“ममा, मैंने तो आंटी को सॉरी मतलब मेरी सास को मम्मी और अंकल यानी ससुरजी को पापा कहना शुरू कर दिया है.. कब से कह रहे थे वे लोग इस सब के लिए, बल्कि अब तो नाराज़ भी होने लगे थे.”
“हां तो ठीक किया न.”
“पर अवि ने तो आपको अभी तक मम्मा कहना शुरू नहीं किया?”
“आंटी कहना तो बंद कर दिया है न! जब दिल से मां मानने लगेगा, तो मम्मा कहना भी शुरू कर देगा. वैसे भी बोलने में क्या रखा है? एक अच्छा रिश्ता हमेशा हवा की तरह होना चाहिए. ख़ामोश, मगर हमेशा आसपास.”
“मैं बोलूं उनसे?”
“बिल्कुल नहीं. दिल के दरवाज़े अंदर से खुलते हैं, बाहर से नहीं. जबरन थोपा गया मातृत्व मुझे आत्मसंतुष्टि नहीं दे पाएगा. बेटी, रिश्ते सूरजमुखी के फूलों की तरह होते हैं, जिधर प्यार मिल जाए, उधर ही घूम जाते हैं.”
“पर आप तो अवि को शुरू से ही बेटा कहती आ रही हैं.”
“जब मेरी बेटी ने उसे पसंद कर लिया, तो वह मेरा भी आत्मीय हो गया. वैसे भी किसी को बेटा, बेटी, चाचा, मामी, अंकल, आंटी का दर्जा देना आसान है. हम अपने पड़ोसियों, रिश्तेदारों से वार्तालाप में यही सब संबोधन तो प्रयुक्त करते हैं. पर किसी को मां-बाप का दर्जा देना बहुत महत्वपूर्ण और मुश्किल बात होती है. बेटी, ज़िंदगी में बहुत-सी चीज़ों को समझने के लिए दृष्टि से ज़्यादा दृष्टिकोण की ज़रूरत होती है. अधिकांश नए जोड़ों को इस समस्या से दो-चार होना ही पड़ता है.”
“हमेशा की तरह अपने तर्कों से आपने आज फिर मेरा मुंह बंद करा दिया है. कभी-कभी आप मुझे डॉक्टर से ज़्यादा वकील लगने लगती हैं.”
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“अच्छा, और मां कब लगती हूं?”
“चौबीसों घंटे! होश संभालने के बाद से आप में ही तो मां और पापा दोनों को देखा है. गुल्लक-सी है मेरी मां! जैसे गुल्लक पैसों को संभालती है, आपने मेरी ख़ुशियों को संभाला है. क्या मैं जानती नहीं कि मेरी ही वजह से आपने दूसरी शादी नहीं की? वरना पापा गए तब आपकी उम्र ही क्या थी!”
“यह तू सुबह-सुबह क्या अतीत के पन्ने पलटने लगी? मिस विनी, अब आप मिसेज विनीता दीक्षित बन गई हैं. एक भरी-पूरी गृहस्थिन! अपनी नई ज़िम्मेदारियां संभालिए!” माधुरी ने प्यार से बेटी को फोन पर झिड़का, तो वह सचमुच गंभीर और नाराज़ हो गई.”
और पुरानी ज़िम्मेदारियों, अधिकारों से नाता तोड़ लूं? बिल्कुल नहीं मम्मा. हम अब भी उतने ही अधिकार और आत्मीयता से दिन में तीन-चार बार फोन पर बात करेंगे जैसे पहले करते थे. अपने सुख और दुख, एक-दूसरे से अपनी अपेक्षाएं पहले की ही तरह सबसे पहले एक-दूसरे से शेयर करेंगे. प्रॉमिस?”
“अच्छा बाबा प्रॉमिस! अब फोन रख! मेरी क्लीनिक का टाइम हो गया है. तू फ्री होगी. मेरे पास इतना बतियाने का टाइम नहीं है.”
