कहानी- चिड़िया (Short Story- Chidiya…)

सीमा तो चली गई, लेकिन मेरे मन की शांत सतह पर कंकड़ मार गई. हलचल मच गई. आंखें भीग गईं. कहीं भी अकेली नहीं जा सकती हूं मैं, ना बाज़ार, ना बेटे के स्कूल, ना मायके… पति को सुंदरता को क़ैद करने का शौक है. पिंजरे में अनगिनत चिड़िया क़ैद हैं और घर में सुंदर पत्नी क़ैद है.

इतनी सुबह कौन आ गया… मैंने झुंझलाते हुए दरवाज़ा खोला. पड़ोस में रहनेवाली सीमा अपनी 6 साल की बेटी के साथ आई थी.
“आओ, अंदर आओ…” मैं मुस्कुरा दी.
“दरअसल आपसे एक काम था, मैं मायके जा रही हूं तीन दिनों के लिए… मेरे हसबैंड आते हैं 8 बजे और खाना बनानेवाली आएगी 6 बजे… आप प्लीज़ उसको चाभी दे दीजिएगा, वो खाना बनाकर चाभी आपको वापस दे जाएगी.” एक सांस में इतना कुछ बोलकर उसने चाभी का गुच्छा मुझे थमा दिया.
उसकी बेटी आंखें फाड़-फाड़कर पिंजरे की ओर देख रही थी, “मम्मा! देखो तो… आंटी के यहां कितनी प्यारी बर्ड्स हैं! कितनी सारी हैं…”
सीमा ने लपक कर देखा, “हां, इनकी आवाज़ तो आती है मेरी बालकनी में… वाकई बहुत सुंदर हैं. अच्छा भाभीजी! मैं चलती हूं, बहुत पैकिंग करनी है. थैंक्यू सो मच, इस चाभीवाली मदद के लिए. आप तो समझती ही हैं ना कि मायके जाने का उत्साह धरा रह जाता है अगर पति के खाने का जुगाड़ ना हो पाए… आप कैसे मैनेज करती हैं जब आप मायके जाती हैं?” उसने तो ऐसे ही पूछ लिया, लेकिन मैं घायल हो गई. मैंने नकली मुस्कान लाते हुए कहा, “मेरे पति, संदीप तो मेरे साथ ही जाते हैं हमेशा… आज तक कभी अकेले नहीं गई.”

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सीमा की आंखें फैल गई, “वाह! कितने अच्छे हैं भाईसाहब… तभी तो बिल्डिंग में सब आपकी जोड़ी को लैला-मजनूं की जोड़ी कहते हैं. वाकई आप दोनों हर जगह साथ जाते हैं. अब आप हैं ही इतनी ख़ूबसूरत…”
सीमा तो चली गई, लेकिन मेरे मन की शांत सतह पर कंकड़ मार गई. हलचल मच गई. आंखें भीग गईं. कहीं भी अकेली नहीं जा सकती हूं मैं, ना बाज़ार, ना बेटे के स्कूल, ना मायके… पति को सुंदरता को क़ैद करने का शौक है. पिंजरे में अनगिनत चिड़िया क़ैद हैं और घर में सुंदर पत्नी क़ैद है.
सारी बहनें इकट्ठा होती हैं मायके में, १०-१२ दिनों के लिए… लेकिन मैं २-३ दिनों से ज़्यादा नहीं, क्योंकि अकेले वहां रहने नहीं देंगे और इससे ज़्यादा दिन ससुराल में संदीप रुकेंगे नहीं! 
आज सब याद आ रहा था. नई-नई शादी हुई थी. मैं बाज़ार में सब्ज़ी ख़रीद रही थी कि एकदम से इनकी आवाज़ सुनकर पलटी. ये आग्नेय नेत्रों से मुझे घूरते हुए बोले, “घर चलो! यहां सब्ज़ीवाले के साथ खी-खी करने में बहुत अच्छा लग रहा है ना?”
ना बच्चे के स्कूल अकेले जाने देते हैं, ना सहेली के घर… सोचते- सोचते हाथ अचानक मेरी घनी केश-राशि पर चला गया. ये सुंदरता ही अपराध है क्या? चिड़िया भी सुंदर ना होती तो क़ैद करके नहीं रखी जातीं… मैं भी एक ख़ूबसूरत चिड़िया हूं!


