेशा सिखाया जाता है कि बड़ों का आदर करो. वो जैसा कहें, वैसा करो, उनकी बात मानो. और बस, इसी बात का फ़ायदा उठाते हैं घर-परिवार के बड़े-बुजुर्ग. वे बच्चों का शोषण करते रहते हैं और बच्चे उनकी बात मानते रहते हैं.”
केवल लड़कियां ही इसकी शिकार नहीं होतीं. लड़कों के साथ यौन शोषण का ख़तरा तो और भी ज़्यादा होता है और इसकी सबसे बड़ी वजह ये है कि भारतीय परिवारों में लड़कों की सुरक्षा की उतनी चिंता नहीं की जाती, जितनी लड़कियों के प्रति की जाती है.
बच्चों के साथ सेक्सुअल एब्यूज़ के कुल मामलों में से 50 प्रतिशत मामलों में दोषी पारिवारिक सदस्य ही होते हैं, जिसमें चाचा, मामा, फूफा, कज़िन, सौतेले पिता या भाई शामिल हैं. इसके अलावा दूर के रिश्तेदार, घर में नियमित आनेवाले परिचित, पारिवारिक मित्र, पड़ोसी, टीचर, कोच, केयरटेकर, डॉक्टर, घरेलू नौकर, जो बच्चों के नियमित संपर्क में रहते हैं, भी इसमें शामिल होते हैं.
♦ शिकार बच्चे ऐसी घटनाओं को याद नहीं करना चाहते, क्योंकि वे दोबारा वो दर्द महसूस नहीं करना चाहते.
♦ बच्चे ऐसी घटनाओं के लिए ख़ुद को ही ज़िम्मेदार मान लेते हैं और सोचते हैं कि अगर उन्होंने इस बारे में माता-पिता या दोस्तों को कुछ बताया तो वे उसे गंदा समझेंगे और उनसे प्यार करना बंद कर देंगे.
♦ बच्चे कुछ और समझ पाएं या न समझ पाएं, इतना तो समझते ही हैं कि उनके साथ जो कुछ भी हुआ, वो शर्म की बात है. शर्म और झिझक के कारण वे इसका ज़िक्र किसी से नहीं करते.
♦ बच्चों के मन में ये डर भी होता है कि उनकी बात पर कोई यक़ीन नहीं करेगा और उल्टे उसे ही सज़ा मिलेगी. ये डर भी उन्हें सच्चाई बताने से रोकता है.
♦ उनका शोषण करनेवाले अक्सर उन्हें डरा-धमकाकर रखते हैं, जिस कारण वे मुंह खोलने से डरते हैं.
इस संबंध में कोई अलग से क़ानून नहीं है. धारा 376 के तहत दुष्कर्म की परिभाषा इतनी जटिल है कि इस दायरे में ऐसे बच्चे नहीं आ पाते, जिनके साथ अनाचार या यौन दुर्व्यवहार हुआ हो. दरअसल, इस दायरे में मुख्यत: ‘पेनिट्रेशन’ को रखा गया है और अपराध पूरी तरह मेडिकल सबूतों के आधार पर तय किया जाता है. लेकिन बच्चों के मामले में सबूत जुटाना मुश्किल होता है, क्योंकि बच्चों के साथ यौन दुराचार का मामला एक अकेला मामला नहीं होता, बल्कि ऐसी घटनाओं की पूरी सीरीज़ होती है, जिसके लिए सबूत जुटाना मुश्किल होता है. ऐसी स्थिति में अनाचारी के ख़िलाफ़ कोई क़ानूनी क़दम उठाना मुश्किल हो जाता है.
बच्चों की सुरक्षा आख़िरकार माता-पिता की ही ज़िम्मेदारी है. इसके लिए एहतियात भी उन्हें ही बरतना होगा. सबसे पहले तो ये जानने की कोशिश करें कि जिन लोगों से बच्चों को ख़तरा हो सकता है, उन्हें कैसे पहचानें?
♦ जो बच्चे के न चाहने के बावजूद उसे गले लगाने, छूने, गुदगुदाने, खेलने या उसे पकड़ने की कोशिश करता हो.
♦ जो अनावश्यक रूप से बच्चे में दिलचस्पी लेता हो या बच्चे के शारीरिक विकास के बारे में जब-तब बातें करता हो.