“किसने कहा कि मैं फ्री हूं? इस वर्क फ्रॉम होम ने तो पहले से ज़्यादा बिज़ी कर दिया है. मीटिंग पर मीटिंग, कॉल पर कॉल!” बड़बड़ाती विनी ने फोन बंद कर दिया, तो माधुरीजी के चेहरे पर स्मित मुस्कान बिखर गई. बेटी पर ढेर सारा लाड़ उमड़ आया. शादी हो गई है, पर फिर भी निरी बच्ची ही है.
माधुरीजी का मन तो कर रहा था एक बार फिर से अतीत के गलियारे में पहुंचकर विनी के बचपन और अपने सुखद किन्तु अल्प वैवाहिक जीवन की स्मृतियों में विचरण करने लगे. किंतु बाहर बढ़ती मरीज़ों की कतार ने उन्हें मास्क पहनकर क्लीनिक रूम में घुसने को विवश कर दिया. कोरोना संक्रमण वैसे तो काफ़ी मंदा पड़ चुका था, किंतु डॉक्टर होने के नाते माधुरीजी न केवल स्वयं पूरी एहतियात बरत रही थीं, वरन आगंतुक प्रत्येक मरीज़ से भी इसके लिए आवश्यक समझाइश कर रही थीं. उम्रदराज़ होने के साथ-साथ मेडिकल फ्रेटरनिटी में उनकी प्रतिष्ठा और साख उत्तरोतर बढ़ती ही जा रही थी. किशोर बेटी विनीता ने जब मम्मी-पापा के चिकित्सकीय पेशे से इतर इंजीनियरिंग में जाने की इच्छा व्यक्त की थी, तो माधुरीजी चौंकी अवश्य थीं, किंतु प्रगतिशील सोच होने के कारण उन्होंने बेटी की इस रुचि का तहेदिल से स्वागत किया था. ठीक वैसे ही जैसे आगे चलकर उसकी पसंद विजातीय अवि को भी सहर्ष अपना दामाद बना लिया था. विनीता का स्थानीय आईआईटी में एडमिशन हो जाने के कारण मां-बेटी का साथ कुछ साल और बना रहा था. लेकिन मुंबई स्थित एमएनसी में अच्छी जॉब मिल जाने पर अंततः माधुरीजी को बेटी को विदा करना ही पड़ा था. कोसों की शारीरिक दूरी भी मां-बेटी के दिलों में दूरियां नहीं ला पाई थीं. दिन में जब तक तीन-चार बार फोन पर दोनों की बातचीत नहीं हो जाती थी, तब तक उन्हें चैन नहीं पड़ता था. ऐसे अवसरों पर वे मां-बेटी कम, सहेलियां ज़्यादा बन जाती थीं. विनी अवि से आरंभिक टकराहट, उसके प्रति झुकाव की बात लजाते हुए स्वीकारती, तो माधुरीजी भी कुछ मरीज़ों द्वारा उन्हें रिझाने के प्रयासों को हंसते हुए शेयर करतीं.
“आप अब तो किसी का हाथ थाम लीजिए मम्मा! अब तो आप मेरी ज़िम्मेदारियों से मुक्त हो चुकी हैं.” विनी गंभीर होकर आग्रह करती, तो माधुरीजी भड़क जातीं.
“तेरी शादी कौन करवाएगा? डिलीवरी कौन करवाएगा? और बच्चे पालेगा कौन? बहुत ज़्यादा बड़ी हो गई है क्या तू?” फिर थोड़ा सहज होकर समझाने लगतीं.
“बेटी, पुनर्विवाह ग़लत नहीं है, पर मुझे करना होता, तो बहुत पहले कर चुकी होती. मेरा प्रोफेशन ही अब मेरा प्यार है. और मैं उसके साथ बहुत ख़ुश हूं. इस तरह की बातें कर मेरा दिल मत दुखाया कर, वरना मैं आगे से कुछ शेयर नहीं करूंगी.” “सॉरी ममा! पर वादा करो मुझसे हर छोटी से छोटी बात शेयर करोगी.” मां-बेटी का शेयर और केयर का यह सिलसिला विनीता की शादी के बाद भी आज भी ऐसे ही अक्षुण्ण बना हुआ है. इसलिए जब माधुरीजी को अपने इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के प्रेसिडेंट मनोनीत किए जाने की ख़बर मिली, तो सबसे पहले उन्होंने विनी को कॉल लगाया. दो-तीन बार लगाने के बाद भी फोन रिसीव नहीं हुआ, तो वे झुंझला उठीं. ‘अजीब प्रॉमिसेज़ में बांध रखा है इस लड़की ने! ख़ुद मीटिंग में बिज़ी है. फोन रिसीव नहीं कर पा रही है और मेरी मजबूरी है कि उसे सबसे पहले बताए बिना किसी से शेयर भी नहीं कर सकती. फोन उठा विनी, मैं अपने साथी डॉक्टर्स को बताने के लिए उतावली हो रही हूं.’ इस बार फोन रिसीव हो गया.
