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फिल्म समीक्षा: लव आज कल… आख़िर कब तक… (Movie Review: Love Aaj Kal)

प्यार पर इम्तियाज़ अली अपनी फिल्मों में काफ़ी प्रयोग करते रहे हैं. कभी यह कामयाब होती है, तो कभी उलझा कर रख देती है. कार्तिक आर्यन और सारा अली ख़ान अभिनीत उनकी लव आज कल फिल्म यूं तो पहले से ही बेहद चर्चा में रही, पर रिलीज़ होने के बाद और अधिक बातें होने लगी हैं. किसी ने इसे ख़ूबसूरत कहा, तो किसी ने ख़ास नहीं.

कार्तिक आर्यन फिल्म में दोहरी भूमिका में है. अपने अभिनय से वे पहले से ही सभी को प्रभावित करते रहे हैं. इस बार भी उन्होंने बाज़ी मार ली है. सारा के साथ उनकी जोड़ी आकर्षक लगती है. इस नए लव बर्ड्स को उनके फैन्स का प्यार भी ख़ूब मिल रहा है.

वीर (कार्तिक आर्यन) जूही (सारा अली) को प्यार करता है. लेकिन सारा अपने करियर को लेकर अधिक गंभीर है. वह दिल्ली के एक कैफे में बैठकर अक्सर ऑनलाइन जॉब के लिए कोशिश करती रहती है. वही उसकी मुलाक़ात रघु यानी रणदीप हुड्डा से होती है. इसी कैफे में वीर-जूही की दोस्ती भी परवाना चढ़ती है. रघु दोनों की जोड़ी को पसंद करता है.

रघु जूही को अपने स्कूल के दिनों की बातें व प्रेम के बारे में बताता है. फ्लैश बैक में उदयपुर के ख़ूबसूरत नज़ारे देखने को मिलते हैं. जहां पर रघु टीनएज की भूमिका में कार्तिक आर्यन अपनी साथ पढ़नेवाली लीना से प्रेम करता है. लीना की भूमिका में आरुषी शर्मा की यह पहली फिल्म है, पर उन्होंने सहजता से सशक्त अभिनय किया है. रघु-लीना का प्यार, नोक-झोंक, परिवार का विरोध, दोनों का बगावत… इन सब के बीच फिल्म आगे बढ़ती रहती है. लीना के माता-पिता रघु से पीछा छुड़ाने के लिए उसे दिल्ली भेज देते हैं. रघु भी दिल्ली पहुंच जाता है.

एक तरफ़ रघु-लीना की प्रेम कहानी फ्लैश बैक में चलती रहती है. साल 1990 का दौर चलता रहता है, वहीं दूसरी तरफ़ वीर-जूही की दोस्ती-प्यार धूप-छांव के खेल खेलती रहती है. इम्तियाज़ की ख़ासियत रही है कि अपनी फिल्म को वे सीधे-सरल तरी़के से नहीं दिखाते. उनकी फिल्मों में उतार-चढ़ाव, कल-आज की आंख-मिचौली ख़ूब चलती रहती है. कई बार इसी कारण से दर्शक असमंजस में पड़ जाते हैं. कुछ दर्शकों को उनका यह प्रयोग लुभाता है, तो कुछ का यह सोचना रहता है कि मनोरंजन के लिए आए हैं या माथापच्ची करने. यही पर आकर इम्तियाज़ की लव केमेस्ट्री गड़बड़ा जाती है. एक बात है कि जब वी मैट की अपार सफलता को वे कभी भी दोहरा नहीं पाए. वजह क्या रही, सोच से बाहर है. जैसे सोचा ना था, जो उनकी पहली फिल्म थी कि सादगी व प्रभाव को भी वे दोबारा कभी दोहरा नहीं पाए.

साल 2009 में सैफ अली ख़ान और दीपिका पादुकोण को लेकर इसी नाम से इम्तियाज़ अली ने फिल्म बनाई थी, जो बेहद सफल रही थी. अब सैफ की बेटी सारा को लेकर उनका एक्सपेरिमेंट कितना सफल रहा, वो लोगों की प्रतिक्रियाओं से ही पता चल गया, जो मिलीजुला रहा.

सारा अली ख़ान और कार्तिक आर्यन ने लाजवाब अभिनय तो किया ही है, पर आरुषी शर्मा अकेले ही दोनों को ज़बर्दस्त टक्कर देती हैं. बहुत दिनों बाद रणदीप हुड्डा को अलग क़िरदार में देखना अच्छा लगता है. प्रीतम का म्यूज़िक औसत है. गाने ठीक हैं. हां, अमित रॉय की सिनेमाटोग्राफी प्रभावित करती है. निर्माता दिनेश विजान ने तो ज़रूर कोशिश की होगी फिल्म अच्छी बनें, लेकिन रिलीज़ के बाद निर्णय तो दर्शकों के हाथ में रहता है.

प्रेम कहानी पसंद करनेवाले और सारा-कार्तिक के प्रशंसक फिल्म को ज़रूर पसंद करेंगे, इसमें कोई शक नहीं है. अब यह कितना अधिक सफल रहती है, यह तो कुछ हफ़्तों में ही जान पाएंगे. फ़िलहाल आज वैलेंटाइन डे को सार्थक करने के लिए अपनों व प्यार करनेवालों के साथ फिल्म देखा जा सकता.

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Usha Gupta

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