कहानी- बादल रोने लगा… (Short Story- Badal Rone Laga…)

“अरे, आज तो मुझसे कोई डर ही नहीं रहा?” अब तो बादल का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह पूरी ताक़त से गरजने लगा. साथ ही बिजली भी चमकाने लगा, लेकिन वह जितनी ज़ोर से गरजता नीचे खड़े आदमी उतना ही ख़ुश हो जाते.
“लगता है पूरा का पूरा गांव पागल हो गया है.” बादल दांत पीसते हुए वहां से भी चल दिया.

एक था नन्हा बादल. बहुत शरारती. एक दिन आसमान में घूमने निकला. एक गांव में कुछ बच्चे खेल रहे थे. उन्हें देख बादल को शरारत सूझी. सोचा इनको भिगो दिया जाए. बहुत मजा आएगा. उसने पानी गिराना शुरू कर दिया. झमाझम-झमाझम-झमाझम.
‘ता-ता-थैय्या, ता-ता-थैय्या, झूमो-नाचो-गाओ भैया’ पानी बरसता देख बच्चे ख़ुशी से नाचने लगे.
“अरे, यह सब पागल हो गए हैं. डरने की बजाय नाच रहे हैं?” बादल ने मुंह बनाया और आगे चल दिया.
खेतों में कई किसान बैठे थे. सभी को चिन्ता थी कि बुआई कैसे की जाए. इस साल पानी तो बरसा ही नहीं.
‘चलो इन सबको डरवाया जाए.’ बादल ने सोचा और पानी गिराने लगा. वह गड़गड़ा कर बरसा, ख़ूब बरसा, ख़ूब बरसा. मूसलाधार बरसा.
इससे सारे खेतों में पानी भर गया. उदास किसान ख़ुश हो गए. वे झूमते हुए खेतों में हल चलाने लगे.

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“मैंने आधा पानी गिरा दिया, मगर कोई डरा ही नहीं उलटे ख़ुश हो रहे हैं. लगता है यह सब भी पागल हो गए हैं…” बादल ग़ुस्से से दांत पीसते हुए वहां से आगे चल दिया. वह चलता रहा, चलता और काफ़ी दूर आ गया.
एक गांव की चौपाल में कई आदमी जमा थे. सभी के चेहरों पर उदासी छाई हुई थी. इस साल पानी न बरसने के कारण सूखा पड़नेवाला था, इसलिए परेशान किसान सरकार से मदद की मांग करने वहां आए थे.
‘यहां ढेर सारे लोग जमा हैं. कोई न कोई ज़रूर डर जाएगा.’ सोच कर बादल ने ज़ोर से दहाड़ लगाई गड़-गड़-गड़-गड़.
उसकी गड़गड़ाहट सुन मुखियाजी खड़े हो गए. उन्होंने अपनी हथेलियों को पलकों के ऊपर रख ध्यान से आसमान की ओर देखा फिर बोले, ‘‘भाइयों, अब चिंता करने की कोई ज़रूरत नहीं. बादल आ गए हैं. पानी बरसनेवाला है. आप सब फसल बोने की तैयारी करिए.’’
यह सुन वहां जमा भीड़ ख़ुशी से ताली बजाने लगी. सभी की उदासी गायब हो गई थी.
“अरे, आज तो मुझसे कोई डर ही नहीं रहा?” अब तो बादल का ग़ुस्सा सातवें आसमान पर जा पहुंचा. वह पूरी ताक़त से गरजने लगा. साथ ही बिजली भी चमकाने लगा, लेकिन वह जितनी ज़ोर से गरजता नीचे खड़े आदमी उतना ही ख़ुश हो जाते.
“लगता है पूरा का पूरा गांव पागल हो गया है.” बादल दांत पीसते हुए वहां से भी चल दिया.
एक आदमी सड़क पर जा रहा था. पसीने से लथपथ. तेज धूप से उसकी हालत ख़राब थी.
‘यह अकेला है. ज़रूर डर जाएगा.’ सोच कर बादल उसके सिर के ऊपर आ गया.
बादल की छांव से कुछ राहत मिली, तो उस आदमी ने अपनी चाल तेज कर दी. यह देख बादल का ग़ुस्सा बेकाबू हो गया. वह पूरी ताक़त से दहाड़ा गड़-गड़-गड़-गड़…
“बादल महराज, ज़रा और ज़ोर से गरजो. जितना पानी तुम्हारे पास है सब मेरे ऊपर गिरा दो. मज़ा आ जाएगा.” वह आदमी बादल की ओर देख हंस पड़ा.
अब तो बादल के तन-मन में आग लग गई. वह पूरी ताक़त लगा कर ज़ोर-ज़ोर से गरजने लगा, लेकिन वह आदमी डरने की बजाय ख़ुश होता रहा.
गरजते-गरजते बादल का गला दर्द करने लगा. उसकी आंखों में आंसू आ गए और वह रोने लगा.
‘‘अरे, तुम रो क्यों रहे हो?’’ तभी हवा ने पास आते हुए प्यार से पूछा.
“मुझसे कोई डर ही नहीं रहा. लगता है मेरी ताक़त ख़त्म हो गई है.’’ बादल फफक पड़ा.
यह सुन हवा हंस पड़ी, “दोस्त, बादलों का जन्म लोगों को डराने के लिए नहीं, मदद करने के लिए होता है. तुम लोग तो बहुत प्यारे होते हैं, इसीलिए सभी तुम्हारा इंतज़ार किया करते हैं.’’
“सच!’’ बादल की आंखें ख़ुशी से चमक उठीं.
‘‘बिल्कुल सच.’’ हवा मुस्कुराई.
‘‘लेकिन कई बादल बरस-बरस कर बाढ़ क्यों ले आते हैं?’’ बादल ने पूछा.
“इसके लिए बादल नहीं, इंसान दोषी हैं, क्योंकि उन्होंने पेड़ों को काट डाला, नदी-नालों, तालाबों को गंदगी से पाट दिया. इससे तुम सब धरती पर जो अमृत बरसाते हो, वह इधर-उधर फैल कर तबाही मचा देता है.’’ हवा ने बताया.
‘‘क्या इनके लिए हम लोग कुछ कर नहीं सकते?’’ बादल ने अपने आंसू पोंछते हुए पूछा.

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‘‘क्यों नहीं कर सकते.’’ हवा उसकी ओर देख मुस्कुराई, फिर बोली, ‘‘तुम्हें वहां जा कर बरसना चाहिए, जहां पेड-पौधे़ सूख रहे हैं. तुम बरसोगे, तो उनमें हरियाली छा जाएगी, इससे धरती पर ख़ुशहाली आ जाएगी.’’
‘‘लेकिन मैं वहां तक जाऊंगा कैसे?’’ बादल ने पूछा.
‘‘मैं ले जाऊंगी तुम्हें वहां तक. मुझे सारे रास्ते मालूम हैं.’’ हवा ने बहुत प्यार से बादल का हाथ थाम और उसे चलने का इशारा किया.
बादल ख़ुशी-ख़ुशी हवा के साथ चल दिया. उसे धरती पर हरियाली जो लानी थी.

संजीव जायसवाल ‘संजय’

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Photo Courtesy: Freepik

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