♦ जो बच्चे के अकेले होने के मौ़के का इंतज़ार करता हो या बच्चा जब भी अकेला हो, वो उसके साथ हो लेता हो.
♦ जो अपने फुर्सत का ज़्यादातर समय बच्चे के साथ बिताना पसंद करता हो.
♦ बच्चे के लिए जब-तब ग़िफ़्ट लाता हो या उसे चॉकलेट वगैरह के लिए पैसे देता हो.
♦ जो बच्चा सोता हो तो बेडरूम में घुस जाता हो या स्नान करता हो, तो बाथरूम तक में चला जाता हो.
ऐसे हर शख़्स के प्रति माता-पिता को सावधान रहना चाहिए और बच्चे को भी उससे दूर रखने की कोशिश करें. बेहतर होगा कि ऐसे लोगों का घर में आना-जाना एकदम बंद कर दें. इसके अलावा इन बातों पर भी ध्यान दें-
♦ बच्चे से हर हाल में संवाद बनाए रखें. उसके साथ ऐसा रिश्ता रखें कि
उसके साथ कहीं-भी, कभी-भी कुछ घटा हो तो वो बेधड़क उसके बारे में आपको बता सके.
♦ उसे सिखाएं कि गंदा स्पर्श और अच्छा स्पर्श क्या होता है. उसे उसके अंगों से परिचित कराएं.
♦ बच्चे के जीवन में क्या घट रहा है, ये जानने की कोशिश करें.
♦ अपने बच्चे की हर बात ध्यान से सुनें. वो परिवार के किसी सदस्य, रिश्तेदार या आसपास के लोगों के इस तरह के व्यवहार की भनक भी दे तो उसे अनदेखा न करें. या अगर आप गौर कर रही हैं कि वो इनमें से किसी से दूर रहने की कोशिश कर रहा है तो भी
उससे प्यार से इसकी वजह जानने की कोशिश करें.
♦ ऐसी कोई भी हरकत उजागर होती है तो इ़ज़्ज़त-सम्मान के नाम पर या लोग क्या कहेंगे, सोचकर उसे दबाने की कोशिश न करें, न बच्चे की आवाज़ को ख़ामोश करने का प्रयत्न करें. ऐसे अनाचारियों को उसके किए की सज़ा दिलाएं, ताकि कोई और उसका शिकार न बनने पाए.
♦ यदि अनाचारी परिवार का भी हो तो भी उसकी करतूतों पर परदा न डालें. उसका विरोध करें, वरना उसे और बढ़ावा मिलेगा.
♦ किसी भी सूरत में ऐसी किसी घटना के लिए बच्चे को दोषी न ठहराएं, बल्कि उसकी तारीफ़ करें कि उसने ऐसे श़ख़्स को बेनक़ाब करने का साहस दिखाया.
♦ बच्चे के व्यवहार में कोई असामान्यता नज़र आ रही हो तो उसे मनोचिकित्सक के पास ले जाएं.
♦ बच्चों को अपनी भावनाओं पर यक़ीन करना सिखाएं. उन्हें समझाएं कि घर के बड़ों या परिचितों की इ़ज़्ज़त करना ज़रूरी है, लेकिन जब भी उन्हें उनकी कोई बात या व्यवहार अनुचित लगे तो ना कहने में कोई बुराई नहीं है.
यौन शोषण बच्चे के दिलोदिमाग़ पर गहरा असर छोड़ सकता है. ऐसे बच्चों को इमोशनल और बिहेवियरल प्रॉब्लम (व्यावहारिक समस्या) हो सकती है या भविष्य में इससे उनकी सेक्स लाइफ़ भी प्रभावित हो सकती है. लेकिन इसका अर्थ ये नहीं है कि ऐसे बच्चे सामान्य ज़िंदगी नहीं जी सकते. बस, ज़रूरत है माता-पिता को समझदारी से काम लेने की और थोड़ा एहतियात बरतने की, ताकि आपके बच्चे के साथ ऐसा कुछ घटे ही नहीं. इसलिए समय रहते अपने बच्चों को जागरूक और सतर्क बनाएं, ताकि वे ऐसे लोगों का आसान टारगेट न बनने पाएं.
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