तीन दिनों बाद सीमा लौट आई और अक्सर हम शाम की चाय पर मिलने लगे, लेकिन हमेशा मेरे घर पर! एक दिन तो वो झुंझला उठी, “क्या भाभी! रोज़ मैं ही आती हूं… कल आप आइए, मैं भी अच्छी चाय बनाती हूं!”
मैंने ना-नुकुर की, वो गंभीर हो गई. मुझे उससे अपनत्व हो गया था. काफ़ी बातें हम आपस में करने लगे थे. मैंने धीरे से कहा, “सीमा, दरअसल संदीप को पसंद नहीं है मेरा कहीं अकेले जाना… प्लीज़ समझो.”
वो चौंक गई. थोड़ा और कुरेदने पर मैं और खुलती गई. पूरी बात बताते हुए मेरी आंखें भर आईं और उसकी सुनकर.
उसने पूछा, “ये कब तक चलेगा भाभी? आप इतना कुछ सह रही हैं, जो भी कर रही हैं अपने साथ… लेकिन आपको नहीं लगता कि आप किसी और का भी अहित कर रही हैं?”
मैंने आंखें पोछते हुए कहा, “मैं ही घुल रही हूं और कौन?”
सीमा ने एक लंबी सांस लेकर कहा, “आप उस दिन कह रही थीं ना कि बच्चे हमें देखकर सीखते हैं. आपको नहीं लगता कि आप एक और तानाशाह पुरुष बना रही हैं, आपका बेटा क्या सीखता होगा इस माहौल से? वक़्त है, विरोध करिए… आज़ादी के लिए लड़ना ग़लत नहीं है.”
सीमा तो चली गई, मैं कुछ घटनाओं को लेकर बुरी तरह उलझी रही. बेटे की कही बातें याद करती रही… “मम्मी, लड़कियां घर में रहती हैं, लड़के बाहर जाते हैं… लड़कियों को हर काम लड़कों से पूछकर करना चाहिए… बॉयज़ लोग को ग़ुस्सा आ जाता है, वो चिल्लाते हैं…”
किस गर्त में ढकेल रही हूं अपने बच्चे को? क्यों नहीं विरोध करती हूं? बेटे के जीवन में आनेवाली लड़की क्या मुझे माफ़ करेगी कभी?
मैंने क्यों नहीं पूछा कभी संदीप से कि जब तुम्हारी बहन मायके में अकेले रह सकती है, तो मैं क्यों नहीं?.. क्यों नहीं कहा कि सब्ज़ी वाले से खी-खी करने नहीं, सब्ज़ी ख़रीदने जाती हूं बाज़ार. पता नहीं कब, किस सम्मोहन की अवस्था में पिंजरे तक पहुंची… सारी चिड़िया क़ैद से उड़ा दीं, बस एक बाकी थी, मैं ख़ुद!.. अभी भी. 

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घड़ी देखी, इनके आने का वक़्त हो रहा था. बेटे को तैयार होने को कहा, पर्स उठाया.
बेटा हैरत से मुझे देख रहा था, “मम्मी, पापा को तो आने दो, बस हम दोनों जाएंगे? आपको मार्केट के रास्ते पता हैं?”
मैंने मुस्कुरा कर बेटे से कहा, “रास्ते नहीं मिले तो ढूंढ़ लेंगे…क्षमम्मी पर भरोसा रखो.”
मैं जब घर लौटूंगी, क्या होगा देखा जाएगा. आख़िरी चिड़िया भी उड़ चुकी थी, मैं मुस्कुरा रही थी… हां, मैं एक ख़ूबसूरत चिड़िया हूं, लेकिन उन्मुक्त.

लकी राजीव

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Usha Gupta

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