“ज़रूरी मीटिंग में है तू! कोई बात नहीं. बोलना मत, बस सुनती रह. बहुत बड़ी ख़ुशख़बरी है! मैं आईएमए की प्रेसिडेंट बन गई हूं. तेरे पापा आज होते तो कितना ख़ुश होते… ख़ैर, कल सिलवासा में एक भव्य समारोह में मुझे चार्ज लेना है. कोविड प्रोटोकोल के तहत कुछ गणमान्य लोगों को ही प्रवेश दिया गया है. मैं कार टैक्सी से पहुंच रही हूं. तू भी पहुंच जाना. शेष मिलने पर… बहुत तैयारियां करनी है और वक़्त बिल्कुल कम है…” फोन बंद कर माधुरीजी ने कुछ घनिष्ठ डॉक्टर मित्रों और रिश्तेदारों को सूचित किया और फिर जाने की तैयारियों में जुट गईं. गंतव्य पर पहुंचकर वे होटल के अपने रूम में सुस्ता ही रही थी कि किसी ने दरवाज़ा खटखटाया. सामने अवि को देख वे चौंक उठीं. “बेटे आप? विनी कहां है?” खोजती निगाहों पर उस समय विराम लग गया, जब अवि ने प्रत्युत्तर में अपना मोबाइल पकड़ा दिया. दूसरी ओर विनी थी. माधुरीजी कुछ सवाल-जवाब करें. तब तक अवि जान-बूझकर वॉशरूम में घुस गया था. “सॉरी ममा! कल एक ज़रूरी प्रोजेक्ट मीटिंग की वजह से फोन नहीं उठा पा रही थी. कोविड वैक्सीनेशन की वजह से तबीयत वैसे भी नरम थी. मेरे इशारे पर अवि ने फोन उठाया था. अवि ने बताया आप बहुत ख़ुश और बहुत भावुक थी. बार-बार पापा को मिस कर रही थी. मुझे यह सब बताते अवि ख़ुद भी अभिभूत हो गए थे… मुझे प्रोजेक्ट हेड बनाए जाने की बात चल रही है मम्मा! इसी संदर्भ में आज फिर ज़रूरी मीटिंग है. फीवर तो कम है, पर बदन बहुत दर्द हो रहा है. टेबलेट लेकर किसी तरह लैपटॉप के सामने बैठ गई हूं… अवि के हाथ में भी वैक्सीनेशन की वजह से थोड़ा दर्द है… अच्छा ऑल द बेस्ट ममा!”
“सेम टू यू बच्चे.. अपना ख़्याल रखना.” अब तक अवि बाहर आ चुका था. “तुम्हें भी कहां ज़रूरत थी ख़ुद ड्राइव करके आने की? वैक्सीनेशन के बाद एक-दो दिन तबीयत नासाज रहती ही है. घर पर ही आराम करना था.” माधुरीजी के स्वर में ना चाहते हुए भी नाराज़गी और चिंता का पुट आ गया था. “व.. वो तो मुझे यहां ऑफिशियली एक साइट पर वैसे भी आना था, तो आज ही आ गया. म… मैं पासवाले कमरे में हूं.” अवि खिसक लिया, तो माधुरीजी को उस पर ढेर प्यार उमड़ आया. विनी की तरह झूठ बोलते इसकी भी जुबान हकलाती है. डिनर टाइम तक भी अवि बाहर नहीं आया, तो माधुरीजी को चिंता हुई. उढ़का हुआ दरवाज़ा धकेल वे अंदर पहुंची, तो अवि को बिस्तर पर बेसुध पड़ा देख कर चौंक उठीं. “अरे, तुम्हें तो बहुत तेज बुखार है. शरीर भी दर्द कर रहा होगा. सिरदर्द भी होगा.” अवि हां.. ना.. करता ही रह गया. माधुरीजी ने वहीं कमरे में ही डिनर मंगवा लिया. अवि को जबरन अपने हाथों से थोड़ा-बहुत खिलाकर उन्होंने उसे दवा दी. फिर अपनी गोद में उसका सिर रखकर प्यार से सहलाने लगीं.
