चार भुजाधारी देवी कात्यायनी (Navratri- Devi Katyayani)

आज मां कात्यायनी की आराधना की जाएगी.
मां कात्यायनी फलदायिनी मानी गई हैं.
हाथ में फूल लेकर देवी को प्रणाम कर उपरोक्त मंत्रोच्चार करना चाहिए.
यदि देवी कात्यायनी की पूरी निष्ठा और भक्ति भाव से पूजा करते हैं, तो अर्थ व मोक्ष की प्राप्ति होती है.
चार भुजाधारी मां कात्यायनी सिंह पर सवार हैं.
इनके एक हाथ में तलवार और दूसरे में कमल है.
अन्य दोनों हाथ वरमुद्रा और अभयमुद्रा में हैं.

शास्त्रों के अनुसार, कात्यायन ऋषि के घर देवी ने पुत्री के रूप में जन्म लिया, इसलिए इनका नाम कात्यायनी पड़ा.
इसी रूप में देवी ने महिषासुर दानव का वध किया था, इसलिए मां कात्यायनी को महिषासुरमर्दिनी के नाम से भी जाना जाता है.
मां कात्यायनी ने महिषासुर से युद्ध के समय अपनी थकान को दूर करने के लिए शहदयुक्त पान का सेवन किया था, इसलिए मां कात्यायनी के पूजन में शहदयुक्त पान ज़रूर चढ़ाना चाहिए.
इस दिन लाल रंग विशेष रूप से शुभ माना जाता है, इसलिए लाल रंग का वस्त्र धारण करें.
मां कात्यायनी की पूजा-अर्चना करने से जीवन की सारी परेशानियां व बाधाएं स्वतः ही दूर हो जाती हैं.
यदि किसी कन्या के शादी में अड़चनें व परेशानियां आ रही हो, तो उसे मां कात्यायनी का व्रत व पूजन करना चाहिए.
विद्यार्थियों को मां कात्यायनी की विशेष रूप से पूजा-उपासना करनी चाहिए. इससे शिक्षा के क्षेत्र में सफलता अवश्य प्राप्त होती है.


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ध्यान
वन्दे वांछित मनोरथार्थ चन्द्रार्घकृत शेखराम्।
सिंहरूढ़ा चतुर्भुजा कात्यायनी यशस्वनीम्॥
स्वर्णाआज्ञा चक्र स्थितां षष्टम दुर्गा त्रिनेत्राम्।
वराभीत करां षगपदधरां कात्यायनसुतां भजामि॥
पटाम्बर परिधानां स्मेरमुखी नानालंकार भूषिताम्।
मंजीर, हार, केयूर, किंकिणि रत्नकुण्डल मण्डिताम्॥
प्रसन्नवदना पञ्वाधरां कांतकपोला तुंग कुचाम्।
कमनीयां लावण्यां त्रिवलीविभूषित निम्न नाभिम॥

स्तोत्र

कंचनाभा वराभयं पद्मधरा मुकटोज्जवलां।
स्मेरमुखीं शिवपत्नी कात्यायनेसुते नमोअस्तुते॥
पटाम्बर परिधानां नानालंकार भूषितां।
सिंहस्थितां पदमहस्तां कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥
परमांवदमयी देवि परब्रह्म परमात्मा।
परमशक्ति, परमभक्ति,कात्यायनसुते नमोअस्तुते॥

कवच
कात्यायनी मुखं पातु कां स्वाहास्वरूपिणी।
ललाटे विजया पातु मालिनी नित्य सुन्दरी॥
कल्याणी हृदयं पातु जया भगमालिनी॥
कात्यायनी शुभं दद्याद्देवी दानवघातिनी
या देवी सर्वभूतेषु मां कात्यायनी रूपेण
नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमस्तस्यै नमो नमः

नवरात्रि पर विशेष

डॉ. मधुराज वास्तु गुरु के अनुसार…

संप्रदाय भेद से इन्हें चार भागों में विभाजित किया गया है.

  1. शैव संप्रदाय
  2. दक्षिण भारत वर्षे
  3. वैष्णव संप्रदाय
  4. माधव संप्रदाय

चतु: नवरात्र विषय विशेष विचार

  • महाकाल संहिता के अनुसार वर्ष में चार नवरात्र आते हैं.
  • अलग-अलग युग में अलग-अलग मास की महिमा रही है.
  1. सतयुग में चैत्र शुक्लपक्ष
  2. त्रेतायुग में आषाढ़ शुक्लपक्ष
  3. द्वापर में माघ शुक्लपक्ष
  4. कलयुग में आश्विन शुक्लपक्ष की नवरात्र पूजा प्रधान है

दुर्गा पूजन उत्सव के दो प्रधान अंग

आगमनि और विजया

  • आगमनि में कैलाश धाम से मां पार्वती का हिमालय पितृग्रह में आगमन एवं सप्तमी, अष्टमी और नवमी पितॄग्रह में मां की उपस्थिति तथा दशमी को विजया का विसर्जन अथवा मां पार्वती का स्वामीगृह गमन.
    इस कारण सप्तमी, अष्टमी, नवमी एवं दशमी को पूजा उत्सव का विशेष महत्व है.

मां अम्बे की आरती

ॐ जय अम्बे गौरी, मैया जय श्यामा गौरी
तुम को निशदिन ध्यावत हरि ब्रह्मा शिवरी. ॐ जय अम्बे…

मांग सिंदूर विराजत टीको मृगमद को
उज्जवल से दो नैना चन्द्र बदन नीको. ॐ जय अम्बे…

कनक समान कलेवर रक्ताम्बर राजे
रक्त पुष्प दल माला कंठन पर साजे. ॐ जय अम्बे…

केहरि वाहन राजत खड़्ग खप्पर धारी
सुर-नर मुनिजन सेवत तिनके दुखहारी. ॐ जय अम्बे…

कानन कुण्डल शोभित नासग्रे मोती
कोटिक चन्द्र दिवाकर राजत सम ज्योति. ॐ जय अम्बे…

शुम्भ निशुम्भ विडारे महिषासुर धाती
धूम्र विलोचन नैना निशदिन मदमाती. ॐ जय अम्बे…

चण्ड – मुंड संहारे सोणित बीज हरे
मधु कैटभ दोऊ मारे सुर भयहीन करे.ॐ जय अम्बे…

ब्रह्माणी रुद्राणी तुम कमला रानी
आगम निगम बखानी तुम शिव पटरानी. ॐ जय अम्बे…

चौसठ योगिनी मंगल गावत नृत्य करत भैरु
बाजत ताल मृदंगा और बाजत डमरु. ॐ जय अम्बे…

तुम ही जग की माता तुम ही हो भर्ता
भक्तन की दुःख हरता सुख सम्पत्ति कर्ताॐ जय अम्बे…

भुजा चार अति शोभित वर मुद्रा धारी
मन वांछित फ़ल पावत सेवत नर-नारी. ॐ जय अम्बे…

कंचन थार विराजत अगर कपूर बाती
श्रीमालकेतु में राजत कोटि रत्न ज्योति. ॐ जय अम्बे…

श्री अम्बे जी की आरती जो कोई नर गावे
कहत शिवानंद स्वामी सुख संपत्ति पावे. ॐ जय अम्बे…

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Usha Gupta

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