“विनी भी छुटपुट बुखार की परवाह ना कर ऐसे ही बाहर निकल जाती थी और बीमारी बढ़ा लेती थी. अब पूरी तरह ठीक हुए बिना कमरे से बाहर नहीं निकलोगे. सुबह न मेरे संग फंक्शन में चलने की आवश्यकता है और न साइट पर जाने की.”
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आंखें बंद किए लेटे अवि को यह प्यारभरी डांट भी उतनी ही भली लग रही थी, जितनी थपकीभरी मालिश. दवा और मालिश के असर से शनै: शनै: उसकी आंखें मूंदती चली गई थी. सवेरे उसके उठने तक माधुरीजी निकल चुकी थीं. अवि भी तैयार होकर पीछे-पीछे हॉल में पहुंच गया. डबल मास्क और फेसशील्ड में फोटो उतारते इस शख़्स को सब फोटोग्राफर ही समझ रहे थे. ख़ुद माधुरीजी भी उसे नहीं पहचान पाईं. स्टेज से उतरते ही साथी डॉक्टर्स ने माधुरीजी को घेर लिया था. कुछ पुराने परिचित बेटी विनी का भी हालचाल पूछने लगे.
“उसकी शादी हो गई है. सॉरी, कोविड गाइडलाइंस के कारण किसी को बुला नहीं पाई.”
“अरे वाह, हमारी माधुरी सास बन गई है! अच्छा बताओ कैसा लग रहा है सास बनकर?”
“इस उम्र में एक और बच्चे की मां बनकर बहुत अच्छा लग रहा है. वह भी एक पले-पलाए, समझदार, होनहार बच्चे की मां! ऐसा बच्चा जो आपको सुनता है, समझता है, आपकी हर बात मानता है और सबसे बड़ी बात एक बेटे की तरह आपकी केयर करता है. सच कहूं, तो मुझे उस पर उतना ही प्यार आता है, जितना विनी पर!” माधुरीजी की आवाज़ भीगने लगी, तो सब दोस्तों ने करतल ध्वनि से उनका उत्साहवर्धन किया और पार्टी का वादा लेकर विदा ली.
सबसे अंत में आती माधुरीजी का पांव यकायक कालीन में उलझ गया. वे लड़खड़ाकर गिरतीं इससे पूर्व ही पीछे से दो हाथों ने लपककर उन्हें पकड़ लिया. “मम्मा संभलकर!” कहते हुए अवि ने पहले तो माधुरीजी को अपनी मज़बूत बांहों में संभाला. फिर उनका गिरता हुआ शॉल बेहद आत्मीयता और शालीनता से फिर से उनके कंधों पर ओढ़ा दिया मानो किसी बेहद क़ीमती चीज़ को सावधानी से सहेज रहा हो. माधुरीजी मंत्रमुग्ध अवाक अवि को निहार रही थीं. उन्हें अपने इर्दगिर्द एक अद्भुत सुरक्षा चक्र का एहसास हो रहा था. कुछ देर पूर्व स्टेज पर ओढ़ाए गए इसी शॉल से उनका भाल गर्व से दिपदिपा उठा था. अब उसी प्रक्रिया के दोहराव ने उनके अंदर ममता का एक सोता सा प्रवाहित कर दिया था, जिसके निर्मल, निश्छल ज्योत्सनामय प्रवाह ने उनके साथ-साथ अवि को भी अंदर तक भिगो डाला था. बादलों का गुनाह नहीं कि वे बरस गए दिल हल्का करने का हक़ तो सभी को है न…
– अर्णिम
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